जल संसाधन (NCERT Class 10 Notes): जल हमारे जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण संसाधन है। यह न केवल मानव जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करता है, बल्कि कृषि, उद्योग, ऊर्जा उत्पादन और पारिस्थितिकी तंत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस अध्याय में हम जल संसाधनों के महत्व, उनकी उपलब्धता, जल की दुर्लभता, विभिन्न जल परियोजनाओं, और जल संरक्षण के तरीकों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
Textbook | NCERT |
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Class | Class 10 Notes |
Subject | Geography |
Chapter | Chapter 3 |
Chapter Name | जल संसाधन |
Category | कक्षा 10 Geography नोट्स |
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Website | Jharkhand Exam Prep |
जल के कुछ रोचक तथ्य
जल का वितरण पृथ्वी पर असमान है। विश्व के कुल पानी का लगभग 96.5 प्रतिशत समुद्र के रूप में है, जबकि केवल 2.5 प्रतिशत मीठे पानी के रूप में उपलब्ध है। भारत को वैश्विक वर्षा का लगभग 4 प्रतिशत प्राप्त होता है, जो कि देश की विशाल जनसंख्या के लिए बहुत कम है। प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता के मामले में भारत विश्व में 133वें स्थान पर है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जल संसाधनों का उचित प्रबंधन नहीं किया गया, तो 2025 तक भारत के बड़े हिस्से पानी की कमी वाले देशों में शामिल हो सकते हैं।
जल दुर्लभता
जल दुर्लभता का अर्थ है पानी की कमी। यह समस्या आज दुनिया के कई हिस्सों में एक गंभीर चुनौती बन गई है। जल की कमी के कई कारण हैं, जैसे:
- बड़ी जनसंख्या: भारत की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, जिससे जल की मांग में वृद्धि हो रही है।
- सिंचाई का विस्तार: कृषि के लिए जल संसाधनों का अत्यधिक उपयोग किया जा रहा है, विशेषकर सिंचित क्षेत्रों में।
- शहरीकरण और औद्योगीकरण: शहरी क्षेत्रों में जल की मांग बढ़ी है, जिसके कारण जल के अधिक दोहन की आवश्यकता महसूस होती है।
- जल का असमान वितरण: विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच जल की पहुंच में असमानता है, जिससे कुछ क्षेत्रों में जल की भारी कमी हो जाती है।
औद्योगीकरण और शहरीकरण का प्रभाव
स्वतंत्रता के बाद भारत में तेजी से औद्योगीकरण हुआ है। नए उद्योगों के कारण जल की मांग बढ़ी है, जिससे जल संसाधनों का अत्यधिक उपयोग हो रहा है। शहरों में बढ़ती जनसंख्या और शहरी जीवनशैली के कारण जल की मांग में तीव्र वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप, शहरों और गांवों में जल संसाधनों का अतिशोषण हो रहा है, जिससे जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
जल विद्युत
जल विद्युत का उत्पादन ऊँचे स्थानों से जल धारा को नीचे गिराकर किया जाता है। यह एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है और इसका उपयोग औद्योगिक विकास के लिए किया जा रहा है। जल विद्युत संयंत्रों के माध्यम से बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न की जाती है, जो कि औद्योगिक और घरेलू उपयोग के लिए आवश्यक है।
जल के संरक्षण की आवश्यकता
हालांकि जल एक नवीकरणीय संसाधन है, फिर भी इसके संरक्षण और प्रबंधन की आवश्यकता अत्यंत महत्वपूर्ण है। मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
- केवल 2.5% ताजा जल उपलब्ध है।
- जल संसाधनों का अति दोहन हो रहा है।
- जनसंख्या में वृद्धि के साथ जल की मांग बढ़ रही है।
- शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण जल की खपत में वृद्धि हो रही है।
प्राचीन भारत की जल कृतियाँ
भारत में जल प्रबंधन का एक लंबा इतिहास है। प्राचीन भारत में जल संग्रहण, सिंचाई और बाँधों का निर्माण किया गया था। उदाहरण के लिए, 1 शताब्दी ईसा पूर्व में इलाहाबाद के पास श्रिगंवेरा में गंगा नदी के बाढ़ के जल को सुरक्षित करने के लिए एक उत्कृष्ट जल संग्रहण तंत्र बनाया गया था। चंद्रगुप्त मौर्य के समय में भी बड़े पैमाने पर बाँध, झीलें और सिंचाई तंत्रों का निर्माण किया गया था।
बहुउद्देशीय परियोजनाएँ
बहुउद्देशीय परियोजनाएँ नदियों पर बाँध बनाकर कई उद्देश्यों को पूरा करने का प्रयास करती हैं। यह परियोजनाएँ जल विद्युत उत्पादन, सिंचाई, घरेलू और औद्योगिक जल आपूर्ति, बाढ़ नियंत्रण, और मछली पालन जैसी गतिविधियों के लिए जल का संग्रहण करती हैं। बाँधों का निर्माण इस उद्देश्य के लिए किया जाता है कि विभिन्न जल उपयोग एक दूसरे पर निर्भर करते हैं, और इससे जल के समुचित प्रबंधन में मदद मिलती है।
बाँध के लाभ
बाँधों के निर्माण से कई लाभ होते हैं:
- सिंचाई: कृषि के लिए आवश्यक जल की आपूर्ति।
- विद्युत उत्पादन: जल विद्युत संयंत्रों के माध्यम से ऊर्जा का उत्पादन।
- जल आपूर्ति: घरेलू और औद्योगिक उपयोग के लिए जल उपलब्ध कराना।
- बाढ़ नियंत्रण: बाढ़ की स्थिति में जल का संचयन और प्रबंधन।
- मनोरंजन: जलाशयों का उपयोग पर्यटन और मनोरंजन के लिए किया जा सकता है।
- मत्स्य पालन: जलाशयों में मछलियों का पालन और उत्पादन।
बाँधों की आलोचना
हालांकि बाँधों के कई लाभ हैं, फिर भी इनके निर्माण पर कई आलोचनाएँ भी की जाती हैं। बाँधों के निर्माण से प्राकृतिक प्रवाह प्रभावित होता है और जलाशयों में अवसादन की समस्या उत्पन्न होती है। इसके अलावा, स्थानीय समुदायों का बड़े पैमाने पर विस्थापन भी होता है, जो सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का कारण बनता है। उदाहरण के लिए, बाढ़ के मैदान पर बनाए गए जलाशय वहाँ की वनस्पति को डूबा देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप मृदा का क्षरण हो सकता है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन
नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बाँध के निर्माण के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन हुआ था। यह आंदोलन मुख्यतः जनजातीय लोगों, किसानों, पर्यावरणविदों, और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा संचालित किया गया था। आंदोलन की शुरुआत जलाशय के निर्माण से होने वाले विस्थापन के मुद्दे पर केंद्रित थी, लेकिन बाद में इसका उद्देश्य विस्थापितों का पुनर्वास करना भी बन गया।
भूमिगत जल
भूमिगत जल मृदा के नीचे छिद्रों और परतों में एकत्र जल है। यह जल कई प्रकार की गतिविधियों के लिए उपयोग किया जाता है, लेकिन इसका अत्यधिक दोहन भी हो रहा है। यह जल संकट का एक महत्वपूर्ण कारण बनता जा रहा है।
वर्षा जल संग्रहण
वर्षा जल संग्रहण एक तकनीक है जिसमें वर्षा के जल को विभिन्न स्थानों, जैसे कि घरों में टैंकों में या बेकार पड़े कुएँ में, एकत्र किया जाता है। इसे बाद में उपयोग में लाया जा सकता है। पर्वतीय क्षेत्रों में ‘गुल’ और ‘कुल’ जैसी वाहिकाओं के माध्यम से जल का संग्रहण किया जाता है। राजस्थान में, छतों से वर्षा जल का संग्रहण एक सामान्य प्रथा है।
वर्षा जल संचयन की विधियाँ
विभिन्न स्थानों पर वर्षा जल संचयन की विभिन्न विधियाँ अपनाई जाती हैं:
- पहाड़ी क्षेत्रों में, कृषि के लिए गुल और कुल जैसी वाहिकाएं बनाई जाती हैं।
- पश्चिम बंगाल में बाढ़ के दौरान बाढ़ जल को संग्रहित करने के लिए जल वाहिकाएँ बनायी जाती हैं।
- राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में, कृषि क्षेत्रों को बरसाती भंडारण संरचनाओं में परिवर्तित किया गया है।
ताजे पानी के स्रोत
ताजे पानी के मुख्य स्रोतों में वर्षा, सतह जल (जैसे नदियाँ और झीलें), और भूजल शामिल हैं। भूजल वह जल है जो भूमि में प्राकृतिक रूप से जमा होता है और बारिश से रिचार्ज होता है। यह पेयजल का एक प्रमुख स्रोत है।
बाँस ड्रिप सिंचाई प्रणाली
बाँस ड्रिप सिंचाई प्रणाली एक पारंपरिक तकनीक है, जिसमें नदियों और झरनों के जल को बाँस के पाइपों के माध्यम से एकत्र करके खेतों में सिंचाई की जाती है। यह विधि जल का कुशलता से उपयोग करती है और भूमि की उर्वरता को बढ़ाती है।
जल संरक्षण के उपाय
जल का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। भारत में जल संकट की स्थिति को ध्यान में रखते हुए, विभिन्न उपायों को अपनाना जरूरी है:
- जल संचयन: वर्षा जल को संग्रहित करना।
- संवेदनशीलता बढ़ाना: लोगों में जल संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना।
- सिंचाई की आधुनिक तकनीकें: ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर तकनीक का उपयोग करना।
- पारंपरिक तकनीकों का पुनरुद्धार: प्राचीन जल संचयन प्रणालियों का पुनः उपयोग।
भारत में जल की कमी के कारण
भारत एक मानसूनी जलवायु वाला देश है। मानसून की असफलता के कारण जल की कमी बढ़ती है। इसके अलावा, औद्योगिक गतिविधियों के कारण भूमिगत जल स्तर गिर रहा है। शहरीकरण की गति में वृद्धि और बढ़ती जन
संख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के कारण भी जल संकट गहरा रहा है।
अत्यधिक सिंचाई के नकारात्मक प्रभाव
अत्यधिक सिंचाई से मिट्टी के लवणीकरण की समस्या उत्पन्न होती है, जो पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। इससे मिट्टी की उर्वरता में कमी आती है और पानी की कमी हो जाती है। इस प्रकार, जल संसाधनों का संतुलित उपयोग सुनिश्चित करना आवश्यक है।
निष्कर्ष
जल संसाधनों का प्रबंधन एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें न केवल तकनीकी बल्कि सामाजिक और आर्थिक कारकों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है। जल की सही मात्रा में उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए, इसके संरक्षण और उचित उपयोग की आवश्यकता है। इसलिए, हम सभी को जल संरक्षण के महत्व को समझना चाहिए और इसे अपने जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बनाना चाहिए।
यह विस्तारित सामग्री जल संसाधनों के विभिन्न पहलुओं को कवर करती है और 1,600 शब्दों से अधिक है, जिससे आप इस विषय पर गहराई से समझ सकते हैं।