वन एवं वन्य जीव संसाधन: भारत, जैव विविधता की दृष्टि से एक समृद्ध देश है, जहां विभिन्न प्रकार की वनस्पति और प्राणी प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यह अध्याय “वन एवं वन्य जीव संसाधन” भारत में वनस्पतिजात और प्राणीजात के महत्व, उनके संरक्षण, और जैव विविधता के समृद्ध वातावरण को समझने में मदद करता है।
Textbook | NCERT |
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Class | Class 10 Notes |
Subject | Geography |
Chapter | Chapter 2 |
Chapter Name | वन एवं वन्य जीव संसाधन |
Category | कक्षा 10 Geography नोट्स |
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Website | Jharkhand Exam Prep |
जैव विविधता
जैव विविधता का अर्थ है एक क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के पादपों और जंतुओं की उपस्थिति। यह न केवल प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करता है, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र को भी संतुलित बनाए रखता है। जैव विविधता के घटक मुख्यतः फ्लोरा (पादप) और फौना (जंतु) होते हैं। भारत में लगभग 47,000 पादप प्रजातियाँ और 81,000 से अधिक प्राणी प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
प्राकृतिक वनस्पति
प्राकृतिक वनस्पति का तात्पर्य उन पादप समूहों से है जो प्राकृतिक रूप से उगते हैं। इसे अक्सर अक्षत वनस्पति कहा जाता है। भारत में विभिन्न प्रकार के वन पाए जाते हैं, जैसे सदाबहार वन, ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वन, शुष्क वन, और मिश्रित वन। इन वनों में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ, जैसे साल, चिर, बांस, और अन्य स्थानीय प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
स्वदेशी वनस्पति प्रजातियाँ
स्वदेशी वनस्पति प्रजातियाँ वह होती हैं जो विशुद्ध रूप से भारतीय भूमि पर पनपती हैं। इन्हें स्थानिक पादप भी कहा जाता है। ये प्रजातियाँ स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं और पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने में मदद करती हैं। उदाहरण के लिए, नीम, पीपल, और तुलसी जैसे पौधे भारतीय पारिस्थितिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पारितंत्र
पारितंत्र वह प्रणाली है जिसमें पादप और जंतु एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। यह न केवल वन्यजीवों और वनस्पतियों के बीच संबंध को दर्शाता है, बल्कि मानव और उसके पर्यावरण के बीच के संबंध को भी समझाता है। एक स्वस्थ पारितंत्र विभिन्न जीवों की उपस्थिति और उनकी आपसी निर्भरता को सुनिश्चित करता है।
वन्यजीव
वन्यजीव वे जीव होते हैं जो अपने प्राकृतिक पर्यावरण में निवास करते हैं। भारत में, कई प्रकार के वन्यजीव पाए जाते हैं, जैसे बाघ, हाथी, गिलहरियाँ, और विभिन्न प्रकार के पक्षी। इन जीवों का संरक्षण न केवल उनके अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पूरे पारिस्थितिकी तंत्र की संतुलन बनाए रखने में भी सहायक है।
फ्लोरा और फौना
फ्लोरा का अर्थ है किसी विशेष क्षेत्र के पादप, जबकि फौना का तात्पर्य है जंतुओं की प्रजातियाँ। भारत में विभिन्न प्रकार की फ्लोरा और फौना मौजूद हैं, जो इस देश की जैव विविधता को समृद्ध बनाते हैं। भारतीय वनस्पति में 47,000 से अधिक पादप प्रजातियाँ हैं, जिनमें से लगभग 15,000 पुष्प प्रजातियाँ हैं। इसी तरह, प्राणिजात में 81,000 से अधिक प्रजातियाँ शामिल हैं, जिसमें 1,200 पक्षियों और 2,500 मछलियों की प्रजातियाँ भी शामिल हैं।
भारत में लुप्तप्राय प्रजातियाँ
भारत में कई प्रजातियाँ लुप्त होने के कगार पर हैं। उदाहरण के लिए, चीता, गुलाबी सिर वाली बत्तख, और जंगली चित्तीदार उल्लू जैसी प्रजातियाँ नाजुक अवस्था में हैं। लुप्त होने का खतरा झेल रही प्रजातियों में स्तनधारी, पक्षी, और जलस्थलीय जीव शामिल हैं।
प्रजातियों का वर्गीकरण
अंतर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (IUCN) ने प्रजातियों को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया है:
- सामान्य जातियाँ: जो जीवित रहने के लिए सामान्य मानी जाती हैं।
- लुप्त जातियाँ: जो आवास में अनुपस्थित पाई गई हैं।
- सुभेध जातियाँ: जिनकी संख्या घटने की संभावना है।
- संकटग्रस्त जातियाँ: जिनके लुप्त होने का खतरा है।
- दुर्लभ जातियाँ: जिनकी संख्या बहुत कम है और संकटग्रस्त होने की संभावना है।
- स्थानिक जातियाँ: जो विशेष क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
वनस्पतिजात और प्राणिजात के ह्रास के कारण
भारत में वनस्पति और प्राणी जातियों के ह्रास के कई कारण हैं:
कृषि में विस्तार
1951 से 1980 के बीच, कृषि भूमि के लिए 262,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक वन क्षेत्र को बदल दिया गया। विशेषकर पूर्वोत्तर और मध्य भारत में स्थानांतरी खेती के कारण वनों की कटाई हुई है।
संवर्धन वृक्षारोपण
जब किसी विशेष प्रजाति के व्यावसायिक महत्व के पौधों का वृक्षारोपण किया जाता है, तो इससे अन्य प्रजातियों का उन्मूलन हो जाता है। भारत के कई क्षेत्रों में संवर्धन वृक्षारोपण की गई है, जिसके परिणामस्वरूप जैव विविधता में कमी आई है।
विकास परियोजनाएँ
आजादी के बाद से कई विकास परियोजनाएँ लागू की गई हैं, जिससे जंगलों को भारी नुकसान हुआ है। नदी घाटी परियोजनाओं के कारण 1952 से अब तक 5,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक वनों का सफाया हुआ है।
खनन
खनन गतिविधियाँ कई क्षेत्रों में जैव विविधता को नुकसान पहुँचाती हैं। उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल के बक्सा टाइगर रिजर्व में डोलोमाइट का खनन किया जा रहा है, जिससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है।
संसाधनों का असमान बंटवारा
अमीर और गरीबों के बीच संसाधनों का असमान बंटवारा होता है। अमीर लोग अधिक संसाधनों का दोहन करते हैं, जिससे पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
हिमालयन यव
हिमालयन यव एक औषधीय पौधा है जो हिमाचल प्रदेश और अरूणाचल प्रदेश में पाया जाता है। इसका उपयोग कैंसर के उपचार में किया जाता है। हालाँकि, इस पौधे के हजारों पेड़ सूख गए हैं, जिससे यह प्रजाति संकट में है।
कम होते संसाधनों के सामाजिक प्रभाव
संसाधनों के घटने से समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। विशेष रूप से महिलाओं को ईंधन, चारा, और पेयजल के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है। कुछ गाँवों में, पीने का पानी लाने के लिए महिलाओं को कई किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ता है।
भारतीय वन्यजीवन (संरक्षण) अधिनियम 1972
1960 और 1970 के दशकों में, पर्यावरण संरक्षकों ने वन्यजीवों की रक्षा के लिए नए कानून की मांग की थी। इस मांग को मानते हुए, भारतीय सरकार ने 1972 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम को लागू किया।
उद्देश्य
इस अधिनियम के अंतर्गत संरक्षित प्रजातियों की एक अखिल भारतीय सूची तैयार की गई। यह अधिनियम संरक्षित प्रजातियों के शिकार पर पाबंदी लगाता है और वन्यजीवों के आवास को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है।
संरक्षण के लाभ
संरक्षण से कई लाभ होते हैं। इससे पारिस्थितिकी विविधता को बचाया जा सकता है। इसके अलावा, जल, हवा, और मिट्टी जैसी मूलभूत चीजों का भी संरक्षण होता है।
वन विभाग द्वारा वनों का वर्गीकरण
भारत में वनों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
- आरक्षित वन: यह देश का आधे से अधिक वन क्षेत्र है और इसे सबसे मूल्यवान माना जाता है।
- रक्षित वन: वन विभाग के अनुसार, यह वन क्षेत्र का एक तिहाई हिस्सा है और इसकी सुरक्षा की जाती है।
- अवर्गीकृत वन: अन्य सभी प्रकार के वन और बंजर भूमि जो विभिन्न स्वामित्व में होती हैं।
वन्य जीवन को होने वाले अविवेकी ह्रास पर नियंत्रण के उपाय
सरकार ने वन्यजीव संरक्षण के लिए कई उपाय किए हैं, जैसे प्रभावी वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम लागू करना। इसके अलावा, भारत सरकार ने जैव संरक्षण स्थलों की स्थापना की है। 1992 से, कई वनस्पति उद्यानों को वित्तीय और तकनीकी सहायता दी गई है।
चिपको आन्दोलन
चिपको आन्दोलन एक पर्यावरण रक्षा का आन्दोलन था, जो 1970 में उत्तराखंड में शुरू हुआ। इस आन्दोलन ने वृक्षों की कटाई का विरोध किया और स्थानीय लोगों को अपने वन संसाधनों के महत्व को समझाया।
प्रोजेक्ट टाइगर
बाघों को विलुप्त होने से बचाने के लिए प्रोजेक्ट टाइगर को 1973 में शुरू किया गया था। बीसवीं
सदी की शुरुआत में बाघों की कुल आबादी 55,000 थी, जो 1973 में घटकर 1,827 रह गई।
बाघ की आबादी के लिए खतरे
बाघों की आबादी को कई खतरों का सामना करना पड़ता है, जैसे शिकार के लिए बाघों का शिकार, आवास का सिकुड़ना, और भोजन की कमी।
महत्वपूर्ण टाइगर रिजर्व
भारत में कई महत्वपूर्ण टाइगर रिजर्व हैं, जैसे कॉरबेट राष्ट्रीय उद्यान, सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान, बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, और सरिस्का वन्य जीव पशुविहार। ये सभी बाघ संरक्षण परियोजनाओं के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।
निष्कर्ष
भारत में वन एवं वन्य जीव संसाधनों का संरक्षण केवल पर्यावरण के लिए नहीं, बल्कि समाज के समग्र स्वास्थ्य और कल्याण के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। जैव विविधता की सुरक्षा से न केवल पारिस्थितिकी संतुलित रहती है, बल्कि यह आर्थिक विकास और सामाजिक स्थिरता को भी बढ़ावा देती है। सभी को मिलकर इन संसाधनों के संरक्षण के लिए प्रयास करना होगा, ताकि भविष्य में आने वाली पीढ़ियाँ भी इनका लाभ उठा सकें।
Here’s a summary of the chapter “वन एवं वन्य जीव संसाधन”
विषय | विवरण |
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जैव विविधता | पादपों और जंतुओं की विविधता, जो पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखती है। |
प्राकृतिक वनस्पति | प्राकृतिक रूप से उगने वाले पादप समूह, जैसे सदाबहार वन, घास के मैदान आदि। |
स्वदेशी वनस्पति प्रजातियाँ | विशुद्ध भारतीय पादप प्रजातियाँ, जैसे नीम, पीपल, तुलसी। |
पारितंत्र | पादप और जंतु जो अपने भौतिक पर्यावरण में एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं। |
वन्यजीव | अपने प्राकृतिक वातावरण में रहने वाले जीव। |
फ्लोरा और फौना | फ्लोरा: पादप, फौना: जंतु। भारत में 47,000 पादप प्रजातियाँ और 81,000 से अधिक प्राणी प्रजातियाँ हैं। |
लुप्तप्राय प्रजातियाँ | जैसे चीता, गुलाबी सिर वाली बत्तख, जंगली चित्तीदार उल्लू। |
प्रजातियों का वर्गीकरण | IUCN के अनुसार: सामान्य, लुप्त, सुभेध, संकटग्रस्त, दुर्लभ, स्थानिक जातियाँ। |
ह्रास के कारण | कृषि विस्तार, संवर्धन वृक्षारोपण, विकास परियोजनाएँ, खनन, संसाधनों का असमान बंटवारा। |
हिमालयन यव | औषधीय पौधा, कैंसर के उपचार में उपयोग। |
सामाजिक प्रभाव | संसाधनों की कमी से महिलाओं पर अधिक बोझ, बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक विपदाएँ। |
भारतीय वन्यजीवन (संरक्षण) अधिनियम 1972 | संरक्षित प्रजातियों की सूची, शिकार पर पाबंदी, आवास की सुरक्षा। |
संरक्षण के लाभ | पारिस्थितिकी विविधता का संरक्षण, जल, हवा, मिट्टी का संरक्षण। |
वन विभाग का वर्गीकरण | आरक्षित वन, रक्षित वन, अवर्गीकृत वन। |
वन्य जीवन संरक्षण उपाय | प्रभावी वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम, जैव संरक्षण स्थल, बाघ परियोजना। |
चिपको आन्दोलन | वृक्षों की कटाई का विरोध, पर्यावरण रक्षा का आन्दोलन। |
प्रोजेक्ट टाइगर | बाघों के संरक्षण के लिए 1973 में शुरू किया गया। |
महत्वपूर्ण टाइगर रिजर्व | कॉरबेट, सुंदरबन, बांधवगढ़, सरिस्का, आदि। |
निष्कर्ष | वन एवं वन्य जीव संसाधनों का संरक्षण समाज और पर्यावरण के लिए आवश्यक है। |