जीवन परिचय
भुवनेश्वर व्याकुल की जीवनी
जन्म:- 2 फरवरी 1908
मृत्यु :- 17 सितंबर 1984
जन्म स्थान:- महथाडीह गिरिडीह
पिता:- बलदेव प्रसाद उपाध्याय
उपनाम – व्याकुल और राष्ट्रीय कवि( यह नाम हजारीबाग के पूर्व सांसद और स्वतंत्रता सेनानी बाबू राम नारायण सिंह ने दिया)
शिक्षा :- B. A, Diploma in Office Procedure
नौकरी :- Operator in Bokaro Steel Plant
प्रारंभिक जीवन(भुवनेश्वर व्याकुल की जीवनी)
भुवनेश्वर व्याकुल का जीवन बहुत ही कष्ट में बीताl इनके जन्म के 6 महीने बाद है इनके पिता का देहांत हो गया और इसके बाद इनकी देखभाल इन के आजा पंडित अयोध्या प्रसाद उपाध्याय ने कियाl उन्होंने महज 11 वर्ष की उम्र में घर छोड़ने का फैसला लिया और भागकर काशी, वाराणसी चले गएl हालांकि कुछ दिन बाद वह वापस भी आ गएl इन्होंने अपना विवाह दूसरे जाति की लड़की से किया जिसका नाम ‘सरस्वती देवी’ हैl
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
सन 1925 में व्याकुल जी स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े, जिस वजह से वह कई बार जेल भी गए और 1930 में जेल में ही उनकी मुलाकात हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी से हुईl इसके बाद उन्होंने कई पुस्तक के लिखे जेल में रह कर ही, ऐसा माना जाता है कि उनकी रचनाएं अंग्रेजों के शोषण को दर्शाता था, जिस वजह से उन्हें अंग्रेजों ने जला दिया थाl सन 1940 में रामगढ़ में हुए कांग्रेस अधिवेशन को सफल करने में इनका बहुत बड़ा योगदान थाl
हिंदी कृतियां
प्रताप
वर्तमान
कर्मवीर
लोकमान्य
विश्वमित्र
हिंदू
पंच
हिंदुस्तान
बालक
जनता
सफर का साथी
छोटा नागपुर
कलम – ए – व्याकुल
उर्दू कृतियाँ
हुस्नो – इश्क़
फलक से
खोरठा लेखन
भुवनेश्वर व्याकुल की जीवनी- यह आधुनिक काल के खोरठा के पहले कवि माने जाते हैंl इन्होंने खोरठा लेखन तब शुरू किया जब खोरठा साहित्य था भी नहींl खोरठा केवल लोकगीतों, झूमर गीत, आम बोलचाल की भाषा में ही प्रयोग होता थाl खोरठा में इनकी रचनाएं प्रेम, प्रेम में अलगाव, मां का प्रेम और सामाजिक बदलाव पर लिखी गई थीl इनकी रचनाएं विशुनगढ़ स्थित ‘ सुखद खोरठा साहित्य कुटीर से प्रकाशित होती थीl
खोरठा में गीत संग्रह
भुवनेश्वर व्याकुल की जीवनी
किसानों का आंत्रनाद ( 1943 – 44 )
मादल ( 1950 – 51 )
मादल ध्वनि मधुर ताल ( 1976-77 )
सम्मान
भुबनेश्वर याकुल को अपने जीवन काल में कोई भी सम्मान नहीं मिल पाया, इन्हें इनकी मृत्यु के बाद सन् 1989 में ‘खोरठा साहित्य संस्कृति परिषद, बोबोकारो’ द्वारा ‘ श्री निवासपानुरी स्मृति सम्मान’ दिया गयाl