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विश्वनाथ दसौंधी राज जी की जीवनी | Khortha लेखक परिचय | JSSC CGL Khortha Notes

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विश्वनाथ दसौंधी राज जी का जीवन परिचय

विश्वनाथ दसौंधी राज जी की जीवनी | Khortha लेखक परिचय | JSSC CGL Khortha Notes
नामविश्वनाथ दसौंधी राज
जन्म15 अप्रैल, 1943
मृत्यु16 अक्टूबर 2009
जन्म स्थानभट्टमुरना, धनबाद
पितामुखराम दसौंधी
शिक्षाM.A. (हिंदी ऑनर्स), डिप्लोमा इन एजुकेशन

प्रारंभिक जीवन

विश्वनाथ दसौंधी राज एक प्रसिद्ध खोरठा और हिंदी लेखक थे, जिनकी लेखन शैली में कहानी, कविता, नाटक और उपन्यास सम्मिलित थे। इसके अलावा, वे खोरठा पत्रकारिता के क्षेत्र में भी सक्रिय रहे। उनके पिता की मृत्यु के बाद उनका पालन-पोषण उनकी माता और भाई-भाभी ने किया। शिक्षा में उनके परिवार का योगदान भी अहम था, और उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद गंगा नारायण हाई स्कूल, कतरासगढ़ में हिंदी शिक्षक के रूप में नौकरी शुरू की।

इसके अलावा, उन्हें तंत्र विद्या में भी गहरी रुचि थी। वे एक तांत्रिक भी थे और उन्होंने कतरास, धनबाद में अखिल भारतीय तांत्रिक सम्मेलन का आयोजन किया, जिससे खोरठा साहित्यकारों में कुछ विरोध भी हुआ।

खोरठा साहित्य में योगदान

विश्वनाथ जी को खोरठा साहित्य में अपनी प्रेरणा श्रीनिवास तिवारी से मिली, जो एक प्रमुख खोरठा साहित्यकार थे। उनसे मिलने के बाद उन्होंने खोरठा साहित्य सम्मेलन संस्थान की स्थापना की और खोरठा भाषा के आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अगस्त 1977 में श्रीनिवास पावरी जी द्वारा संचालित कोटा साहित्य परिषद और खोरठा साहित्य सम्मेलन का विलय हुआ, और उसी के बाद कतरास (बिहार) में खोरठा मासिक पत्रिका “पृथ्वी” का प्रकाशन शुरू हुआ। इस प्रकार खोरठा जगत में विश्वनाथ जी की पहचान बनी।

कृतियां

विश्वनाथ जी की कुछ प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं:

  1. भगजोगनी (उपन्यास)
  2. अजगर (नाटक)
  3. पुतुस् आर परास (कविता संग्रह)
  4. घुईर मुड़री बेलतर (लघु कथा)
  5. माटीक पुथेल (कहानी)

सम्मान

विश्वनाथ दसौंधी राज जी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त हुए:

  1. श्रीनिवास पानुरी स्मृति सम्मान
  2. राजभवन में महामहिम राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी द्वारा सम्मानित, जो 29 जनवरी 2006 को राजभवन में आयोजित जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा के 9 साहित्यकारों को दिया गया था।

विश्वनाथ दसौंधी राज जी का खोरठा और हिंदी साहित्य में योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा, और उनकी रचनाओं ने साहित्य जगत में एक स्थायी छाप छोड़ी।

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