संघवाद (Political Science Class 11 Notes): संघवाद एक राजनीतिक सिद्धांत है जो एकत्रित रहने की सोच पर आधारित है। यह “संघ” (संगठन) और “वाद” (विचार) का संयोजन है। संघवाद का अर्थ केवल राजनीतिक एकता नहीं, बल्कि विभिन्न स्तरों पर सरकारों के बीच शक्तियों का संतुलन भी है।
Textbook | NCERT |
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Class | Class 11 Notes |
Subject | Political Science |
Chapter | Chapter 7 |
Chapter Name | संघवाद |
Category | कक्षा 10 Political Science नोट्स |
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Website | Jharkhand Exam Prep |
संघवाद की परिभाषा
संघवाद एक संस्थागत प्रणाली है जिसमें दो स्तर की सरकारें होती हैं: एक केंद्रीय (संधीय) सरकार और दूसरी प्रांतीय (राज्यीय) सरकारें। इस व्यवस्था का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विभिन्न स्तरों पर शासन सुचारू रूप से चले और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा हो सके।
संघीय सरकार की भूमिका
संघीय सरकार पूरे देश के लिए होती है और इसके जिम्मे राष्ट्रीय महत्व के विषय होते हैं। वहीं, राज्य सरकारें अपने-अपने प्रांत के मामलों का संचालन करती हैं।
उदाहरण: भारत में, केंद्रीय सरकार संघ सूची के विषयों पर कानून बनाती है, जबकि राज्य सूची के विषयों पर राज्य सरकारें कानून बनाती हैं।
भारतीय संविधान में संघवाद
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 में भारत को “राज्यों का संघ” कहा गया है। यह संघवाद उस विचार का परिणाम है जो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उभरा कि जब देश स्वतंत्र होगा, तो सत्ता को प्रांतीय और केंद्रीय सरकारों के बीच बांटा जाएगा। यह विचार भारतीय समाज की विविधताओं और उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप था।
भारतीय संविधान में संघीय व्यवस्था
भारतीय संविधान में एक संघीय व्यवस्था है जिसमें एक केंद्रीय सरकार और 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं। यहाँ दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का दर्जा दिया गया है। भारत में संघवाद की यह विशेषता इसे अन्य देशों से भिन्न बनाती है, जैसे अमेरिका या कनाडा।
भारतीय संघवाद की विशेषताएं
- तीन स्तर की सरकारें: भारत में केंद्र, राज्य और स्थानीय स्तर की सरकारें हैं।
- लिखित संविधान: भारतीय संविधान एक लिखित दस्तावेज है, जिसमें सभी नियम और कानून स्पष्ट रूप से वर्णित हैं।
- शक्तियों का विभाजन: शक्तियों का विभाजन संघ सूची (97 विषय), राज्य सूची (66 विषय), और समवर्ती सूची (47 विषय) में किया गया है।
- स्वतंत्र न्यायपालिका: भारतीय न्यायपालिका स्वतंत्र और निष्पक्ष है, जो सभी नागरिकों को न्याय दिलाने का कार्य करती है।
- संविधान की सर्वोच्चता: संविधान सर्वोपरि है, और सभी सरकारी संस्थाएँ इसके अंतर्गत कार्य करती हैं।
संघ सूची
संघ सूची में लगभग 99 विषय शामिल हैं। इनमें रक्षा, विदेश नीति, रेलवे, बंदरगाह, बैंकिंग, खनिज, और अन्य राष्ट्रीय महत्व के विषय शामिल हैं। यह सूची केंद्रीय सरकार को यह अधिकार देती है कि वह इन विषयों पर कानून बना सके।
राज्य सूची
राज्य सूची में लगभग 66 विषय शामिल हैं। इसमें पुलिस, न्याय, स्थानीय स्वशासन, कृषि, सिंचाई, स्वास्थ्य, और अन्य क्षेत्रीय महत्व के विषय आते हैं। राज्य सरकारों को यह अधिकार है कि वे अपने क्षेत्र में इन विषयों पर कानून बना सकें।
समवर्ती सूची
समवर्ती सूची में लगभग 47 विषय शामिल हैं, जैसे आपराधिक कानून, विधि प्रक्रिया, और सामाजिक सुरक्षा। इस सूची में शामिल विषयों पर केंद्र और राज्य दोनों स्तर की सरकारें कानून बना सकती हैं।
शक्ति विभाजन
भारतीय संविधान में दो तरह की सरकारों की व्यवस्था है: संघीय (केंद्रीय) सरकार और प्रांतीय (राज्य) सरकार। संविधान के अनुच्छेद 245 से 255 तक संघ और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का वितरण स्पष्ट किया गया है। केंद्रीय सरकार के पास राष्ट्रीय महत्व के विषय होते हैं, जबकि राज्य सरकारों के पास क्षेत्रीय महत्व के विषय होते हैं।
भारतीय संविधान के संघात्मक लक्षण
- संविधान की सर्वोच्चता: संविधान से ऊपर कोई शक्ति नहीं है। सभी सरकारें संविधान के दायरे में कार्य करती हैं।
- शक्तियों का विभाजन: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है, जो तीन सूचियों (संघ सूची, राज्य सूची, और समवर्ती सूची) में वर्णित है।
- स्वतंत्र न्यायपालिका: भारत में एक स्वतंत्र न्यायपालिका है जो तानाशाहियों से बचाव करती है और सभी नागरिकों को निष्पक्ष न्याय प्रदान करती है।
- संशोधन प्रणाली: संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया संघीय सिद्धांतों के अनुसार है।
- तीन स्तर की सरकारें: केंद्र, राज्य, और स्थानीय स्तर पर सरकारों का होना भारतीय संघवाद की विशेषता है।
भारतीय संविधान में एकात्मकता के लक्षण
भारतीय संविधान में संघात्मक लक्षणों के साथ ही एकात्मक लक्षण भी मौजूद हैं, जैसे:
- इकहरी नागरिकता: सभी नागरिकों को एक समान नागरिकता का अधिकार है।
- केंद्र की अधिक शक्ति: संघीय पक्ष की शक्ति अन्य से अधिक होती है, जिससे केंद्रीय सरकार को राज्यों पर प्रभाव डालने की क्षमता मिलती है।
- एक ही संविधान: सभी राज्यों के लिए एक संविधान है, जो एकता को बनाए रखता है।
- एकीकृत न्यायपालिका: सभी राज्यों के लिए एक न्यायिक प्रणाली होती है।
- आपातकालीन स्थितियाँ: आपातकाल की स्थिति में केंद्रीय सरकार अधिक शक्तिशाली होती है।
- राज्यपालों की नियुक्ति: केंद्र सरकार द्वारा राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति होती है, जिससे केंद्र का प्रभाव बढ़ता है।
- एकीकृत प्रशासनिक व्यवस्था: भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और अन्य सेवाओं का एकीकृत होना, जो सभी राज्यों में समान रूप से कार्य करती है।
भारतीय संघ में सशक्त केंद्रीय सरकार की आवश्यकता
भारतीय संविधान द्वारा एक सशक्त केंद्रीय सरकार की स्थापना करने का मुख्य कारण यह है कि भारत एक विशाल और विविधताओं से भरा देश है। यहाँ पर विभिन्न भाषाएँ, संस्कृतियाँ, और धार्मिक मान्यताएँ हैं।
संविधान निर्माता चाहते थे कि एक सशक्त केंद्रीय सरकार विभिन्न विविधताओं का प्रबंधन कर सके और देश की एकता को बनाए रख सके। 1947 में भारत की आजादी के समय, 500 से अधिक रियासतें थीं, जिन्हें एकीकृत करने के लिए केंद्रीय सरकार की शक्ति आवश्यक थी।
भारतीय संघीय व्यवस्था में तनाव
भारतीय संघीय व्यवस्था में कई बार तनाव उत्पन्न होते हैं, जो निम्नलिखित कारणों से हो सकते हैं:
- केन्द्र-राज्य संबंध: संविधान में केंद्र को अधिक शक्ति देने के कारण राज्य अक्सर विरोध करते हैं।
- स्वायत्तता की मांग: समय-समय पर विभिन्न राज्यों और राजनीतिक दलों द्वारा स्वायत्तता की मांग उठाई जाती है।
- वित्तीय स्वायत्तता: राज्यों के पास आय के अधिक साधन होना चाहिए।
- प्रशासनिक स्वायत्तता: राज्यों को अधिक अधिकार दिए जाने की मांग।
- सांस्कृतिक और भाषाई मुद्दे: जैसे तमिलनाडु में हिंदी विरोध और पंजाब में पंजाबी के प्रोत्साहन की मांग।
- राज्यपाल की भूमिका: केंद्र सरकार द्वारा राज्यपालों की नियुक्ति और अनुच्छेद 356 का अनुचित उपयोग।
- नए राज्यों की मांग: नए राज्यों के गठन की मांग पर विवाद।
- अंतर्राज्यीय विवाद: संघीय व्यवस्था में राज्यों के बीच सीमा विवाद, जैसे महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच बेलगांव का विवाद।
- जल बंटवारे के विवाद: जैसे कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी जल विवाद।
विशिष्ट प्रावधान
भारतीय संविधान में कुछ विशिष्ट प्रावधान भी हैं, जो विभिन्न राज्यों को विशेष स्थिति प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए:
- अनुच्छेद 370: जम्मू-कश्मीर को विशेष स्थिति प्रदान करता है, जिसमें अलग संविधान और ध्वज होता है।
- अनुच्छेद 371 से 371(झ): पूर्वोत्तर राज्यों को विशेष स्थिति प्रदान करते हैं।
निष्कर्ष
भारतीय संघवाद एक जटिल और विविधतापूर्ण प्रणाली है, जो विभिन्न स्तरों पर सरकारों के बीच शक्तियों का संतुलन बनाए रखने का प्रयास करती है। संघीयता की यह प्रणाली देश की विविधताओं और सामाजिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए स्थापित की गई है। इस प्रणाली के माध्यम से भारत एक ऐसा राष्ट्र बना हुआ है, जिसमें विभिन्न संस्कृतियाँ, भाषाएँ, और परंपराएँ एक साथ मिलकर एकता में बंधी हुई हैं।
संक्षेप में, संघवाद भारतीय राजनीति की धारा को दिशा देता है और एक लोकतांत्रिक समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।