न्यायपालिका (Political Science Class 11 Notes): न्यायपालिका सरकार का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसे कानून के शासन की रक्षा और कानून की सर्वोच्चता सुनिश्चित करने के लिए स्थापित किया गया है। यह निजी संस्थाओं या व्यक्तियों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए एक पंच के रूप में कार्य करता है। न्यायपालिका का स्वतंत्र और निष्पक्ष होना अत्यंत आवश्यक है, ताकि यह किसी भी राजनीतिक दबाव के बिना निर्णय ले सके।
Textbook | NCERT |
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Class | Class 11 Notes |
Subject | Political Science |
Chapter | Chapter 6 |
Chapter Name | न्यायपालिका |
Category | कक्षा 10 Political Science नोट्स |
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Website | Jharkhand Exam Prep |
न्यायपालिका की परिभाषा
न्यायपालिका एक महत्वपूर्ण संस्थान है, जो किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में केंद्रीय भूमिका निभाता है। यह सरकार का तीसरा अंग है, जिसे न्याय और कानून की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए स्थापित किया गया है। न्यायपालिका का मुख्य कार्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा हो और कानून का पालन किया जाए। यह एक स्वतंत्र और निष्पक्ष तंत्र है, जो निजी विवादों, अपराधों और संवैधानिक मुद्दों को सुलझाने में सक्षम है।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता
न्यायपालिका की स्वतंत्रता का तात्पर्य है कि इसे किसी भी राजनीतिक दबाव से मुक्त रहकर कार्य करने की अनुमति होनी चाहिए। इसका अर्थ यह है कि विधायिका और कार्यपालिका को न्यायपालिका के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। स्वतंत्र न्यायपालिका लोकतंत्र का एक मूलभूत सिद्धांत है, क्योंकि यह नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करती है और सरकार के कार्यों की समीक्षा करती है।
न्यायपालिका की स्थापना का इतिहास
भारत में न्यायपालिका की स्थापना का इतिहास बहुत पुराना है। 1935 में भारत सरकार अधिनियम के तहत एक संघीय न्यायालय की स्थापना की गई थी। यह संघीय न्यायालय 1 अक्टूबर 1937 को कार्यान्वित हुआ। स्वतंत्रता के बाद, 28 जनवरी 1950 को भारत का सर्वोच्च न्यायालय स्थापित किया गया। इसके माध्यम से एक स्वतंत्र और मजबूत न्यायिक प्रणाली की नींव रखी गई।
न्यायपालिका की संरचना
भारत में न्यायपालिका की संरचना पिरामिड के रूप में व्यवस्थित है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय सबसे ऊपर है। इसके नीचे उच्च न्यायालय होते हैं, और फिर जिला और अन्य निचली अदालतें होती हैं। इस पिरामिड संरचना के माध्यम से न्याय का प्रवाह सुनिश्चित किया जाता है और प्रत्येक स्तर पर न्याय के विभिन्न प्रकार के मामलों का निपटारा किया जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय का गठन
सर्वोच्च न्यायालय का गठन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(1) के तहत किया गया है। प्रारंभ में, सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश सहित 8 न्यायाधीश होते थे। समय के साथ, संसद ने इस संख्या में वृद्धि की है और वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में 31 न्यायाधीश हैं। न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति को है, जो भारत के मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर कार्य करता है।
न्यायाधीश की नियुक्ति और कार्यकाल
न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए व्यक्ति को कानून के क्षेत्र में विशेषज्ञता और अनुभव होना चाहिए। न्यायाधीशों का कार्यकाल 65 वर्ष की आयु तक होता है, लेकिन उन्हें विशेष परिस्थितियों में हटाया जा सकता है। इसके लिए महाभियोग की प्रक्रिया का पालन करना होता है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए यह सुनिश्चित किया जाता है कि न्यायाधीशों को उनकी नियुक्ति के बाद राजनीतिक दबाव से मुक्त रखा जाए।
उच्च न्यायालय का गठन और कार्य
उच्च न्यायालयों का गठन संविधान के भाग 6 में किया गया है। प्रत्येक राज्य में एक उच्च न्यायालय होता है, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीश होते हैं। उच्च न्यायालय का मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं:
- निचली अदालतों के निर्णयों पर अपील सुनना।
- मौलिक अधिकारों का संरक्षण करना।
- राज्य के क्षेत्राधिकार में आने वाले विवादों का समाधान करना।
- अपने अधीनस्थ अदालतों का पर्यवेक्षण करना।
मौलिक अधिकार और न्यायपालिका
भारतीय संविधान में नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, जिन्हें न्यायपालिका की मदद से सुरक्षित रखा जाता है। यदि किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो वह उच्चतम न्यायालय में रिट याचिका दायर कर सकता है। न्यायपालिका इस प्रकार के मामलों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करती है और किसी भी प्रकार के अन्याय को रोकने का कार्य करती है।
रिट संबंधी अधिकार
सर्वोच्च न्यायालय के पास रिट संबंधी अधिकार भी होते हैं। इसका अर्थ है कि न्यायालय विशेष आदेशों के माध्यम से कार्यपालिका को निर्देशित कर सकता है। न्यायालय निम्नलिखित प्रकार के रिट जारी कर सकता है:
- हैबियस कॉर्पस: यह रिट किसी व्यक्ति की अवैध गिरफ्तारी के खिलाफ होती है।
- मैंडमस: यह रिट सरकारी अधिकारियों को उनके कर्तव्यों को पूरा करने का आदेश देती है।
- प्रोबेशन: यह रिट किसी व्यक्ति को अनुशासन में रखने के लिए जारी की जाती है।
- कोर्ट्स: यह रिट विशेष अधिकारों के संरक्षण के लिए होती है।
न्यायपालिका की भूमिका
न्यायपालिका का मुख्य कार्य कानून की व्याख्या करना और न्याय सुनिश्चित करना है। यह विधायिका द्वारा पारित कानूनों की समीक्षा करती है और यह सुनिश्चित करती है कि ये कानून संविधान के अनुसार हों। न्यायपालिका न केवल विवादों का समाधान करती है, बल्कि यह सरकार के कार्यों की समीक्षा भी करती है।
न्यायिक सक्रियता
हाल के वर्षों में, न्यायपालिका में सक्रियता बढ़ी है, जिसे न्यायिक सक्रियता कहा जाता है। न्यायिक सक्रियता का अर्थ है कि न्यायपालिका समाज के कल्याण के लिए सक्रिय रूप से मुद्दों को उठाती है। उदाहरण के लिए, जनहित याचिकाएँ न्यायपालिका द्वारा विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने का एक साधन हैं। इसके माध्यम से, न्यायालय ने उन मामलों में हस्तक्षेप किया है जहां समाज के कमजोर वर्गों को न्याय की आवश्यकता होती है।
न्यायपालिका और कार्यपालिका
न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है। कार्यपालिका को अपने कार्यों में न्यायपालिका के निर्णयों का सम्मान करना चाहिए, जबकि न्यायपालिका को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कार्यपालिका अपने कर्तव्यों का पालन कर रही है। यदि कार्यपालिका न्यायपालिका के निर्णयों का पालन नहीं करती है, तो न्यायपालिका के पास उस मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार होता है।
न्यायिक पुनरावलोकन
न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ है कि सर्वोच्च न्यायालय किसी भी कानून की संवैधानिकता की जांच कर सकता है। यदि कोई कानून संविधान के प्रावधानों के विपरीत है, तो न्यायालय उसे असंवैधानिक घोषित कर सकता है। न्यायिक पुनरावलोकन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो यह सुनिश्चित करती है कि सभी कानून संविधान के अनुरूप हों।
न्यायपालिका और संसद
भारतीय संविधान में सरकार के प्रत्येक अंग का एक स्पष्ट कार्यक्षेत्र है। लेकिन, संसद और न्यायपालिका के बीच टकराव की स्थितियां उत्पन्न होती रही हैं। उदाहरण के लिए, संपत्ति के अधिकार, निवारक नजरबंदी कानून और आरक्षण संबंधी कानून जैसे मुद्दे अक्सर विवाद का कारण बनते हैं। न्यायपालिका ने 1973 में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया था कि संसद संविधान के मूल ढांचे में बदलाव नहीं कर सकती।
निष्कर्ष
न्यायपालिका लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करती है और सरकार की कार्यप्रणाली की निगरानी करती है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और सक्रियता सुनिश्चित करती है कि सभी नागरिकों को समान न्याय मिले। इसके माध्यम से, समाज में संतुलन और न्याय की भावना बनी रहती है। भारतीय न्यायपालिका का यह स्वरूप लोकतंत्र के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है।
न्यायपालिका के इस महत्वपूर्ण कार्य को समझने के लिए, यह आवश्यक है कि हम इसके विभिन्न पहलुओं को जानें और समझें। इससे हमें यह पता चलता है कि न्यायपालिका केवल विवादों के समाधान का एक साधन नहीं है, बल्कि यह समाज में न्याय और समानता की स्थापना के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है। न्यायपालिका की सक्रियता, स्वतंत्रता और निष्पक्षता सुनिश्चित करती है कि लोकतंत्र में हर नागरिक को अपने अधिकारों की रक्षा करने का अवसर मिले।
इस प्रकार, न्यायपालिका की भूमिका को समझना और उसकी महत्वता को पहचानना आवश्यक है, ताकि हम एक मजबूत और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकें। न्यायपालिका का कार्य केवल कानूनी मामलों का निपटारा करना नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय, मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए भी एक प्रमुख संस्थान है।