मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया (NCERT Class 10 Notes): मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया का अध्याय हमारे इतिहास के महत्वपूर्ण मोड़ों में से एक है। इस अध्याय में हम शुरुआती छपी किताबों, यूरोप में मुद्रण के आगमन, मुद्रण क्रांति के प्रभाव, भारत के मुद्रण संसार, धार्मिक सुधार और सार्वजनिक बहसों, प्रकाशन के नए रूप, प्रिंट और प्रतिबंधों आदि के बारे में चर्चा करेंगे।
Textbook | NCERT |
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Class | Class 10 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 5 |
Chapter Name | मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया |
Category | कक्षा 10 इतिहास नोट्स हिंदी में |
Medium | हिंदी |
शुरुआती छपी किताबें
मुद्रण की उत्पत्ति
मुद्रण तकनीक का विकास सबसे पहले चीन, जापान और कोरिया में हुआ। चीन में 594 ईस्वी के बाद लकड़ी के ब्लॉक का उपयोग कर कागज पर छपाई की जाती थी। उस समय के कागज बहुत पतले होते थे, जिससे दोनों ओर छापना संभव नहीं था। छपी किताबों को एकॉर्डियन बुक के रूप में मोड़ा जाता था।
प्रारंभिक पाठक वर्ग
छापेखाने का सबसे बड़ा उत्पादक चीन का राजतंत्र था, जहां सिविल सर्विस परीक्षा के लिए बड़े पैमाने पर पाठ्यपुस्तकें छपवाने का कार्य किया जाता था। सोलहवीं सदी में इस परीक्षा में उम्मीदवारों की संख्या बढ़ने के कारण किताबों की छपाई की रफ्तार भी बढ़ी।
जापान में छापाई
बौद्ध धर्म के प्रचारक 768 से 770 ईस्वी के आस-पास प्रिंट टेक्नॉलोजी को जापान ले आए। 868 में छपी डायमंड सूत्र जापानी भाषा की सबसे पुरानी किताब मानी जाती है। उस समय पुस्तकालयों में हाथ से छपी किताबें भरी होती थीं, जो विभिन्न विषयों पर थीं, जैसे महिलाओं, संगीत, हिसाब-किताब आदि।
यूरोप में मुद्रण का आगमन
ग्यारहवीं शताब्दी में सिल्क रूट के माध्यम से चीनी कागज़ यूरोप पहुँचा। मार्को पोलो ने चीन से मुद्रण का ज्ञान लेकर इटली का दौरा किया। पुस्तक विक्रेता अब सुलेखकों को रोजगार देने लगे, क्योंकि हस्तलिखित पांडुलिपियों के माध्यम से किताबों की भारी माँग को पूरा करना संभव नहीं था।
गुटेनबर्ग का प्रिंटिंग प्रेस
योहान गुटेन्बर्ग ने 1448 तक अपने प्रिंटिंग प्रेस को पूरा किया। इससे सबसे पहली पुस्तक बाइबिल छपी। गुटेनबर्ग का प्रेस पहले तो हस्तलिखित किताबों के समान दिखता था, लेकिन धीरे-धीरे यह तकनीक में सुधार करती गई।
मुद्रण क्रांति और उसके प्रभाव
प्रिंटिंग प्रेस के आगमन से एक नया पाठक वर्ग उभरा। छपाई की लागत कम होने से किताबों की कीमत भी गिरी। इससे बाजार में किताबों की भरमार हो गई और पाठक वर्ग भी व्यापक हुआ। पहले की जनता, जो केवल श्रोता थी, अब पाठक बन गई।
धार्मिक विवाद एवं प्रिंट का डर
कई लोग चिंतित थे कि यदि मुद्रण पर नियंत्रण नहीं किया गया तो विद्रोही विचार फैल सकते हैं। मार्टिन लूथर किंग ने कैथोलिक चर्च की कुरीतियों के खिलाफ अपने लेखों के माध्यम से आवाज उठाई। चर्च ने प्रतिबंधित किताबों की सूची प्रकाशित की।
पढ़ने का जुनून
सत्रहवीं और अठारहवीं सदी में यूरोप में साक्षरता का स्तर बढ़ा। इस दौरान पत्रिकाएँ, उपन्यास, और अन्य साहित्यिक सामग्री बहुत लोकप्रिय हो गई। छापाई ने वैज्ञानिक विचारों और खोजों को आम लोगों के बीच फैलाने में मदद की।
मुद्रण संस्कृति और फ्रांसीसी क्रांति
कई इतिहासकार मानते हैं कि प्रिंट संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रांति का माहौल तैयार किया। छापाई ने विचारों के प्रसार को बढ़ावा दिया, जिससे परंपरा और निरंकुशता की आलोचना होने लगी।
उन्नीसवीं सदी
उन्नीसवीं सदी में यूरोप में साक्षरता में जबरदस्त वृद्धि हुई। बच्चों और महिलाओं के लिए विशेष रूप से किताबें लिखी जाने लगीं। सार्वजनिक पुस्तकालयों का विकास भी हुआ, जिससे गरीब जनता को पढ़ाई की सुविधा मिली।
प्रिंट तकनीक में सुधार
न्यू यॉर्क के रिचर्ड एम. हो ने बेलनाकार प्रेस का आविष्कार किया, जिससे एक घंटे में 8,000 पृष्ठ छापे जा सकते थे। बीसवीं सदी में बिजली से चलने वाले प्रेस का उपयोग शुरू हुआ।
किताबें बेचने के नए तरीके
उन्नीसवीं सदी में धारावाहिक उपन्यासों का प्रचलन हुआ। इंग्लैंड में सस्ते साहित्य को शिलिंग सीरीज के तहत बेचा जाने लगा। किताबों की जिल्द का प्रचलन भी बीसवीं सदी में शुरू हुआ।
भारत का मुद्रण संसार
भारत में संस्कृत, अरबी, फारसी और विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में हस्तलिखित पांडुलिपियों की एक समृद्ध परंपरा थी। सोलहवीं सदी में प्रिंटिंग प्रेस गोवा में पुर्तगाली धर्म प्रचारकों द्वारा आया। 1780 में जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने बंगाल गज़ट का प्रकाशन शुरू किया, जो पहला भारतीय अखबार था।
धार्मिक सुधार और सार्वजनिक बहसें
प्रिंट संस्कृति ने भारत में धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर बहस शुरू करने में मदद की। राममोहन राय ने “संबाद कौमुदी” पत्रिका प्रकाशित की, जिसमें हिंदू धर्म के रूढ़िवादी विचारों की आलोचना की गई।
प्रकाशन के नए रूप
भारत में पहले यूरोपीय लेखकों के उपन्यास ही पढ़े जाते थे। बाद में भारतीय लेखकों ने अपने परिवेश पर लिखना शुरू किया। नई विधाओं जैसे गीत, लघु कहानियाँ और राजनीतिक निबंध भी उभरे।
प्रिंट और महिलाएँ
महिलाओं के लिए नए लेखन का उदय हुआ। रशसुन्दरी देवी की आत्मकथा “आमार जीबन” और ताराबाई शिंदे की कृतियाँ महिलाओं के जीवन पर गहनता से विचार करती हैं।
प्रिंट और गरीब जनता
उन्नीसवीं सदी में सस्ती किताबें सार्वजनिक स्थलों पर बेची जाने लगीं। सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना ने गरीब जनता को किताबों तक पहुँच प्रदान की।
प्रिंट और प्रतिबंध
1798 से पहले उपनिवेशी शासक प्रेस पर नियंत्रण नहीं रखते थे। लेकिन 1857 के विद्रोह के बाद, प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति सरकार का रवैया बदल गया। वर्नाकुलर प्रेस एक्ट के अंतर्गत प्रेस पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए।
निष्कर्ष
मुद्रण संस्कृति ने न केवल विचारों के प्रसार में मदद की, बल्कि समाज में विभिन्न वर्गों के बीच संवाद स्थापित करने का कार्य भी किया। इसके प्रभाव से धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक सोच में बदलाव आया, जिसने आधुनिक दुनिया के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
“द्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया” Chapter का संक्षिप्त सार
विभाग | विवरण |
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शुरुआती छपी किताबें | – चीन, जापान, कोरिया में मुद्रण का विकास। – चीन में 594 ई. के बाद लकड़ी के ब्लॉक से प्रिंटिंग। |
प्रारंभिक पाठक वर्ग | – राजतंत्र ने सिविल सर्विस परीक्षा के लिए किताबें छपवाईं। – सोलहवीं सदी में उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि। |
जापान में छापाई | – बौद्ध धर्म प्रचारकों द्वारा प्रिंटिंग जापान में आई। – 868 में डायमंड सूत्र, जापानी की पहली किताब। |
यूरोप में मुद्रण का आगमन | – ग्यारहवीं शताब्दी में सिल्क रूट के माध्यम से चीनी कागज़ का आगमन। – मार्को पोलो ने मुद्रण का ज्ञान इटली में पहुँचाया। |
गुटेनबर्ग का प्रिंटिंग प्रेस | – 1448 में गुटेनबर्ग ने प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार किया। – सबसे पहली छपी पुस्तक: बाइबिल। |
मुद्रण क्रांति और उसका असर | – नया पाठक वर्ग उभरा, किताबों की कीमतें घटीं। – जनता श्रोता से पाठक में परिवर्तित हुई। |
धार्मिक विवाद एवं प्रिंट का डर | – मुद्रण पर नियंत्रण को लेकर चिंताएँ। – मार्टिन लूथर किंग का चर्च की कुरीतियों के खिलाफ लेखन। |
पढ़ने का जुनून | – साक्षरता में सुधार। – पत्रिकाएँ, उपन्यास और अन्य साहित्य की लोकप्रियता। |
फ्रांसीसी क्रांति | – प्रिंट संस्कृति ने क्रांति के लिए माहौल तैयार किया। – विचारों का प्रसार और आलोचना की संस्कृति। |
उन्नीसवीं सदी | – साक्षरता में वृद्धि। – सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना। – बच्चों और महिलाओं के लिए विशेष किताबें। |
प्रिंट तकनीक में सुधार | – शक्ति से चलने वाला बेलनाकार प्रेस। – बिजली से चलने वाले प्रेस का उपयोग। |
किताबें बेचने के नए तरीके | – धारावाहिक उपन्यासों का प्रचलन। – सस्ते साहित्य की बिक्री। |
भारत का मुद्रण संसार | – सोलहवीं सदी में पुर्तगाली धर्म प्रचारकों के साथ मुद्रण का आगमन। – पहले भारतीय अखबार: बंगाल गज़ट। |
धार्मिक सुधार और सार्वजनिक बहसें | – राममोहन राय का “संबाद कौमुदी” का प्रकाशन। – धार्मिक रिवाजों की आलोचना। |
प्रकाशन के नए रूप | – भारतीय लेखकों का उदय। – नई विधाएँ: गीत, लघु कहानियाँ। |
प्रिंट और महिलाएँ | – नारी के व्यक्तित्व पर लेखन का उभार। – रशसुन्दरी देवी की आत्मकथा। |
प्रिंट और गरीब जनता | – सस्ती किताबें सार्वजनिक स्थलों पर। – सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना। |
प्रिंट और प्रतिबंध | – 1798 के पहले सेंसर की कमी। – वर्नाकुलर प्रेस एक्ट के अंतर्गत कड़े प्रतिबंध। |
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