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तबे हमें कबि नाँइ कविता (लेखक – श्री ए. के. झा) – एक पथिया डोंगल महुवा खोरठा कविता | JSSC CGL Khortha Notes

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तबे हमें कबि नाँइ कविता (लेखक – श्री ए. के. झा) – एक पथिया डोंगल महुवा खोरठा कविता

तबे हमें कबि नाँइ लेखक - श्री ए. के. झा पुस्तक - एक पथिया डोंगल महुआ Khortha Notes BY Jharkhand Exam Prep
तबे हमें कबि नाँइ लेखक – श्री ए. के. झा

अर्थ : 

इस कविता के माध्यम से कहना चाहते हैं कि कवि का मतलब गाना, मंच में तरह-तरह के भाव मुद्रा के साथ  नाचना उछलना होता है तो वे कवि  नहीं है।  क्योंकि वह ऐसा नहीं कर पाते।  कवि के अनुसार, अगर गाना ही कवि की पहचान है तो लता मंगेशकर सबसे बड़ी कवित्री है।  यदि नाच कर लोगों को रिझाना कवि का  गुण है तो सुविख्यात नर्तक उदय शंकर को सबसे बड़ा कवि मानना चाहिए।

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कवि आगे कहते हैं कि अगर कविता में समाज हित की बात हो विचारों की धार हो तो मैं भी एक कवि हूं।  क्योंकि मेरी कविताएं गंभीर है समाज से प्रेरित है और समाज के उठान लिए है। इस कविता के माध्यम से एके झा  का लोगों से आत्मक निवेदन है और साथ ही उनके शब्दों में पीड़ा भी छलक रही है।

वे गंभीर समाज विज्ञानी दृष्टिकोण के विचार रखने वाले कवि थे।  वे कवि सम्मेलनों में इसी तरह की कविताएं पाठ करते थे। सुर लय के साथ गाने के रूप में कविता प्रस्तुति की कला इनमें बिल्कुल नहीं था।  इसीलिए साधारण श्रोता दर्शक इनकी कविताओं को पसंद नहीं किया करते थे।  इस कविता में इसी साहित्य की स्थिति की प्रतिक्रिया की अभिव्यक्ति है, चुकी एके झा साहित्य को कला नहीं समाज विज्ञान मानते थे।

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जदि कबि माने सुधे भाट, तबे हमें कबि नाइ ! 

जदि कबिक काम नटुआ नाच, तावो हाम, कबि नाइ

जदि कबि माने किल्वि करवइया तभू हामें कबि नांइ

जदि कबि माने हवे गवइया, तावो हाम, कबि नाइ

 

किले ना

जदि कबि माने गवइया 

सवे सेरा कबि लता मंगेशकर ! 

जदि कबि माने बस नचवइया 

तबे महानकबि उदय शंकर !

तबे !

जदि कबि माने साहितकार- 

जदि कबि माने साहितकार ! 

आर कबिता माने 

भाभेक- गुनेक विचारेक घार!

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सबे हामहूँ एगो छोट मोट कबि 

जाने नांइ जे काय – किल्बि! 

हामें आपन कबिता पढ़वो 

मानुस महतेक भनिता गढ़वो!

पारबो नाइ पिदके नाचे भाई 

पारबो नांइ पिदके नाचे भाई 

जदि कबिता माने नाच गान

तबे हमें कबि नाँइ

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