स्थानीय शासन (Political Science Class 11 Notes): संविधान किसी समाज की इच्छाओं और आकांक्षाओं का अभिव्यक्ति है। यह एक लिखित दस्तावेज है जिसे समाज के प्रतिनिधियों द्वारा तैयार किया गया है। भारतीय संविधान को 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया और इसे 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया। यह संविधान एक स्थायी ढांचे के अंतर्गत कार्य करता है, जो समय-समय पर आवश्यकताओं के अनुसार परिवर्तनशील भी है।
Textbook | NCERT |
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Class | Class 11 Notes |
Subject | Political Science |
Chapter | Chapter 9 |
Chapter Name | स्थानीय शासन |
Category | कक्षा 10 Political Science नोट्स |
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Website | Jharkhand Exam Prep |
संविधान की विशेषताएँ
स्थायी और गतिशील: भारतीय संविधान स्थायी है, लेकिन इसके प्रावधानों में संशोधन किया जा सकता है। यह समय के साथ विकसित होता है।
संरचना की सुरक्षा: संविधान की मूल संरचना को बदला नहीं जा सकता है। यह देश की आवश्यकताओं के अनुसार बनाया गया है और इसमें न्याय, समानता, और स्वतंत्रता के सिद्धांत शामिल हैं।
संविधान में जीवंतता
संविधान की जीवंतता कई कारकों पर निर्भर करती है:
- परिवर्तनशीलता: संविधान समय की आवश्यकताओं के अनुसार संशोधित किया जा सकता है।
- सामाजिक न्याय: यह न्यायिक व्याख्या के माध्यम से समय-समय पर सामाजिक और राजनीतिक बदलावों का जवाब देता है।
- उदाहरण: जैसे कि आरक्षण के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय कि नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में कुल सीटों के 50% से अधिक नहीं हो सकता है।
संविधान का लचीलापन
संविधान लचीला है क्योंकि इसमें संशोधन सरलता से किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, राज्यों के नाम बदलना या उनकी सीमाओं में परिवर्तन करना। यह संशोधन संसद के दोनों सदनों द्वारा उपस्थित सदस्यों के साधारण बहुमत से किया जा सकता है।
कठोर संविधान
कुछ धाराओं को बदलने के लिए संसद के दोनों सदनों का दो तिहाई बहुमत आवश्यक होता है। इसके अलावा, कुछ संशोधनों के लिए आधे राज्यों के विधानमंडल का समर्थन भी आवश्यक होता है।
संविधान में संशोधन की प्रक्रिया
संविधान में संशोधन केवल संसद द्वारा किया जा सकता है। संशोधन की प्रक्रिया अनुच्छेद 368 में दी गई है। भारतीय संविधान में अब तक लगभग 100 संशोधन किए जा चुके हैं।
संशोधन के तरीके
सामान्य बहुमत: संसद में सामान्य बहुमत के आधार पर संशोधन किया जा सकता है, जैसे नए राज्यों का निर्माण या राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन।
विशेष बहुमत: कुछ संशोधनों के लिए संसद के दोनों सदनों में अलग-अलग विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है, जैसे राष्ट्रपति के निर्वाचन का तरीका या केन्द्र और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का वितरण।
अनुच्छेद 368
अनुच्छेद 368 में कहा गया है कि संसद अपने संविधान संशोधन के माध्यम से अपने संसदीय शक्ति संशोधन को लागू कर सकती है। यह लेख संविधान के किसी प्रावधान को निरस्त करने की प्रक्रिया को निर्धारित करता है।
संविधान में किए गए प्रमुख संशोधन
- 1951: संपत्ति के अधिकार का संशोधन, जिसमें नौवीं अनुसूची जोड़ी गई।
- 1969: उच्चतम न्यायालय का निर्णय कि संसद संविधान में संशोधन नहीं कर सकती जिससे मौलिक अधिकारों का हनन हो।
- 1989: 61 वां संशोधन, जिसमें मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
- 73 वां और 74 वां संशोधन: स्थानीय स्वशासन की स्थापना।
- 93 वां संशोधन (2005): उच्च शिक्षा संस्थानों में पिछड़ा वर्ग के लिए स्थान आरक्षित।
- 42 वां संशोधन (1976): प्रस्तावना में पंथ निरपेक्ष और समाजवादी शब्द का जुड़ाव।
- 52 वां संशोधन (1985): दल बदल पर रोक।
संविधान में संशोधनों की आवश्यकता
संविधान में इतने सारे संशोधन (लगभग 100) किए गए हैं ताकि यह समय की आवश्यकताओं के अनुसार लोकतंत्र को सुचारू रूप से चलाने में सक्षम हो सके। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बना संविधान अपने समय में उपयुक्त था, लेकिन जैसे-जैसे स्थिति बदलती गई, संविधान में संशोधन आवश्यक हो गए।
संशोधनों का विभाजन
संविधान में किए गए संशोधनों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:
प्रशासनिक संशोधन: जो प्रशासनिक कार्यों को सरल बनाते हैं।
संविधान की व्याख्या से संबंधित: जिनका संबंध संविधान की धाराओं की व्याख्या से है।
राजनीतिक आम सहमति से उत्पन्न संशोधन: जो राजनीतिक सहमति पर आधारित हैं।
विवादस्पद संशोधन
कुछ संशोधन विवादास्पद माने जाते हैं, जैसे 38वां, 39वां और 42वां संशोधन। ये आपातकाल के दौरान हुए थे, जब विपक्षी सांसद जेलों में थे और सरकार को असीमित अधिकार मिल गए थे।
संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत
यह सिद्धांत सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती मामले में 1973 में स्थापित किया था। इस निर्णय ने संविधान के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस सिद्धांत के अनुसार:
- संविधान में संशोधन करने की शक्तियों की सीमा निर्धारित की गई।
- यह संविधान के विभिन्न भागों के संशोधन की अनुमति देता है, लेकिन सीमाओं के अंदर।
- संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करने वाले किसी संशोधन के बारे में न्यायपालिका का फैसला अंतिम होगा।
संविधान एक जीवंत दस्तावेज़
भारतीय संविधान एक गतिशील दस्तावेज है। इसका अस्तित्व 67 वर्षों से है और यह अनेक तनावों से गुजरा है। समय के साथ बदलती परिस्थितियों में यह संविधान अपनी गतिशीलता और सामंजस्य के साथ कार्य करता है। इसके माध्यम से संविधान ने नई चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया है, जिससे इसकी जीवंतता का प्रमाण मिलता है।
निष्कर्ष
संविधान केवल एक कानून का संग्रह नहीं है, बल्कि यह एक जीवंत दस्तावेज है जो समाज के विकास और आवश्यकताओं के अनुसार विकसित होता है। यह नागरिकों को उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों का एहसास कराता है। भारतीय संविधान की जीवंतता इसे न केवल इतिहास में महत्वपूर्ण बनाती है, बल्कि वर्तमान और भविष्य में भी इसे प्रासंगिक बनाए रखती है।
इस प्रकार, संविधान एक ऐसा दस्तावेज है जो न केवल अतीत के अनुभवों को समाहित करता है, बल्कि भविष्य की चुनौतियों का भी सामना करने के लिए तैयार रहता है। यह लोकतंत्र की नींव को मजबूती प्रदान करता है और समाज में न्याय और समानता की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करता है।