विधायिका (Political Science Class 11 Notes): विधायिका एक महत्वपूर्ण सरकारी अंग है, जो लोकतंत्र के संचालन में केंद्रीय भूमिका निभाती है। यह अंग कानून बनाता है, नीतियों को तय करता है और सरकार की गतिविधियों की निगरानी करता है। भारत में, विधायिका का ढांचा संसद के माध्यम से संचालित होता है, जिसमें दो सदन होते हैं: लोकसभा और राज्यसभा। इस अध्याय में हम विधायिका के विभिन्न पहलुओं, उसके कार्यों, विशेष शक्तियों, विधेयक के प्रकारों और दलबदल की अवधारणा के बारे में विस्तार से जानेंगे।
Textbook | NCERT |
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Class | Class 11 Notes |
Subject | Political Science |
Chapter | Chapter 5 |
Chapter Name | विधायिका |
Category | कक्षा 10 Political Science नोट्स |
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Website | Jharkhand Exam Prep |
विधायिका की परिभाषा
विधायिका का अर्थ है वह अंग जो कानून बनाता है। यह लोकतांत्रिक शासन का अभिन्न हिस्सा है, जहां जन प्रतिनिधि जनता के हित में निर्णय लेते हैं। भारतीय संदर्भ में, विधायिका को संसद कहा जाता है, जिसमें राष्ट्रपति और दो सदन (लोकसभा और राज्यसभा) शामिल होते हैं। राज्य स्तर पर, विधायिका को विधानमंडल या विधानसभा कहा जाता है।
भारतीय संसद का ढांचा
संसद के दो सदन
भारतीय संसद को दो सदनों में बांटा गया है:
- लोकसभा (House of the People):
- यह संसद का निम्न सदन है। इसमें अधिकतम 550 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें 543 सदस्य प्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से जनता द्वारा चुने जाते हैं।
- लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, लेकिन इसे समय से पहले भी भंग किया जा सकता है।
- लोकसभा की शक्ति और प्रभावी भूमिका इसे कार्यपालिका पर नियंत्रण और महत्वपूर्ण वित्तीय निर्णय लेने में मदद करती है।
- राज्यसभा (Council of States):
- यह संसद का ऊपरी सदन है, जिसमें अधिकतम 250 सदस्य होते हैं। इनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं, जबकि 238 सदस्य अप्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से चुने जाते हैं।
- राज्यसभा का कार्यकाल 6 वर्ष होता है, और हर 2 वर्ष में इसके एक तिहाई सदस्यों का चुनाव होता है।
- राज्यसभा स्थायी सदन है, जिसका अर्थ है कि यह कभी भंग नहीं होती।
संसद की आवश्यकता
भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में, एक द्व chambers (दो सदनों) वाली विधायिका की आवश्यकता होती है ताकि विभिन्न वर्गों और समुदायों का उचित प्रतिनिधित्व हो सके। एक सदन द्वारा पारित निर्णय पर दूसरे सदन में पुनर्विचार किया जाता है, जिससे निर्णय प्रक्रिया अधिक संतुलित और समावेशी बनती है। यह प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी कानून जल्दबाजी में लागू नहीं किया जा सके।
संसद के प्रमुख कार्य
भारतीय संसद के कई महत्वपूर्ण कार्य हैं, जिनमें शामिल हैं:
- कानून बनाना: यह संसद का प्राथमिक कार्य है। संसद विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करके और संबंधित विधेयकों को पारित करके कानून बनाती है।
- कार्यपालिका पर नियंत्रण: संसद कार्यपालिका की गतिविधियों की निगरानी करती है। यह सुनिश्चित करती है कि कार्यपालिका अपने अधिकारों का दुरुपयोग न करे।
- वित्तीय कार्य: संसद बजट को पारित करती है और विभिन्न वित्तीय नीतियों पर चर्चा करती है। वित्तीय बिलों को लोकसभा में प्रस्तुत करना आवश्यक होता है।
- संविधान संशोधन: संसद संविधान में संशोधन करने का अधिकार रखती है। यह प्रक्रिया विशेष बहुमत से होती है।
- निर्वाचन संबंधी कार्य: संसद निर्वाचन आयोग की सहायता से चुनावों का आयोजन करती है और निर्वाचन संबंधी नीतियों का निर्माण करती है।
- न्यायिक कार्य: संसद न्यायपालिका के कार्यों की निगरानी करती है। यह सुनिश्चित करती है कि न्यायपालिका निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से कार्य करे।
- प्रतिनिधित्व: संसद जनता के हितों का प्रतिनिधित्व करती है और उनकी आवाज को सरकार तक पहुंचाती है।
लोकसभा
लोकसभा का गठन
लोकसभा भारतीय संसद का निम्न सदन है। इसमें सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा किया जाता है।
सदस्य बनने की योग्यताएँ
लोकसभा के सदस्यों के लिए कुछ आवश्यक योग्यताएँ हैं:
- भारत का नागरिक होना चाहिए।
- आयु 25 वर्ष होनी चाहिए।
- पागल या दिवालिया न होना चाहिए।
- किसी लाभप्रद सरकारी पद पर नहीं होना चाहिए।
लोकसभा की विशेष शक्तियाँ
लोकसभा कुछ विशेष शक्तियों का प्रयोग करती है:
- वित्तीय विधेयक: लोकसभा धन विधेयक को प्रस्तुत और पारित करती है। इसे केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
- अविश्वास प्रस्ताव: लोकसभा कार्यपालिका को हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है। यदि अविश्वास प्रस्ताव पारित होता है, तो सरकार गिर जाती है।
- संविधान संशोधन: लोकसभा संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- महत्वपूर्ण प्रश्न: सदस्य प्रश्न पूछकर कार्यपालिका को उत्तरदायी बना सकते हैं।
राज्यसभा
राज्यसभा का गठन
राज्यसभा भारतीय संसद का ऊपरी सदन है।
सदस्य बनने की योग्यताएँ
राज्यसभा के सदस्यों के लिए कुछ आवश्यक योग्यताएँ हैं:
- भारत का नागरिक होना चाहिए।
- आयु 30 वर्ष होनी चाहिए।
राज्यसभा की शक्तियाँ
राज्यसभा की शक्तियाँ निम्नलिखित हैं:
- समान्य विधेयकों पर विचार: राज्यसभा समान्य विधेयकों पर विचार कर सकती है और उन्हें पारित कर सकती है।
- संविधान संशोधन: यह राज्यसभा भी संविधान संशोधन के लिए प्रस्ताव रख सकती है।
- कार्यपालिका पर नियंत्रण: राज्यसभा प्रश्न पूछकर और प्रस्ताव प्रस्तुत करके कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है।
- राज्य के हितों की रक्षा: राज्यसभा राज्यों के हितों की रक्षा करती है और राज्यों के मुद्दों पर चर्चा करती है।
विधेयक
विधेयक की परिभाषा
विधेयक वह प्रारूप है जिसे कानून के रूप में प्रस्तावित किया जाता है। विधेयक की प्रक्रिया विभिन्न चरणों में होती है।
विधेयक के प्रकार
विधेयक मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:
- सरकारी विधेयक:
- यह विधेयक सरकार के किसी मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इसमें शामिल हैं:
- साधारण विधेयक: जो किसी नए कानून के निर्माण के लिए प्रस्तावित होता है।
- धन विधेयक: जो किसी वित्तीय लेन-देन या कर से संबंधित होता है।
- गैर-सरकारी विधेयक:
- यह संसद के किसी अन्य सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। यह भी साधारण या संविधान संशोधन विधेयक हो सकता है।
विधेयक बनाने की प्रक्रिया
विधेयक बनाने की प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में होती है:
- प्रथम वाचन: विधेयक का पहला पाठ किया जाता है।
- द्वितीय वाचन: समिति स्तर पर चर्चा होती है।
- तृतीय वाचन: अंतिम रूप से विधेयक पर मतदान होता है।
- दूसरे सदन में प्रक्रिया: विधेयक को दूसरे सदन में प्रस्तुत किया जाता है और वहाँ भी चर्चा होती है।
- राष्ट्रपति की स्वीकृति: विधेयक को राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत किया जाना आवश्यक है।
दलबदल
दलबदल उस स्थिति को कहा जाता है जब कोई सदस्य अपने दल के निर्देशों के खिलाफ मतदान करता है या दल की सदस्यता छोड़ता है।
दलबदल निरोधक कानून
1985 में, 52वें संविधान संशोधन के तहत दलबदल निरोधक कानून बनाया गया। इस कानून के तहत, यदि किसी सदस्य ने दलबदल किया, तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है और उसे किसी भी राजनीतिक पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।
निष्कर्ष
विधायिका लोकतंत्र का आधार है और यह जनता के हितों का प्रतिनिधित्व करती है। भारतीय संसद का द्व chambers ढांचा सुनिश्चित करता है कि सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो और कानून बनाने की प्रक्रिया में संतुलन बना रहे। विधायिका के कार्य, शक्तियाँ और उसके सदस्यों की योग्यताएँ इसे एक प्रभावी और उत्तरदायी सरकारी अंग बनाते हैं।
यह नोट्स विधायिका के महत्व और उसके कार्यों को समझने में मदद करेंगे, जो कि लोकतंत्र के संचालन के लिए आवश्यक हैं। भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में, विधायिका न केवल कानून बनाने का कार्य करती है, बल्कि यह कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन भी स्थापित करती है। इसके माध्यम से, जनता की आवाज संसद तक पहुंचती है, जिससे लोकतंत्र को मजबूती मिलती है।