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जय जवान जय किसान कविता (लेखक – श्री महेश गोलवार) – एक पथिया डोंगल महुवा खोरठा कविता | JSSC CGL Khortha Notes

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जय जवान जय किसान कविता (लेखक – श्री महेश गोलवार) – एक पथिया डोंगल महुवा खोरठा कविता

जय जवान जय किसान लेखक - श्री महेश गोलवार पुस्तक - एक पथिया डोंगल महुआ Khortha Notes BY Jharkhand Exam Prep
जय जवान जय किसान लेखक – श्री महेश गोलवार

 अर्थ :

राष्ट्र का आन मान किसान है और देश के जवानों का प्राण भी किसान है।  क्योंकि किसानों के उगाए गए अनाज से ही जवानों को ताकत मिलता है, तभी वह दिन  रात हमारी प्राणों की रक्षा करते हैं।  कामकाज से सारा जगत थक हार कर उब  जाता है पर देश के रीड का हड्डी किसान एवं जवान कभी नहीं थकते, कभी नहीं रुकते हैं।  चाहे कैसा भी मौसम  हो, किसान काम में लगे ही रहते हैं और जवान देश की सुरक्षा  में।

चाहे समुद्री लहरों और आकाश की गर्जना का आवाज घनघोर हो, चाहे ठंड बहुत ज्यादा हो, या गर्मी का ताप असहनीय हो , तलवार की धार की तरह बर्षा के  बूंदों का मार भी, किसान का शरीर पर कोई असर नहीं कर सकता।  किसान और जवान बहुत ज्यादा वीर और बहुत ज्यादा धीर (सहनशक्ति ) वाले है।  

जब देश पर शत्रु का आक्रमण होता है, तो जवान खून की नदियां बहा देता है, साथ ही कभी-कभी वह भी शत्रु के हाथों पकड़े जाते हैं और प्राणों की बलिदान दे देते हैं। जिस तरह जवान खून की होली खेलते हैं उसी तरह किसान भी अपने कष्टों के साथ ही समय को व्यतीत करता  है।  वे दोनों अपना दुख किसी को नहीं बताते हैं और बिना डरे, बिल्कुल निडर होकर  जीवन को व्यतीत करता  है।

देश के हित के लिए जो हमेशा खड़े होकर मरने के लिए रात दिन तैयार रहते हैं। सर झुका के उनके पैरों में ही मेरा नमन है।   जो किसान देश का पेट भरने के लिए मेहनत करते हैं, मेरा पूजा उन्हीं के प्रति है।  उनका जन्म सफल हो और उनका मरण भी महान हो।

भारतीय संस्कृति का जो इतना ख्याल रखता है, देश के जवान जो इतने मेहनत करते हैं, बहादुर वही है- वही जवान, वही किसान। ज्ञान का विद्वान सासतरीयो है लेकिन आज प्रत्येक युवा के बोली में ललकार है।  

विदेशों में भी भारत के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, पदक मिलने के बावजूद भी उन्होंने उसका कभी घमंड नहीं किया।  राज भोंकते हुए जीवन को व्यतीत करने के बजाए, कष्ट में ही अपने जीवन को जिया।  इस युग के यह कैसे त्यागी है, हम लोगों को भी उन्हीं का अनुसरण करना चाहिए, जय जवान जय किसान।

राष्ट्रकर आन मान देश कर किसान सोब 

देसक जवान कर परान हयँ किसान सोब 

कामें जगत उबे, मगर उबे नाय जाने किसान 

देसकर बीसी (रीढ़ का हड्डी ) लागे, सोब जवान सोब किसान

समुन्दरक देवकर (समुद्री लहर ) गागानिक(आकाश )  आवाज घोर (ज्यादा ) 

हाड़ केपवा जाड़, कही गरमीकर ताव (ताप) जोर 

तरवाइरक धार साहवा जांगरा (शक्ति ) किसान कर 

बरखाकर माइर सहवा गतरा(शरीर ) किसान कर 

खूगे वीर- खूभे धीर, इ जवान आर किसान ।

सतरुक लोहू वोहाय संतरे धारायें जवान

 थामें सोप सोप गतर हंसुवा हाथे किसान

खेले जवान लोहूक होली, कूटा लेखे जीव जाइन 

कसट काइट काइट काल काटइत रहे किसान 

चुप सधबा बोड निडरा सोभे जवान आर किसान

दुसमन कर देइख आरो उमइग उमइग उठे वीर 

काया भुजक (मजबूत ) बोले कोइ पथरे कुवाँ चासा धीर 

पइत सांसे देसक पूजायँ मगन रहय पारे जवान 

जोजना के सुधार रूप देहे वेव्हारे किसान 

देसकर नौनिहाल (खुश ) रहे जवान आर, किसान

बिपइत देइख संगोकर बजरतरी(मजबूत ) डांट मन 

चांडय (तेजी से ) पिघलय मोम लेखे होवे लागऽहे नरम, 

मुखल जगतकर पुकार सुइन के किसान भाय 

राखल-रूखल धान, चाउर छोहे (बच्चा )  देहे लुटाय 

हदक भीतर मांजा नरम काठुर कायायें कोमल प्रान

सतरुकर छाती रुप मांचाय चढ़ी लहुलुहान 

सोभे बाखे सोने से जइसन सुरुज महान 

वजर मुठाय हरक मुइठ धरी भुइ विदाइर के 

हाथिक घँचाय माहुत (मुकुट ) तरी सोभे भाइ किसान 

मुख सान्तिक गोड़ असल एखनिये जवान-  किसान 

देस हितक तरे खाड़ा मोरे लागी राइत दिन 

मुंड झुकवी सारधायें हामे ताकर गोड़ ठिन 

देसक पेट भोरे ले बरत जे किसान लेल 

हामर पूजा लेवे जुकुर सोहे ले तो ओहे 

ओखिन कर जनम साफल ओखिनेक मोरन महान

भारतीय संस्कृतिकर जे खियाल राखल करे 

देसक जे लाल निते मिहनत करल करे 

बहादुर वोहे वोहे जवान किसानों वहे 

गियान कर विद्वान सासतरीयो आहे 

वोली वहे लांलकर आइझ चढ़ल पइत जवान

जीव देलक विदेसें जे आपन भारत देस ले 

पदक दे मातल नाय  जे भारत देस ले 

राज भोगक गादाय सादाय काइट देलक दिन जे 

केसन तेआगी रहे ई जुगेक मानुस से 

हामीनो ओखर घेयाने फुइरछावा जोरे तान 

जय जवान जय किसान।

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