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संघवाद: JAC Class 10 Civics Chapter 2 Notes

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संघवाद (JAC Class 10 Civics Notes): संघवाद का सिद्धांत एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और प्रशासनिक प्रणाली है, जो विभिन्न स्तरों पर सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण सुनिश्चित करता है। इस प्रणाली में केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारें शामिल होती हैं, जो मिलकर एक संपूर्ण राजनीतिक ढांचे का निर्माण करती हैं। इस अध्याय में, हम संघवाद की परिभाषा, विशेषताएँ, प्रकार, भारत में संघीय व्यवस्था, और विभिन्न सूचियों की विस्तृत चर्चा करेंगे।

TextbookNCERT
ClassClass 10 Notes
SubjectCivics
ChapterChapter 2
Chapter Nameसंघवाद
Categoryकक्षा 10 Civics नोट्स
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WebsiteJharkhand Exam Prep
संघवाद: JAC Class 10 Civics Chapter 2 Notes

संघवाद का अर्थ

संघवाद का सामान्य अर्थ है संगठित रहना। इसे सरलता से समझें तो, “संघ” का अर्थ है संगठन और “वाद” का अर्थ है विचार। इसलिए संघवाद एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें विभिन्न राजनीतिक इकाइयाँ मिलकर एक संगठन का निर्माण करती हैं।

संघवाद में दो स्तर की सरकारें होती हैं:

  1. केंद्रीय सरकार (संघीय स्तर): यह संपूर्ण देश के लिए नीतियाँ और कानून बनाती है।
  2. राज्य सरकारें (प्रांतीय स्तर): ये अपने-अपने क्षेत्रों में शासन करती हैं और स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती हैं।

संघीय शासन व्यवस्था

संघीय शासन व्यवस्था में विभिन्न स्तरों पर सत्ता का वितरण होता है। यह एक ऐसा ढाँचा है जिसमें विभिन्न सरकारें स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं, जबकि उनके बीच शक्तियों और जिम्मेदारियों का स्पष्ट बंटवारा होता है।

इस व्यवस्था में, आमतौर पर एक केंद्रीय सरकार होती है जो राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को संभालती है, और राज्य सरकारें होती हैं जो स्थानीय मामलों का ध्यान रखती हैं। दोनों स्तर की सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में स्वतंत्र होती हैं, और इस प्रकार वे अपने-अपने तरीके से काम करती हैं।

संघीय शासन व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ

संघीय व्यवस्था में निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ होती हैं:

  1. सत्ता का बंटवारा: केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का स्पष्ट बंटवारा होता है।
  2. स्वतंत्रता: दोनों स्तर की सरकारें अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में स्वतंत्र होती हैं।
  3. संविधान की व्याख्या: अदालतों को संविधान और सरकारों के अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार होता है।
  4. वित्तीय स्वायत्तता: राजस्व के विभिन्न स्रोतों के माध्यम से वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित की जाती है।
  5. विविधताओं का सम्मान: यह प्रणाली विभिन्न क्षेत्रीय विविधताओं का सम्मान करती है और देश की एकता को बढ़ावा देती है।

संघवाद की चुनौतियाँ

संघवाद के साथ कुछ चुनौतियाँ भी जुड़ी हुई हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

  1. केंद्रीय सरकार की प्रबलता: कभी-कभी केंद्रीय सरकार अधिक शक्तिशाली हो जाती है, जिससे राज्य सरकारों की स्वतंत्रता सीमित हो जाती है।
  2. संविधान संशोधन का अधिकार: संविधान में संशोधन करने का अधिकार केवल केंद्रीय सरकार के पास होता है, जिससे राज्य सरकारों की भूमिका कमजोर हो जाती है।
  3. धन संबंधी अधिकार: धन संबंधी शक्तियाँ अक्सर केंद्रीय सरकार के पास होती हैं, जिससे राज्य सरकारों को वित्तीय संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है।
  4. अनावश्यक हस्तक्षेप: केंद्रीय सरकार कभी-कभी राज्य सरकारों के मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप करती है, जिससे प्रशासन में बाधा उत्पन्न होती है।

संघवाद के प्रकार

संघवाद के विभिन्न प्रकार हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

  1. साथ आकर संघ बनाना: इसमें दो या अधिक स्वतंत्र इकाइयाँ मिलकर एक बड़ी इकाई का गठन करती हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया।
  2. साथ लेकर संघ बनाना: इसमें एक बड़े देश द्वारा अपने आंतरिक विविधताओं को ध्यान में रखते हुए राज्यों का गठन किया जाता है। इस प्रकार के संघ में केंद्रीय सरकार अधिक शक्तिशाली होती है, जैसे कि भारत और जापान।

एकात्मक और संघात्मक सरकारों के बीच का अंतर

एकात्मक शासन व्यवस्था

  • शक्ति का केंद्रीकरण: इस व्यवस्था में सभी शक्तियाँ केंद्र सरकार के पास होती हैं।
  • संविधान संशोधन: संविधान में संशोधन करने का अधिकार केवल केंद्र सरकार को होता है।
  • एक ही नागरिकता: इसमें एक ही नागरिकता होती है, और केंद्र सरकार राज्यों से शक्तियाँ ले सकती है।

संघात्मक शासन व्यवस्था

  • शक्ति का वितरण: इस व्यवस्था में शक्तियाँ विभिन्न स्तरों पर विभाजित होती हैं।
  • संविधान संशोधन: संविधान में संशोधन करने के लिए केंद्रीय और राज्य सरकारों की सहमति आवश्यक होती है।
  • दोहरी नागरिकता: कई संघीय देशों में नागरिकता का द्वंद्व होता है।

भारत की संघीय व्यवस्था

भारत की संघीय व्यवस्था का गठन विभिन्न रजवाड़ों के विलय के बाद हुआ। इसमें केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों का एक ढाँचा बनाया गया। भारतीय संविधान ने दो स्तरीय शासन व्यवस्था का प्रावधान किया, जिसमें बाद में पंचायत और नगरपालिका के रूप में एक तीसरे स्तर को जोड़ा गया।

भारत में संघीय व्यवस्था के प्रमुख पहलू

  1. संविधान का निर्माण: भारत का संविधान संघीय शासन व्यवस्था का आधार है।
  2. शक्तियों का बंटवारा: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विधायी शक्तियों का बंटवारा तीन सूचियों में किया गया है:
  • संघ सूची: इसमें रक्षा, विदेशी मामले, बैंकिंग, संचार और मुद्रा जैसे राष्ट्रीय महत्व के विषय शामिल हैं। केंद्र सरकार केवल इन विषयों पर कानून बना सकती है।
  • राज्य सूची: इसमें पुलिस, व्यापार, कृषि और सिंचाई जैसे प्रांतीय और स्थानीय महत्व के विषय शामिल हैं। केवल राज्य सरकारें इन विषयों पर कानून बना सकती हैं।
  • समवर्ती सूची: इसमें शिक्षा, विवाह, उत्तराधिकार जैसे विषय शामिल हैं, जिन पर दोनों सरकारें कानून बना सकती हैं। लेकिन यदि दोनों के कानूनों में टकराव होता है, तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है।

अवशिष्ट शक्तियाँ

अवशिष्ट शक्तियाँ वे हैं, जो उपरोक्त तीन सूचियों में नहीं आती हैं। इन पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास होता है, और ये शक्तियाँ संविधान के तहत निर्धारित की गई हैं।

संघीय व्यवस्था का संचालन

भाषायी राज्य

भाषा के आधार पर राज्यों का गठन भारत की संघीय प्रणाली की पहली चुनौती थी। विभिन्न भाषाओं के आधार पर राज्यों के निर्माण से प्रशासन में सुधार हुआ और विभिन्न संस्कृतियों को पहचान मिली।

भारत की भाषा नीति

भारत में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है, साथ ही 21 अन्य भाषाओं को अनुसूचित भाषा का दर्जा मिला है। अंग्रेजी को राजकीय भाषा माना गया है, जो कि विशेषकर गैर-हिंदी भाषी राज्यों के लिए आवश्यक है।

केंद्र-राज्य संबंध

केंद्र और राज्य सरकारों के बीच संबंध कैसे रहेंगे, यह इस बात पर निर्भर करता है कि शासक दल और नेता कैसे कार्य करते हैं। एक समय था जब एक ही पार्टी केंद्र और अधिकांश राज्यों में शासन करती थी, जिससे राज्य सरकारों ने अपने अधिकारों का प्रभावी ढंग से प्रयोग नहीं किया।

गठबंधन सरकार

गठबंधन सरकार वह सरकार है जो एक से अधिक राजनीतिक दलों के मिलकर बनती है। यह स्थिति संघीय ढाँचे में अधिक स्वायत्तता और सत्ता की साझेदारी को बढ़ावा देती है।

अनुसूचित भाषाएँ

भारत में 22 भाषाएँ हैं जिन्हें भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में रखा गया है। ये भाषाएँ विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में बोली जाती हैं और भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

भारत में भाषाई विविधता

भारत में भाषाई विविधता अत्यधिक है। 1991 की जनगणना के अनुसार, भारत में 1500 से अधिक भाषाएँ हैं, जिन्हें कुछ प्रमुख भाषाओं के समूह में वर्गीकृत किया गया है। इस विविधता को देखते हुए, भारतीय संविधान में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है, जो भारतीय संस्कृति और पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं।

भारत में विकेंद्रीकरण

भारत एक विशाल देश है, और यहाँ पर विभिन्न स्तरों पर शासन चलाना एक चुनौती है। विकेंद्रीकरण के माध्यम से, स्थानीय मुद्दों का समाधान स्थानीय स्तर पर किया जा सकता है।

पंचायती राज

गाँवों में स्थानीय शासन की व्यवस्था को पंचायती राज कहते हैं। यह व्यवस्था ग्रामीण स्तर पर स्वशासन सुनिश्चित करती है।

1992 के पंचायती राज व्यवस्था के प्रमुख प्रावधान

  • स्थानीय स्वशासी निकायों के चुनाव नियमित रूप से कराना।
  • अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण।
  • हर राज्य में चुनाव कराने के लिए स्वतंत्र राज्य चुनाव आयोग का गठन।

ग्राम पंचायत और पंचायत समिति

  • ग्राम पंचायत: प्रत्येक गाँव या ग्राम समूह की एक पंचायत होती है जिसमें कई सदस्य और एक अध्यक्ष होता है।
  • पंचायत समिति: कई ग्राम पंचायतें मिलकर पंचायत समिति का गठन करती हैं। इसके सदस्यों का चुनाव उस इलाके के सभी पंचायत सदस्य करते हैं।

जिला परिषद

जिले की सभी पंचायत समितियों का मिलन जिला परिषद का गठन करता है। इसका प्रमुख स्थानीय राजनीति का प्रमुख होता है और इसमें विभिन्न सदस्यों का चुनाव होता है।

नगर निगम

नगरपालिका

और नगर निगम जैसे स्थानीय निकाय शहरों में स्थानीय शासन की संस्थाएँ हैं। ये नागरिकों की दैनिक आवश्यकताओं और विकास कार्यों का ध्यान रखती हैं।

निष्कर्ष

संघवाद भारतीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण आधार है। यह देश में क्षेत्रीय विविधताओं को सम्मानित करते हुए एकता को बनाए रखने में सहायक है। भारतीय संघीय व्यवस्था में विभिन्न स्तरों पर शक्तियों का वितरण किया गया है, जो न केवल शासन की गुणवत्ता में सुधार करता है, बल्कि नागरिकों की भागीदारी को भी बढ़ावा देता है।

संक्षेप में, संघवाद एक ऐसी राजनीतिक प्रणाली है जो न केवल विभिन्न सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण करती है, बल्कि यह विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषाई समूहों के बीच संतुलन भी बनाए रखती है। इससे न केवल भारतीय लोकतंत्र मजबूत होता है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि हर नागरिक की आवाज सुनी जाए और उसकी आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाए।

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