संविधान क्यों और कैसे (Political Science Class 11 Notes): भारतीय संविधान, देश की राजनीतिक और सामाजिक संरचना का आधार है। यह संविधान न केवल हमारे अधिकारों और कर्तव्यों को परिभाषित करता है, बल्कि यह सरकार की कार्यप्रणाली और उसके विभिन्न अंगों के बीच संतुलन भी सुनिश्चित करता है। इस अध्याय में, हम संविधान के विभिन्न पहलुओं को समझेंगे, जैसे कि संविधान का क्या अर्थ है, इसकी आवश्यकता, संविधान सभा का गठन, भारतीय संविधान निर्माण की प्रक्रिया, और इसके विभिन्न कार्य।
Textbook | NCERT |
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Class | Class 11 Notes |
Subject | Political Science |
Chapter | Chapter 1 |
Chapter Name | संविधान क्यों और कैसे |
Category | कक्षा 10 Political Science नोट्स |
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Website | Jharkhand Exam Prep |
संविधान क्या है?
संविधान एक लिखित दस्तावेज है, जो किसी भी देश की शासन व्यवस्था के लिए मूलभूत नियमों और कानूनी मानदंडों का संग्रह होता है। यह देश की राजनीति और समाज की संरचना को निर्धारित करता है। संविधान द्वारा स्थापित नियमों का पालन सभी नागरिकों और सरकार को करना होता है, जिससे एक स्वस्थ और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना होती है।
संविधान का मूल उद्देश्य सरकार को नियंत्रित करना और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है। यह सुनिश्चित करता है कि सरकार अपने कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखे।
संविधान के प्रकार
संविधान मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:
1. लिखित संविधान
लिखित संविधान वह है, जो एक विशेष सभा द्वारा लिखा गया हो और जो स्पष्ट रूप से दस्तावेजित हो। इसका उदाहरण भारत, अमेरिका और जापान के संविधान हैं। लिखित संविधान में सभी नियम और कानून स्पष्ट रूप से दर्ज होते हैं, जिससे लोगों को उनकी जानकारी हासिल करना आसान होता है।
2. अलिखित संविधान
अलिखित संविधान वह है, जो परंपराओं, अनुबंधों और ऐतिहासिक दस्तावेजों पर आधारित होता है। इसे किसी संविधान सभा द्वारा नहीं लिखा जाता। इसके उदाहरण में ब्रिटेन, न्यूजीलैंड और इज़राइल के संविधान शामिल हैं। अलिखित संविधान समय के साथ विकसित होता है और इसमें सामाजिक मानदंडों और कानूनी प्रथाओं का समावेश होता है।
संविधान के कार्य
संविधान के कई महत्वपूर्ण कार्य हैं:
1. सरकारी ढांचे की स्थापना
संविधान तीन प्रमुख सरकारी अंगों—विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका—की स्थापना करता है। यह अंग एक-दूसरे के कार्यों और शक्तियों को संतुलित करते हैं, जिससे एक प्रभावी शासन प्रणाली का निर्माण होता है।
2. शक्तियों का विभाजन
संविधान विभिन्न अंगों के बीच शक्तियों का सही विभाजन करता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई एक अंग अत्यधिक शक्तिशाली नहीं हो जाता, जिससे तानाशाही की संभावनाएं कम होती हैं।
3. नागरिकों के अधिकारों की रक्षा
संविधान नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है। यह अधिकार सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दोनों क्षेत्रों में लागू होते हैं, और यदि इनका उल्लंघन किया जाता है, तो नागरिकों को न्यायालय में जाने का अधिकार होता है।
4. सामाजिक न्याय और समानता
संविधान एक न्यायपूर्ण और समान समाज की स्थापना के लिए महत्वपूर्ण है। यह सभी नागरिकों को समान अवसर प्रदान करता है और विभिन्न प्रकार के भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
5. आपसी संबंधों का विनियमन
संविधान सरकार के अंगों के बीच संबंधों को विनियमित करता है, साथ ही नागरिकों और सरकार के बीच संबंधों को भी स्पष्ट करता है। इससे प्रशासनिक पारदर्शिता और जिम्मेदारी सुनिश्चित होती है।
संविधान की आवश्यकता
संविधान की आवश्यकता के कई कारण हैं:
1. सामाजिक तालमेल
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, और विभिन्न समुदायों के बीच तालमेल बनाने के लिए संविधान आवश्यक है। यह विभिन्न जातियों, धर्मों और संस्कृतियों के बीच सामंजस्य स्थापित करता है।
2. जनता का विश्वास
संविधान जनता के बीच आपसी विश्वास पैदा करने के लिए मूलभूत नियमों का समूह प्रस्तुत करता है। जब लोग जानते हैं कि उनके अधिकार सुरक्षित हैं, तो वे अपने समाज में अधिक सक्रिय और सकारात्मक भूमिका निभाते हैं।
3. अंतिम निर्णय का अधिकार
संविधान यह निर्धारित करता है कि अंतिम निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होगी। यह सरकार और नागरिकों के बीच संतुलन स्थापित करता है।
4. न्यायपूर्ण समाज की स्थापना
संविधान एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए अनिवार्य है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर मिलें।
संविधान सभा का इतिहास
संविधान सभा का विचार सबसे पहले ब्रिटिश नागरिक सर हनरी मेन ने प्रस्तुत किया था। विश्व में पहली संविधान सभा 1786 में अमेरिका के फिलाडेल्फिया में बनी थी, जिसमें 13 राज्यों ने भाग लिया। इसके बाद, 1789 में फ्रांस में भी संविधान सभा का गठन हुआ।
भारतीय संविधान सभा
भारतीय संविधान सभा की आवश्यकता महसूस की गई, जब भारत ने स्वतंत्रता की ओर कदम बढ़ाए। इसका विचार M.N. राय ने दिया था।
- 1895: स्वराज विधेयक में संविधान सभा का पहला उल्लेख मिलता है, जो बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व में तैयार किया गया था।
- 1922: महात्मा गांधी ने संविधान सभा की आवश्यकता के बारे में पहली बार सार्वजनिक रूप से बात की।
- 1924: पं. मोतीलाल नेहरू ने संविधान सभा की मांग की, और स्वराज दल ने इस मुद्दे को उठाया।
- 1940: ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने कहा कि भारत का संविधान भारत के लोग स्वयं बनाएंगे।
भारतीय संविधान निर्माण प्रक्रिया
संविधान निर्माण की प्रक्रिया में कई चरण शामिल थे:
1. क्रिप्स मिशन (1942)
ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल के नेतृत्व में, क्रिप्स मिशन भारत भेजा गया। इसका उद्देश्य भारत के राजनीतिक गतिरोध को हल करना था। हालांकि, इस मिशन का वास्तविक उद्देश्य भारतीयों को युद्ध में सहयोग देने के लिए लुभाना था।
2. संविधान सभा का गठन (1946)
कैबिनेट मिशन के अंतर्गत, भारतीय संविधान सभा का चुनाव जुलाई 1946 में हुआ। इस चुनाव में कुल 389 सदस्य शामिल किए गए थे, जिनमें से 292 प्रतिनिधि ब्रिटिश भारत से और 93 प्रतिनिधि भारतीय रियासतों से थे।
3. संविधान सभा के अधिवेशन
संविधान सभा का उद्घाटन 9 दिसम्बर 1946 को हुआ। इस बैठक में डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को अस्थायी अध्यक्ष चुना गया।
- पहला अधिवेशन: इसमें 209 सदस्य शामिल हुए।
- दूसरा अधिवेशन: 11 दिसम्बर 1946 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष चुना गया।
4. संविधान का प्रारूप
29 अगस्त 1947 को डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में संविधान का प्रारूप तैयार किया गया। इसे 21 फरवरी 1948 को संविधान सभा में प्रस्तुत किया गया।
5. अंतिम अधिनियम
26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान को अंगीकृत किया गया, जिसमें 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 8 अनुसूचियाँ थीं। इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया।
संविधान निर्माण में समय और लागत
भारतीय संविधान को बनाने में कुल 2 वर्ष, 11 महीने, और 18 दिन लगे, और इसमें 166 बैठकें हुईं। इस प्रक्रिया में लगभग 64 लाख रुपये खर्च हुए।
संविधान की विशेषताएँ
भारतीय संविधान में कई महत्वपूर्ण विशेषताएँ हैं:
1. जन प्रतिनिधियों द्वारा निर्मित
संविधान को भारतीय नागरिकों द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों ने बनाया है, जो इसकी वैधता और प्रासंगिकता को सुनिश्चित करता है।
2. लोकतांत्रिक और समाजवादी
यह संविधान एक लोकतांत्रिक, समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष गणराज्य का निर्माण करता है, जो नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को स्पष्ट करता है।
3. स्वतंत्र न्यायपालिका
संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को भी सुनिश्चित किया गया है, जिससे न्याय के प्रवाह में कोई बाधा उत्पन्न न हो।
4. नीति निर्देशक तत्व
संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख किया गया है, जो सरकार को सामाजिक और आर्थिक न्याय की दिशा में कार्य करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं।
भारतीय संविधान के स्रोत
भारतीय संविधान का लगभग 75 प्रतिशत अंश भारत शासन अधिनियम 1935 से लिया गया है। इसके अतिरिक्त, विभिन्न देशों की संवैधानिक व्यवस्थाओं से भी कई बातें समाहित की गई हैं:
1. ब्रिटिश संविधान
ब्रिटिश संविधान से भारतीय संविधान में चुनावी प्रक्रिया, संसद का स्वरूप, और कानून के शासन का विचार शामिल किया गया है।
2. अमेरिकी संविधान
अमेरिकी संविधान से मौलिक अधिकारों की सूची और न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति ली गई है।
3. आयरिश संविधान
आयरिश संविधान से नीति निर्देशक तत्वों को शामिल किया गया है।
4. फ्रेंच संविधान
फ्रेंच संविधान से स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का सिद्धांत लिया गया है।
5. कनाडाई संविधान
कनाडाई संविधान से संघात्मक व्यवस्था का स्वरूप और अवशिष्ट शक्तियों का सिद्धांत लिया गया है।
प्रस्तावना
संविधान की प्रस्तावना में संविधान निर्म
ाताओं के उद्देश्यों का सारांश प्रस्तुत किया गया है। यह प्रस्तावना देश की दिशा और उसकी सामाजिक, राजनीतिक, और आर्थिक संरचना का आधार है। इसमें निम्नलिखित प्रमुख तत्व शामिल हैं:
- न्याय: सभी नागरिकों के लिए न्याय की स्थापना।
- स्वतंत्रता: सभी नागरिकों को स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा।
- समानता: सभी नागरिकों को समान अवसर और अधिकार।
- बंधुत्व: सभी भारतीयों के बीच एकता और भाईचारे की भावना।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह हमारे देश की पहचान और संस्कृति का प्रतीक है। यह नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को स्पष्ट करता है और एक न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज की स्थापना की दिशा में मार्गदर्शन करता है। भारतीय संविधान का अध्ययन करना न केवल हमारे लोकतंत्र को समझने में मदद करता है, बल्कि यह हमें एक जिम्मेदार नागरिक बनने की प्रेरणा भी देता है।
महत्वपूर्ण बिंदु
- भारतीय संविधान में कुल 12 अनुसूचियाँ हैं, जो विभिन्न विषयों को समाहित करती हैं।
- संविधान सभा में महिलाओं के लिए 9 प्रतिनिधि सदस्य थे, जो समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
- प्रारूप समिति की अध्यक्षता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने की, जिन्होंने संविधान के विभिन्न पहलुओं पर गहन विचार किया।
यह अध्याय हमें संविधान के महत्व, इसकी आवश्यकता, और इसके निर्माण की प्रक्रिया के बारे में गहन समझ प्रदान करता है। भारतीय संविधान हमारे जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित करता है और हमें एक बेहतर समाज की दिशा में प्रेरित करता है।