औद्योगीकरण का युग (NCERT Class 10 Notes): औद्योगीकरण का युग मानव सभ्यता के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इसने न केवल तकनीकी प्रगति की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए, बल्कि समाज की संरचना और अर्थव्यवस्था में भी गहराई से परिवर्तन किया।
इस अध्याय का अध्ययन करने से हमें यह समझ में आता है कि औद्योगीकरण ने मानव जीवन को कैसे प्रभावित किया और यह आज की औद्योगिक दुनिया का आधार कैसे बना।
इस नोट्स से आप औद्योगीकरण के विभिन्न पहलुओं को समझ सकते हैं, जैसे कि इसके प्रभाव, मजदूरों की जिंदगी, और भारत में इसका विकास। इस विषय पर गहराई से अध्ययन करने से आपको इस युग के महत्व का आभास होगा।
Textbook | NCERT |
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Class | Class 10 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 4 |
Chapter Name | औद्योगीकरण का युग |
Category | कक्षा 10 इतिहास नोट्स हिंदी में |
Medium | हिंदी |
1. औद्योगीकरण का परिचय
औद्योगीकरण का युग एक महत्वपूर्ण कालखंड है, जब मानव सभ्यता ने हस्तनिर्मित वस्तुओं के उत्पादन से औद्योगिक उत्पादन की ओर कदम बढ़ाया। इस युग में फैक्ट्रियों, मशीनों, और तकनीक के विकास ने समाज की संरचना को गहराई से प्रभावित किया। 1760 से 1840 के बीच के इस युग को औद्योगीकरण का युग कहा जाता है, क्योंकि इसी समय में कृषि आधारित समाज औद्योगिक समाज में परिवर्तित हो गया।
2. पूर्व औद्योगीकरण का काल
औद्योगीकरण से पहले का काल जिसे पूर्व औद्योगीकरण कहा जाता है, वह समय है जब यूरोप में औद्योगिक परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं था। इस समय गाँवों में छोटे-छोटे कार्यशालाओं में सामान तैयार किया जाता था। गाँवों में बने इन सामानों को व्यापारी शहरों में ले जाकर बेचते थे। यह प्रक्रिया व्यापार के प्राचीन तरीकों को दर्शाती है, जब लोग अपनी आवश्यकताओं के अनुसार वस्तुएँ बनाते और एक-दूसरे से व्यापार करते थे।
3. आदि-औद्योगीकरण
औद्योगीकरण का एक प्रारंभिक चरण होता है जिसे आदि-औद्योगीकरण कहा जाता है। इस समय बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन बिना फैक्ट्रियों के होता था। यह चरण वह था जब कुछ व्यवसायी गाँवों में जाकर कारीगरों से सामान बनवाते थे और उसे शहरों में बेचते थे। इस दौरान कई औद्योगिक क्रांतियों की नींव रखी गई, जो बाद में औद्योगीकरण की दिशा में अग्रसर हुई।
4. व्यापारियों का गाँवों की ओर ध्यान
इस समय, शहरों में व्यापार और क्राफ्ट गिल्ड की ताकत बढ़ गई थी। ये गिल्ड नए व्यापारियों के लिए बहुत कठिनाइयाँ पैदा कर रही थीं। नतीजतन, व्यापारी गाँवों की ओर रुख करने लगे। गाँवों में काम करना उनके लिए अधिक फायदेमंद था, क्योंकि वहाँ कोई प्रतिस्पर्धा नहीं थी और उन्हें अधिकतम लाभ मिल सकता था।
5. कारखानों की शुरुआत
इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति का आरंभ 18वीं सदी के मध्य से हुआ। पहला कारखाना 1730 के दशक में खोला गया। धीरे-धीरे, 18वीं सदी के अंत तक पूरे इंग्लैंड में फैक्ट्रियाँ खुलने लगीं। इस समय कपास का उत्पादन प्रमुख उद्योग बन गया। 1760 में ब्रिटेन ने 2.5 मिलियन पाउंड कपास का आयात किया, जो 1787 तक बढ़कर 22 मिलियन पाउंड हो गया।
6. कारखानों से लाभ
फैक्ट्रियों के खुलने से कई सकारात्मक परिणाम मिले। श्रमिकों की कार्यकुशलता में वृद्धि हुई और नई मशीनों की मदद से अधिक और बेहतर उत्पाद बनाए जाने लगे। औद्योगीकरण की शुरुआत मुख्य रूप से सूती कपड़ा उद्योग से हुई, जो कि उस समय की सबसे महत्वपूर्ण वस्तु थी।
7. औद्योगिक परिवर्तन की रफ्तार
औद्योगीकरण का मतलब केवल फैक्ट्रियों का विकास नहीं था। कपास और सूती वस्त्र उद्योग के साथ-साथ लोहा और इस्पात उद्योग में भी तेजी आई। औद्योगीकरण के पहले दौर (1840 के दशक तक) में सूती कपड़ा उद्योग सबसे अग्रणी था। रेलवे के विस्तार ने लोहा और इस्पात उद्योग को भी तेजी से बढ़ने का अवसर दिया।
8. नए उद्योगपति परंपरागत उद्योगों की जगह क्यों नहीं ले सके?
हालाँकि औद्योगीकरण ने कई उद्योगों को जन्म दिया, लेकिन यह पारंपरिक उद्योगों को समाप्त नहीं कर पाया। इसके पीछे कुछ प्रमुख कारण थे:
- कम मजदूर: औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की संख्या कम थी।
- धीमा प्रौद्योगिकी बदलाव: प्रौद्योगिकी में बदलाव की गति धीमी थी।
- महँगी मशीनें: मशीनों में निवेश करने के लिए पूंजी की आवश्यकता होती थी।
- गृह उद्योग: उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा गृह उद्योग के माध्यम से होता था।
9. हाथ का श्रम और वाष्प शक्ति
इस समय श्रमिकों की कोई कमी नहीं थी, और इसलिए उद्योगपति महँगी मशीनों में पूंजी लगाने के बजाय श्रमिकों पर निर्भर रहने लगे। श्रमिकों की प्रचुरता ने मशीनों के उपयोग को धीमा कर दिया।
10. मजदूरों का जीवन
मजदूरों का जीवन बहुत कठिन था। रोजगार की भारी कमी के कारण नौकरी पाने के लिए संबंधों पर निर्भर रहना पड़ता था। कई उद्योगों में मौसमी काम की वजह से श्रमिकों को लंबे समय तक बेरोजगार रहना पड़ता था।
11. स्पिनिंग जैनी
स्पिनिंग जैनी, जिसे जेम्स हरगिव्स ने 1764 में विकसित किया, एक महत्वपूर्ण उपकरण था जिसने कपड़ा उत्पादन में क्रांति ला दी।
12. मशीनों का विरोध
19वीं सदी के मध्य में जब श्रमिकों की बेरोजगारी बढ़ी, तो उन्होंने नई प्रौद्योगिकी के खिलाफ विद्रोह किया। जब ऊन उद्योग में स्पिनिंग जैनी का प्रयोग शुरू हुआ, तो मजदूरों ने मशीनों पर हमले किए।
13. भारत में औद्योगीकरण
भारत में औद्योगीकरण की प्रक्रिया उपनिवेशीय काल में शुरू हुई। भारतीय कपड़ा उद्योग, जो पहले विश्व बाजार में प्रमुख था, धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगा। यूरोपीय कंपनियों ने भारतीय बाजार में अपनी पकड़ बनाई और बुनकरों की स्थिति कमजोर हुई।
14. यूरोपीय कंपनियों का प्रभाव
ईस्ट इंडिया कंपनी के आने के बाद भारतीय बुनकरों की स्थिति खराब हो गई। बुनकरों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिलता था, और वे अन्य खरीदारों से व्यापार करने में असमर्थ हो गए।
15. भारतीय कपड़ों का निर्यात
19वीं सदी की शुरुआत से भारत से कपड़ों के निर्यात में कमी आने लगी। भारतीय कपड़े 1811-12 में 33% की हिस्सेदारी रखते थे, जो 1850-51 में मात्र 3% रह गई।
16. फैक्ट्रियों की शुरुआत
भारत में औद्योगीकरण की प्रक्रिया 1854 में बम्बई में पहले सूती कपड़ा मिल के उद्घाटन से शुरू हुई। धीरे-धीरे अन्य शहरों में भी मिलें खुलने लगीं।
17. मजदूरों की स्थिति
1901 में भारतीय फैक्ट्रियों में 5,84,000 मजदूर कार्यरत थे। 1946 में यह संख्या बढ़कर 24,36,000 हो गई। अधिकांश मजदूर अस्थायी थे और फसल कटाई के समय गाँव लौट जाते थे।
18. जॉबर की भूमिका
जॉबर ऐसे व्यक्ति होते थे जो मजदूरों की भर्ती करते थे। वे गाँव से श्रमिकों को लाते और उन्हें काम के लिए शहर में व्यवस्थित करते थे।
19. औद्योगिक विकास का अनूठापन
भारत में औद्योगिक उत्पादन पर यूरोपीय कंपनियों का वर्चस्व था। भारतीय व्यवसायियों ने ऐसे उद्योग स्थापित किए जो ब्रिटिश उत्पादों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते थे।
20. लघु उद्योगों का विकास
भारत में बड़े उद्योगों का हिस्सा कम था, और अधिकांश श्रमिक लघु उद्योगों में काम करते थे। 1911 में रजिस्टर्ड कंपनियों में काम करने वाले श्रमिकों का हिस्सा 5% था, जो 1931 में 10% हो गया।
21. हाथ से बने उत्पाद
बीसवीं सदी में हाथ से बने उत्पादों की मांग बढ़ी। बुनकरों ने अपनी तकनीकों में सुधार किया और नए उपकरणों का उपयोग शुरू किया।
22. बाजार में प्रतिस्पर्धा
उत्पादकों ने ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए विज्ञापनों का सहारा लिया। मैनचेस्टर के उत्पादक अपने उत्पादों पर ‘मेड इन मैनचेस्टर’ का लेबल लगाते थे, जो गुणवत्ता का प्रतीक माना जाता था।
23. निष्कर्ष
औद्योगीकरण का युग मानव सभ्यता के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इसने न केवल तकनीकी प्रगति की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए, बल्कि समाज की संरचना और अर्थव्यवस्था में भी गहराई से परिवर्तन किया।
इस अध्याय का अध्ययन करने से हमें यह समझ में आता है कि औद्योगीकरण ने मानव जीवन को कैसे प्रभावित किया और यह आज की औद्योगिक दुनिया का आधार कैसे बना।