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भारत में राष्ट्रवाद: NCERT Class 10 Notes, History Chapter 2

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यूरोप में राष्ट्रवाद (NCERT Class 10 Notes): भारत में राष्ट्रवाद का इतिहास एक गहन और विविधतापूर्ण यात्रा है, जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक घटनाओं से भरी हुई है। इस अध्याय में, हम राष्ट्रवाद के उदय के विभिन्न चरणों का विश्लेषण करेंगे, जिनमें प्रथम विश्व युद्ध, खिलाफत आंदोलन, असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह, और किसान, श्रमिक, और आदिवासी आंदोलनों की महत्वपूर्ण गतिविधियाँ शामिल हैं।

TextbookNCERT
ClassClass 10
SubjectHistory
ChapterChapter 2
Chapter Nameभारत में राष्ट्रवाद
Categoryकक्षा 10 इतिहास नोट्स हिंदी में
Mediumहिंदी
भारत में राष्ट्रवाद: NCERT Class 10 Notes, History Chapter 2

राष्ट्रवाद की पृष्ठभूमि

समयरेखा

  • 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम: यह आंदोलन भारतीयों में पहली बार सामूहिक राष्ट्रवाद की भावना को जगाने का काम करता है।
  • 1870 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा “वंदेमातरम” की रचना: यह गीत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बन गया।
  • 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना: बंबई में हुई इस स्थापना ने भारतीय राजनीतिक मंच पर एक नया अध्याय जोड़ा।
  • 1905 में बंगाल का विभाजन: इस विभाजन ने भारतीय एकता की भावना को मजबूत किया।
  • 1915 में महात्मा गांधी का भारत लौटना: गांधीजी की वापसी ने स्वतंत्रता आंदोलन को एक नया दिशा दी।

राष्ट्रवाद का अर्थ

राष्ट्रवाद को एक ऐसा सिद्धांत माना जाता है, जिसमें किसी राष्ट्र के प्रति प्रेम, एकता और एक समान चेतना की भावना होती है। यह विभिन्न सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक तत्वों से जुड़ा होता है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, राष्ट्रवाद की भावना ने विभिन्न भाषाई और सांस्कृतिक समूहों को एकत्रित किया।

प्रथम विश्व युद्ध और उसका प्रभाव

युद्ध के कारण

प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान, भारत में रक्षा संबंधी खर्चों में वृद्धि हुई। इससे टैक्स बढ़ाए गए और आम जनता पर आर्थिक बोझ बढ़ा। इस युद्ध ने भारतीय समाज में गंभीर समस्याएँ उत्पन्न की, जैसे महंगाई और भोजन की कमी।

प्रतिक्रिया और आंदोलन

युद्ध के बाद, भारतीयों ने स्वशासन की माँग की, जिसे ब्रिटिश सरकार ने ठुकरा दिया। इसके परिणामस्वरूप, 1919 में रॉलट एक्ट का निर्माण किया गया, जिसने भारतीयों के नागरिक अधिकारों को दमन करने के लिए कठोर कानूनों का सहारा लिया।

जलियांवाला बाग हत्याकांड

जलियांवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल 1919) ने पूरे देश में उबाल ला दिया। जनरल डायर ने एक शांतिपूर्ण सभा पर गोलियाँ चलाईं, जिससे सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए। इस घटना ने भारतीयों में ब्रिटिश सरकार के प्रति घृणा और नफरत को और बढ़ा दिया।

खिलाफत आंदोलन

खिलाफत आंदोलन (1919-1924) का प्रारंभ मुहम्मद अली और शौकत अली द्वारा किया गया। यह आंदोलन तुर्की के खलीफा की रक्षा के लिए था और इसमें हिंदू-मुस्लिम एकता का महत्वपूर्ण योगदान था। महात्मा गांधी ने इसे समर्थन दिया, क्योंकि वह जानते थे कि बिना हिंदू और मुस्लिम के सहयोग के, कोई भी बड़ा आंदोलन सफल नहीं हो सकता।

असहयोग आंदोलन

महात्मा गांधी का दृष्टिकोण

महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन (1920) का नेतृत्व किया, जिसका मुख्य उद्देश्य भारतीयों द्वारा अंग्रेजी शासन का सहयोग खत्म करना था। उन्होंने भारतीयों से अपील की कि वे सरकारी संस्थाओं का बहिष्कार करें और विदेशी वस्तुओं का विरोध करें।

आंदोलन की चुनौतियाँ

हालांकि असहयोग आंदोलन ने व्यापक समर्थन प्राप्त किया, लेकिन कुछ स्थानों पर इसे हिंसक घटनाओं का सामना करना पड़ा, जैसे कि चौरी चौरा में हुई हिंसा (1922), जिसके कारण गांधीजी को आंदोलन वापस लेना पड़ा।

नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन

नमक यात्रा

महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से दांडी तक की यात्रा शुरू की। यह यात्रा नमक कानून के खिलाफ थी, जिसमें गांधीजी ने नमक का उत्पादन कर कानून का उल्लंघन किया। यह घटना सविनय अवज्ञा आंदोलन की एक महत्वपूर्ण कड़ी थी।

आंदोलन का विस्तार

सविनय अवज्ञा आंदोलन में भारतीय जनता ने व्यापक भागीदारी की। इसमें किसानों, श्रमिकों और महिलाओं की भागीदारी विशेष रूप से उल्लेखनीय थी। इस आंदोलन ने भारतीयों में एकजुटता की भावना को और मजबूत किया।

विभिन्न सामाजिक समूहों का योगदान

किसान और श्रमिक आंदोलन

किसानों और श्रमिकों ने अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाई। विभिन्न आंदोलनों ने उन्हें अपनी समस्याओं के समाधान के लिए एकजुट किया। महात्मा गांधी और अन्य नेताओं ने उनके संघर्षों का समर्थन किया।

आदिवासी आंदोलन

आदिवासियों ने भी अपने अधिकारों की रक्षा के लिए कई आंदोलन किए। इन आंदोलनों ने स्थानीय संसाधनों के लिए उनके संघर्ष को मजबूती दी और उन्हें एक सामूहिक पहचान दी।

राजनीतिक समूहों की गतिविधियाँ

इस अवधि में कई राजनीतिक समूहों ने अपनी गतिविधियाँ बढ़ाई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मुस्लिम लीग और अन्य छोटे दलों ने अपने-अपने तरीके से स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। कांग्रेस ने धीरे-धीरे एक प्रमुख भूमिका निभाई, जबकि मुस्लिम लीग ने अपनी अलग पहचान बनाने का प्रयास किया।

निष्कर्ष

भारत में राष्ट्रवाद की यात्रा एक गहन संघर्ष और साहस का प्रतीक है। यह विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक घटनाओं से प्रभावित हुआ, जिसने भारतीय समाज में एकजुटता और सहयोग की भावना को बढ़ावा दिया। महात्मा गांधी जैसे नेताओं की भूमिका ने न केवल राष्ट्रवाद को आकार दिया, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को भी एक नई दिशा दी। इस प्रक्रिया में, भारत ने एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण किया, जो विविधताओं में एकता को अपनाता है और अपने नागरिकों के लिए स्वतंत्रता की आकांक्षा रखता है।

भारत का राष्ट्रवाद न केवल एक राजनीतिक आंदोलन था, बल्कि यह एक सामाजिक परिवर्तन का भी माध्यम था, जिसने भारतीय समाज को एक नई पहचान और दिशा दी।

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