भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक (NCERT Class 10 Notes): इस अध्याय में हम भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रकों का विस्तार से अध्ययन करेंगे। हम जानेंगे कि आर्थिक गतिविधियाँ किस प्रकार वर्गीकृत की जाती हैं, प्राथमिक, द्वितीयक, और तृतीयक क्षेत्र के विशेषताएँ और उनके बीच के अंतर को समझेंगे। इसके अलावा, हम बेरोजगारी की समस्याओं, ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005, संगठित और असंगठित क्षेत्रों की विशेषताओं, तथा सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भूमिका पर भी चर्चा करेंगे।
Textbook | NCERT |
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Class | Class 10 |
Subject | Economics |
Chapter | Chapter 2 |
Chapter Name | भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक |
Category | कक्षा 10 इतिहास नोट्स हिंदी में |
Medium | हिंदी |
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Website | Jharkhand Exam Prep |
आर्थिक गतिविधि
आर्थिक गतिविधियाँ वे प्रक्रियाएँ हैं जिनके माध्यम से व्यक्ति अपने जीवनयापन के लिए आय प्राप्त करता है। यह गतिविधियाँ विभिन्न क्षेत्रों में फैली होती हैं, जिनका उद्देश्य वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन और वितरण करना है। आर्थिक गतिविधियों को समझने के लिए हमें उन क्षेत्रों की पहचान करनी होगी जिनमें ये गतिविधियाँ होती हैं।
अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक
भारतीय अर्थव्यवस्था को मुख्यतः तीन क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जाता है:
- प्राथमिक क्षेत्रक
- द्वितीयक क्षेत्रक
- तृतीयक क्षेत्रक
प्राथमिक क्षेत्रक
प्राथमिक क्षेत्रक प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके वस्तुओं का उत्पादन करता है। इसे कृषि क्षेत्र भी कहा जाता है। यहाँ उत्पादन का मुख्य स्रोत भूमि और जल है। इसमें कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, और वनोपज शामिल हैं।
विशेषताएँ:
- कृषि आधारित: प्राथमिक क्षेत्रक का मुख्य ध्यान कृषि उत्पादन पर होता है। यह क्षेत्र ग्रामीण आबादी के लिए रोजगार प्रदान करता है।
- नैसर्गिक संसाधनों पर निर्भर: इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का जीवन प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर होता है।
- विकास की गति: तकनीकी प्रगति के साथ, यह क्षेत्र भी धीरे-धीरे विकास कर रहा है। नए कृषि उपकरणों और उन्नत तकनीकों का उपयोग इसे अधिक उत्पादक बना रहा है।
द्वितीयक क्षेत्रक
द्वितीयक क्षेत्रक में प्राथमिक क्षेत्रक से प्राप्त कच्चे माल को लेकर नई वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। इसे औद्योगिक क्षेत्रक भी कहा जाता है। इस क्षेत्र में विभिन्न उद्योगों, फैक्ट्रियों, और निर्माण कार्यों का समावेश होता है।
विशेषताएँ:
- उद्योग पर आधारित: द्वितीयक क्षेत्रक का फोकस उत्पादन और विनिर्माण पर होता है। यहाँ कच्चे माल को तैयार माल में परिवर्तित किया जाता है।
- शहरीकरण: यह क्षेत्र मुख्यतः शहरी क्षेत्रों में विकसित होता है, जहाँ उत्पादन की अधिक संभावनाएँ होती हैं।
- विकास में योगदान: इस क्षेत्र की वृद्धि से औद्योगिक विकास होता है, जो देश की आर्थिक प्रगति में योगदान करता है।
तृतीयक क्षेत्रक
तृतीयक क्षेत्रक प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियों में सहायता करता है। इसे सेवा क्षेत्रक भी कहा जाता है। इसमें बैंकिंग, परिवहन, स्वास्थ्य सेवाएँ, शिक्षा, और अन्य सेवाएँ शामिल होती हैं।
विशेषताएँ:
- सेवा आधारित: यह क्षेत्र लोगों को विभिन्न सेवाएँ प्रदान करता है, जो जीवन की गुणवत्ता को सुधारने में मदद करती हैं।
- तेजी से विकास: तकनीकी प्रगति और वैश्वीकरण के कारण तृतीयक क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है। यह अब देश के जीडीपी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है।
- रोजगार के अवसर: यह क्षेत्र बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर प्रदान करता है, खासकर युवा पीढ़ी के लिए।
तीनों क्षेत्रकों में ऐतिहासिक बदलाव
1972 में, स्वतंत्रता के बाद भारतीय जीडीपी में प्राथमिक क्षेत्रक का सबसे अधिक योगदान था। समय के साथ, कृषि पद्धतियों में सुधार और औद्योगिक विकास के कारण द्वितीयक क्षेत्रक को महत्व मिला। अब, तृतीयक क्षेत्रक ने 2011-2012 में भारतीय जीडीपी का लगभग 60% हिस्सा बना लिया है, जो इस क्षेत्र के विकास की ओर इशारा करता है।
विकास की प्रवृत्तियाँ
- कृषि में सुधार: नई कृषि तकनीकों और फसल विविधता ने प्राथमिक क्षेत्रक को मजबूत बनाया।
- औद्योगिकीकरण: औद्योगिक नीति ने द्वितीयक क्षेत्रक के विकास को बढ़ावा दिया, जिससे अधिक उत्पादन और रोजगार का सृजन हुआ।
- सेवा क्षेत्र का उभार: सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के विकास के कारण तृतीयक क्षेत्र में नई सेवाओं का समावेश हुआ।
सकल घरेलू उत्पाद (GDP)
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) उस वर्ष में प्रत्येक क्षेत्र द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य है। यह आर्थिक गतिविधियों की कुल मात्रा का एक संकेतक है। GDP की गणना करते समय, सभी आर्थिक क्षेत्रकों के उत्पादनों को जोड़ा जाता है।
GDP का महत्व
- आर्थिक स्वास्थ्य का संकेत: GDP एक देश की आर्थिक सेहत को दर्शाता है। उच्च GDP विकास का संकेत है, जबकि निम्न GDP आर्थिक संकट को।
- नीतिगत निर्णय: सरकारें और नीति निर्मातागण GDP के आंकड़ों का उपयोग अपने नीतिगत निर्णयों को आकार देने के लिए करते हैं।
दोहरी गणना
जब राष्ट्रीय आय की गणना के लिए सभी उत्पादों के उत्पादन मूल्य को जोड़ा जाता है, तो दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न होती है। इसमें कच्चे माल का मूल्य भी जुड़ जाता है, जिससे वास्तविक आंकड़ों में हेरफेर होता है। इस समस्या का समाधान केवल अंतिम उत्पाद के मूल्य की गणना करने में है।
दोहरी गणना के उदाहरण
उदाहरण के लिए, यदि एक किसान अपने खेत में गेहूँ उगाता है और फिर इसे एक आटा चक्की को बेचता है, तो यदि हम गेहूँ और आटे दोनों की कीमत जोड़ते हैं, तो यह दोहरी गणना होगी। इसलिए, केवल आटे की कीमत को ही मान्यता दी जानी चाहिए।
बेरोज़गारी की समस्याएँ
प्रच्छन्न बेरोज़गारी
प्रच्छन्न बेरोज़गारी तब होती है जब लोग किसी कार्य में लगे होते हैं लेकिन उनकी संख्या आवश्यकता से अधिक होती है। इसका मतलब है कि कुछ लोग काम कर रहे हैं, लेकिन उनका योगदान उत्पादन में बहुत कम है।
कृषि क्षेत्र में: यहाँ प्रच्छन्न बेरोज़गारी की समस्या अधिक है। उदाहरण के लिए, यदि एक खेत में 10 लोग काम कर रहे हैं, लेकिन केवल 5 लोगों की आवश्यकता है, तो अन्य 5 लोग वास्तव में बेरोज़गार हैं।
शिक्षित बेरोज़गारी
जब शिक्षित लोग अपनी योग्यता के अनुसार काम नहीं कर पाते, तो इसे शिक्षित बेरोज़गारी कहा जाता है। यह समस्या विशेष रूप से उन क्षेत्रों में अधिक होती है जहाँ शिक्षित व्यक्तियों के लिए रोजगार के अवसर कम हैं।
ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) 2005 में लागू किया गया। यह अधिनियम ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी को कम करने के लिए बनाया गया है। इसके तहत, ग्रामीण बेरोजगार लोगों को हर वर्ष 100 दिन का रोजगार प्रदान करने की गारंटी दी जाती है।
अधिनियम के मुख्य प्रावधान
- रोजगार की गारंटी: ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को न्यूनतम 100 दिनों का रोजगार मिलेगा।
- बेरोज़गारी भत्ता: यदि रोजगार नहीं मिलता है, तो बेरोज़गारी भत्ता दिया जाएगा।
- महिलाओं के लिए आरक्षण: एक तिहाई रोजगार महिलाओं के लिए सुरक्षित है।
संगठित और असंगठित क्षेत्र
संगठित क्षेत्र
संगठित क्षेत्र में वे उद्यम आते हैं जहाँ रोजगार की अवधि निश्चित होती है। ये सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं और निर्धारित नियमों का पालन करते हैं।
विशेषताएँ:
- निश्चित वेतन: कर्मचारियों को समय पर वेतन मिलता है।
- स्वास्थ्य और पेंशन सुविधाएँ: कर्मचारियों को चिकित्सा सुविधाएँ और पेंशन मिलती हैं।
- सुरक्षित नौकरी: इस क्षेत्र में नौकरी सुरक्षित होती है।
असंगठित क्षेत्र
असंगठित क्षेत्र छोटे और बिखरे हुए उद्यमों से मिलकर बनता है। यहाँ प्रायः सरकारी नियमों का पालन नहीं किया जाता।
विशेषताएँ:
- कम वेतन: कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन मिलता है।
- कोई स्थिरता नहीं: रोजगार की अवधि और कार्य समय सीमा निश्चित नहीं होती।
- कोई लाभ नहीं: कर्मचारियों को स्वास्थ्य और पेंशन जैसी सुविधाएँ नहीं मिलतीं।
सार्वजनिक और निजी क्षेत्र
सार्वजनिक क्षेत्र
पारिस्थितिकी में सार्वजनिक क्षेत्र वह क्षेत्र है जहाँ सरकार का स्वामित्व होता है। इसमें अधिकांश परिसंपत्तियाँ सरकार के नियंत्रण में होती हैं और इसका उद्देश्य सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देना होता है।
निजी क्षेत्र
निजी क्षेत्र में परिसंपत्तियों का स्वामित्व व्यक्ति या कंपनियों के हाथ में होता है। यहाँ अधिकतम लाभ कमाना मुख्य उद्देश्य होता है।
दोनों क्षेत्रों के बीच अंतर
| विशेष
ता | सार्वजनिक क्षेत्र | निजी क्षेत्र |
---|---|---|
स्वामित्व | सरकार | व्यक्ति/कंपनी |
उद्देश्य | सामाजिक कल्याण | लाभ कमाना |
नियमन | सरकार द्वारा | बाजार के नियमों द्वारा |
बेरोज़गारी के प्रभाव
भारतीय अर्थव्यवस्था में बेरोज़गारी एक गंभीर समस्या बन चुकी है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या और रोजगार के अवसरों की कमी के कारण बेरोज़गारी की दर लगातार बढ़ रही है। यह सामाजिक और आर्थिक स्थिरता के लिए खतरा बन रही है।
बेरोज़गारी के कारण
- जनसंख्या वृद्धि: बढ़ती जनसंख्या के कारण रोजगार के अवसर नहीं मिल पाते।
- कौशल का अभाव: शिक्षा और कौशल विकास की कमी के कारण योग्य लोगों को भी रोजगार नहीं मिल पाता।
- अर्थव्यवस्था की स्थिति: आर्थिक मंदी के दौरान कंपनियाँ नए कर्मचारियों को रखने से कतराती हैं।
कृषि क्षेत्र की समस्याएँ
भारत में कृषि क्षेत्र कई समस्याओं का सामना कर रहा है।
प्रमुख समस्याएँ
- असिंचित भूमि: बड़ी संख्या में किसान बिना सिंचाई सुविधाओं के कृषि करते हैं, जिससे उत्पादन कम होता है।
- मौसम की अनिश्चितता: जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में अस्थिरता आ गई है, जिससे फसलों का नुकसान होता है।
- कर्ज का बोझ: किसान अक्सर ऋण में डूब जाते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है।
कृषि में रोजगार के उपाय
कृषि क्षेत्र में रोजगार सृजन के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
- कृषि उपकरणों के लिए ऋण: किसानों को आधुनिक उपकरण खरीदने के लिए ऋण की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए।
- सिंचाई सुविधाओं का विकास: सिंचाई परियोजनाओं का विकास करके कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- भंडारण की सुविधाएँ: किसानों को अपनी फसल को सुरक्षित रखने के लिए भंडारण सुविधाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
निष्कर्ष
भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रकों का अध्ययन करते हुए यह स्पष्ट होता है कि हर क्षेत्र का अपना महत्व है और ये सभी एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र न केवल आर्थिक विकास में सहायक हैं, बल्कि समाज में स्थिरता और रोजगार सृजन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आर्थिक नीतियों और योजनाओं का निर्माण करते समय इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखना आवश्यक है। सही नीतियों के माध्यम से हम बेरोज़गारी की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं और सभी क्षेत्रकों में संतुलित विकास की ओर बढ़ सकते हैं। इससे न केवल आर्थिक विकास होगा, बल्कि सामाजिक कल्याण भी सुनिश्चित होगा।