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महुआक भनिता कविता (लेखक – श्री अतुल चंद्र मुखर्जी) – एक पथिया डोंगल महुवा खोरठा कविता | JSSC CGL Khortha Notes

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महुआक मनिता कविता (लेखक – श्री अतुल चंद्र मुखर्जी ) – एक पथिया डोंगल महुवा खोरठा कविता

महुआक भनिता लेखक - श्री अतुल चंद्र मुखर्जी पुस्तक - एक पथिया डोंगल महुआ Khortha Notes BY Jharkhand Exam Prep
महुआक भनिता लेखक – श्री अतुल चंद्र मुखर्जी

भावार्थ : इस कविता में कवि अतुल चंद्र मुखर्जी ने महुवा फल (कोचरा )/फूल  के गुणों का बखान किया है।  कहते हैं कि महुआ रे महुआ तुम्हारे में कितना गुण है इतना ज्यादा गुण है, जिसका बखान हम शब्दो में नहीं कर सकते हैं,शब्द ही कम पड़ जायेंगे । तुम्हारे पेड़ का नाम हीरा की तरह है जिससे हमें गुड़, घी ,बंगन जीरा मिलता है। महुआ को उबालने  के बाद खाने में बहुत मजा आता है खुशी-खुशी लोग बांटकर  खाते हैं।  

महुआ के पेड़ को महुल कहते हैं, जिसके फायदे अनेक है।  उसके लकड़ी से खेती करने के लिए हल और जुवाइठ बनता है।  फिर मनुष्य जब मर जाता है, तो मरने के बाद उसके चिता में भी महुआ का प्रयोग लकड़ी के रूप में जलाने के लिए किया जाता है।  इसी तरह महुआ का फल को कोचरा कहते हैं जिसे लोग खाने के रूप में प्रयोग करते हैं।  उसके गोटा /बीज से कोचरा तेल बनता है जिसका प्रयोग छोटानगपुर क्षेत्र में घाटरा पीठा , आरबारा रोटी बनाने में किया जाता है।

महुआ- रे तोर में जो कते ना गुन होव, 

तो गुणेक सब बात कहे नाञ पारबोव।

तोर गाछ टाक नाम हीरा, 

जेकर से पावही गुर – घीव- बंगन जीरा ।

तोरा सिझावल परें, खाय में बड़ी मजाघरे,

खुशी-खुशी बांटी खात लोक घरें बाहरें।

तेतइ रचिंआ देले पारे, सवादे बाढ़ड़ चमत्कार

तोर गुनेक  कथा कहब  कतेक बार।

तोर गाछ टाक नाम महुल, फायदा सबके अति बहुल।

तोर फर टाक नाम कचरा, गीदर बुसक जनि मर्द सभे छोछरा ।

तोर गोटा से तेल हवेहे अति चमत्कार, कमियां सब मालिस करत दरद से भइ लाचार |

तोर तेल से छांकाय घाटरा आरबारा रोटी, छोटानगपुरेक सोंगत पइठवेक परिपाटी ।

 

बेटी घरे पारतायं देले समधिन हके टहटह गरब, 

तोर गुनेक कथा कते जे हम कह

तोर काठ से बनइ खेतीक जुवाइठ- हार

जेकर बिना किसान हवथ लाचारि

कालाली में गेल परे महक से नाक- मुंह भरे

मारा-मारी – गारागारी होवइ बड़ी बेसहब,

तोर गुनेक कथा कते जे हम कह

अतुल मासटरेक एहे भनिता

तोर लकड़ी से बनाई दिहा चिता

अंत काले सेइ चिता में सुखे सुतल रहक

महुआरे ! तोर गुनेक काथा कते जे हम कहब 

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