लोकगीत (Folk song) लोक सहित्य का अभिन अंग है, जो गेय रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी मोखिक रूप में चलते आ रही है। जिन्हें कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा लोक समाज गाता है और अपनाता है। सामान्यतः लोक में प्रचलित, लोक द्वारा रचित एवं लोक के लिए लिखे गए गीतों को लोकगीत कहा जा सकता है। लोकगीतों(Folk song) का रचनाकार अपने व्यक्तित्व को लोक समर्पित कर देता है। व्याकरण के नियमों की विशेष परवाह न करके सामान्य लोकव्यवहार के उपयोग में लाने के लिए मानव अपने आनन्द की तरंग में जो छन्दोबद्ध वाणी सहज उद्भूत करता है, वही लोकगीत(Folk song) है।
लोग गीत की परिभाषा –
डा0 देवेन्द्र सत्यार्थी – ‘‘कहाँ से आते हैं इतने गीत? स्मरण-विस्मरण की आँख-मिचोली से! कुछ अट्टहास से! कुछ उदास हृदय से! कहाँ से आते हैं इतने गीत? वास्तव में मानव स्वयं आश्चर्यचकित है। ये असंख्य गीत असंख्य कंठों से असंख्य धाराओं से सदियों से रहे हैं।’’
डा0 श्याम परमार – ‘‘स्त्री-पुरूष ने थक कर इसके माधुर्य में अपनी थकान मिटायी है, इसकी ध्वनि में बालक सोये हैं, जवानों में प्रेम की मस्ती आयी है, बूढ़ों ने मन बहलाये हैं, वैरागियों ने उपदेशों का पान कराया है, विरही युवकों ने मन की कसक मिटायी है, विधवाओं ने अपने एकांगी जीवन में रस पाया है, पथिकों ने थकावट दूर की है, किसानों ने अपने बड़े-बड़े खेत जोते हैं, मजदूरों ने विशाल भवनों पर पत्थर चढ़ाये हैं और मौजियों ने चुटकुले छोड़े हैं।’’
डॉ. सत्येन्द्र–‘“वह गीत जो लोक मानस की अभिव्यक्ति हों अथवा जिसमें लोक मानस भास भी हो लोक गीत के अन्तर्गत आएगा
मोहन कृष्णधर – “लोक गीत रस से परिपूर्ण बोल हैं
गाँधी जी के अनुसार – ” लोक गीतों में धरती गाती है, पहाड़ गाते हैं, नदियां गाती हैं, फसलें गाती हैं, उत्सव और मेले, ऋतुएँ और परम्पराएँ गाती हैं
सूर्यकरण पारीक-“आदिम मनुष्यों के गानों का नाम लोक गीत है। प्राचीन जीवन की, उसके उल्लास की, उसके उमंगों की, उसकी करुणा की, उसके समस्त सुख-दुःख की कहानी इनमें चित्रित है ।
रामचन्द्र शुक्ल – “लोक गीतों में जन-जीवन की सच्ची झाँकी निहित है
ए. एच. क्रेपी-“लोक गीत वे सम्पूर्ण गेय गीत हैं जिसकी रचना प्राचीन अनपढ़ जन में अज्ञात रूप से हुई है और जो यथेष्ट समय अतः शताब्दियों तक प्रचलन में रहा।
इस प्रकार लोकगीत (Folk song) परिभाषा का अर्थ है –
लोक सहित्य का एक भाग है,जो गीतात्मक रूप में है
लोकमानस में प्रचलित गीत है
लो लोक साहित्य लोक मानस की सहज और स्वाभाविक अभिव्यक्ति है।
यह अलिखित तथा मौखिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में चलती रहती है।
लोक गीत का रचनाकार अज्ञात रहता है।
लोक गीत लोक संस्कृति का वास्तविक प्रतिविम्ब है।
यह कृति न होकर श्रुति है।
यह भाषा विज्ञान और व्याकरणीय नियमों से मुक्त रहता है।
यह मनोमोदनी और मनस्तोषिनी अभिव्यक्ति है।
यह लोक विश्वास, परम्पराओं, प्रथाओं, पर्व-त्योहारों तथा रीति-रिवाज से सम्बन्धित है।
लोक गीत प्रायः प्रकृति तथा समाज को प्रतिविम्बित करता है।
लोक गीत मनोरंजन का एक साधन भी माना जाता है।
लोक गीत का महत्व
लोक गीत (Folk song) प्राचीन काल से चली आ रही मानव जीवन की आदिम परम्पराओं और उनके अवशेषों को संजोये रहता है। साथ ही इसमें लोक जीवन की समग्रता समाहित रहती है
इसकी विशद व्याख्या खोरठा लोक साहित्य के पुस्तक में निम्न रूप से की गयी है –
पुरातत्व:- लोकगीत (Folk song) मानव जीवन का आदिम काल के विषय में खोज करता है। मानव जीवन किस युग में किस प्रकार था, उसके रीति-रिवाज, रहन-सहन, भोजन सामग्री, विश्वास परम्पराएँ, कला और संगीत का अनुसंधान लोक लोक गीतों में करता है। लोक गीत में ऐसे अनेक विलुप्त कड़ियाँ छिपी रहती हैं, जो पुरा अन्वेषकों के लिए प्रेरक सिद्ध होती है।
- इतिहास:-
एक इतिहासकार के लिए भी लोक गीत उतना ही महत्व रखता है। इनके लोक गीतों में राजा, महाराजाओं, वीर कन्याओं, योद्धाओं का वर्णन मिलता है। इस प्रकार एक इतिहास लेखक के लिए तत्कालीन जीवन का लोक गीत के संकेत, मार्ग, निर्देशन, प्रतीकादि अनिवार्य रूप से निस्संदेह मिलता है।
- भाषा विज्ञान:-
लोकगीत (Folk song)लोक साहित्य का अभिन्न अंग है। भाषा विज्ञान की सामग्री तथा शब्द, पद, ध्वनि, शब्द के विकार, उत्कर्ष, अपकर्य आदि का अध्ययन लोकगीतों, लोककथाओं एवं लोकोक्तियों में प्रचुर मात्रा में मिलता है, जो भाषा के विकास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
- मनोविज्ञान:-
मानव की आशा, आकाक्षाएँ, मनःस्थिति तथा अन्य मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन हमें लोक गीत से ही प्राप्त होता है। लोक गीत में अभिव्यक्त लोक रूचि एवं विश्वास पर सामग्री हमें मिलती है।
- भूगोल:-
किसी क्षेत्र की नदियों, नगरों, प्रदेशों, व्यावसायिक केन्द्रों आदि का वर्णन हमें लोक गीत से मिलता है। लोक लोकगीतों में वनों, पर्वतों तथा छुपे हुए वनैले मार्गों, वन्य गुफाओं का पता समाहित रहता है। इस प्रकार एक भू शोधकत्र्ता के लिए लोक गीत में अपेक्षित सामग्री उपलब्ध रहती है।
- अर्थशास्त्र:-
प्राचीनकाल के अर्थव्यवस्था को जानने के लिए लोक गीत यथेष्ठ मार्ग निदर्शन करता है। प्राचीन काल में प्रचलित सिक्कों, मुहरों का वर्णन, विनिमय के सामग्रियों, जीवन-यापन हेतु अनिवार्य तत्वों आदि का वर्णन लोकगीतों में सन्निहित है। इसके अलावे अनाजों, व्यापार केन्द्रों, व्यापारिक भागों का भी संकेत लोक से प्राप्त होता है।
- शिष्ट साहित्य के निर्माण में सहायक:-
लोकगीत (Folk song) सकल काव्य की जननी है। मेरा तो यह भी मत है कि जिस समाज या समुदाय का लोक साहित्य जितना समृद्ध होगा उतना शिष्ट साहित्य सृजन की संभावना की प्रबलता मौजूद होगी। चूँकि खोरठा भाषा का लोक साहित्य काफी समृद्ध है। यही कारण है आज खोरठा भाषा विश्व के मंच पर भी अपना स्थान ग्रहण कर चुकी है। इसलिए संसार का वर्तमान शिष्ट साहित्य के निर्माण में लोक गीत की महता को नकारा नहीं जा सकता है।
- शिक्षा:- इसके अलावे जनसाधारण के लिए लोक गीत शिक्षाप्रद भी है।
- मनोरंजन:- लोक गीत मनोरंजन का एक साधन भी माना जाता है। लोकगीत हमारी जिन्दगी का नवीकरण करते हैं। पर्व-त्योहारों में लोकगीत एवं लोक संगीत की मधुर ध्वनि मानव के व्यस्त जीवन से आनंद दिलाती है। ये तनाव दुर करने में सहायक होते हैं। इस तरह लोक साहित्य न सिर्फ मानव रंजन करते हैं, अपितु मनोरंजन भी करते हैं।
लोकगीतों का वर्गीकरण
आदि मानव जब अपने सुख-दुःख से आन्दोलित हुआ होगा तभी उनके कंठ से लोकगीतों की धारा प्रस्फुटित हुई होगी। लोकगीतों के उद्गम से संबंधित डा0 देवेन्द्र सत्यार्थी के विचार माननीय हैं – ‘‘कहाँ से आते हैं इतने गीत? स्मरण-विस्मरण की आँख-मिचोली से! कुछ अट्टहास से! कुछ उदास हृदय से! कहाँ से आते हैं इतने गीत? वास्तव में मानव स्वयं आश्चर्यचकित है। ये असंख्य गीत असंख्य कंठों से असंख्य धाराओं से सदियों से रहे हैं।’’
डा0 श्याम परमार लिखते हैं – ‘‘स्त्री-पुरूष ने थक कर इसके माधुर्य में अपनी थकान मिटायी है, इसकी ध्वनि में बालक सोये हैं, जवानों में प्रेम की मस्ती आयी है, बूढ़ों ने मन बहलाये हैं, वैरागियों ने उपदेशों का पान कराया है, विरही युवकों ने मन की कसक मिटायी है, विधवाओं ने अपने एकांगी जीवन में रस पाया है, पथिकों ने थकावट दूर की है, किसानों ने अपने बड़े-बड़े खेत जोते हैं, मजदूरों ने विशाल भवनों पर पत्थर चढ़ाये हैं और मौजियों ने चुटकुले छोड़े हैं।’’
लोकगीतों के वर्गीकरण
डा0 आनन्द किशोर दांगी ‘खोरठा भाषा एक परिचय’ किताब में खोरठा लोकगीत (Folk song)का वर्गीकरन इस प्रकार किए हैं – ‘‘खोरठा लोकगीत के वरगीकरण कती कठीन हे। एकरा पइत विदवान आपन ढंगे बाट-खुट करल हथ। मकिन एकरा ई लखे बाट खुट करल जाइ पारे –
- संस्कारिक गीत
झंझाइन
बधाइ
नामकरन
सतइसा
कान छेदी
मुण्डन
अपपद्ध बिहा
मरने हरेनी
- मउसम गीत
भदरिआ झुमर
उदासी
डोहा
चांचर
टुसू
छुमता
खेमटा
छंग-छंगइया
- तेहार गीत
करम
सोहराइ
जीतिआ
खरजितिया
तिज
फगुआरी
छठमाता
नागपंचमी
गोबरधन
डेउठान
असाढ़ी आरो आरो
- देवताक गीत
हुनमान जी
काली माता
दुर्गा माता
तुलसी माता
जीतवाहन बाबा
भगवइति माइ
गांवा देइती
संतोषी माता आरे आरो
- काम करेक बेरां गीत
धान रोपनी
धान निकोनी
धान कटनी
डहर चलवा
धान कुटनी
जाता चलवइत
- सहिआरी गीत
- बालगीत आरो आरो।
शिवनाथ प्रमाणिक ‘खोरठा लोक साहित्य’ में लोकगीत (Folk song) का वर्गीकरण इस प्रकार किये है
- संस्कार संबंधी
- ऋतु संबंधी
- प्रकृति विषयक
- पर्व-त्योहार संबंधी
- श्रम संबंधी
- सहिआरी
- विविध
उपरोक्त वर्गीकरण के आधार लोकगीत देखे जा सकते हैं –