खोरठा भाषा क्षेत्र में अनेक खोरठा लोक कथा है,जो यंहा की भाषा संस्कृति की पहचान है। जिस कारण झारखण्ड में आयोजित प्रतोयोगिता में शामिल किया गया है। यंहा सात भाई और बहन (saat bhai or bahan)की लोक कथा खोरठा भासा में दिया गया है। इस कहानी में भाई और बहन का प्यार ,भाभियो के द्वारा ननंद को सतना तथा ननद को पशु पंक्षियों द्वारा सहायता करना इत्यादि कहानी में देखने को मिलती है –
saat bhai or bahan ( सात भाइ एक बहिन)
-सात भाईऔर ओकर एगो दुलरइति बहिन हेलय । माञ – बाप मोइरल हेल्थिन । सातो भाइ दुलारे बहिनके पोसले हला । सातो भायेक बिहा भइ गेल हलइन । दुलरोती बहिन के बिहा नाइ भेल हेल। भाई सब अपन बहिन के खूब पियार करो हेला । बेसी टान देइख सातो भोजीक बड़ी जरो लागला, ऊ सभ सोच हलइ जे बहिनेक पियारेक चलते मरदइन जनीक बेसी धेयान नाइ दे हथ से लेल बाहर से तो सब ननद के नुनी – नुनी कहतला मेनेक भितर – भितर कि तरि सुगा से छुटकारा पड़ता तकर उपाय सोचइत रहतला ।
सातों भाइ काम काज खातिर बाहर जाइक भोजाइक लेतारे सतवेक
एक बेर सातों भाइ काम काज खातिर बाहर जाइ लागला। जाइक सवइ सातो भाइ आपन आपन जनियइन के कहल्थिन ‘ सुगा हामनिक साधेक बहिन लागी हामनिएँ ओकर माँय – बाप । ओकर जइसे कोन्हों दुख नाँइ हवेक चाही । ” तकर बाद सातो भाइ घोडा चढला आर बनिजें चइल गेला । बिन मरदेक घारे जनिए भेला मालिक । सातो गोतनिक हाँथे घार – कारना अइलइ । तो जइसन मन तइसन खाइ – पीधे लागला । मेंतुक मइझली तनी परसिनाही हलिक , काहे जे ओकर नइहराँइ तनी बेसे चास – बारी आर चमक – दमक हलइ । ऊ सभे गोतनिक उसकुवइते रहतलइन जे सुगिया के एते दुलार देले ऊ मुड़ें चढ़तो । आर लुइर नाँइ सिखले आकर ससुर घारक लोकें सातो गोतनिक ढेंस लगाइके गाइर देबथिन । एहे बुझा मता करल बादे सातो गोतनी खुनुस खोजे लागल्थिन । सातो खइतला – पितला , मेंतुक सुगाक खोज पुछाइर कोइए नाइ करे । बेचारी सुगा खाइपियेक कोन्हो ठिकान नाइ । जे भउजी सब सुगा के नुनी – नुनी कह – हल्थिन , से सब अबरी ओकरों एह सुगिया कह लागल्थिान ।पियारसे नाइ हकावाथ ओए नाइ खोज बिन करता।
भोजाई लेतारे सतवेक (पानी भोइर आनेक)
अइसने एक दिन सातो गोतनी सुगा के एगो फुटल घइला दइके पानी भोइर आने कहल्थिन एहलो सुगिया , बाँध से भोइर घइला पानी लइ आन , तबे खुदी – चुनिक माँड ढुकचे ले देवउ । ” बेचारी सुगा घइला लइके बाँध गेलिक आर घाटें बइस फफक – फफइक कादे लागल
” सुन गेऽ सुन चरेंइयाँ हामर बड़ी दुख !
सातो भाइ बनिजे गेला ,
सातो भोजी बड़ी दुख देला आवा रे बाधेक बेंग ,
सुगा कांदो हो । ” सुगाक कादना सुइनके बांधेक बेंग सुगा ठिन आइके पुछे लागल्थिन- ” नुनी तोंञ काहे कांदे हैं ? ” सुगा आपन भूर घइला ऊ सभेक देखाइ के भोउजी सभेक कहल बात सुनाइ देली । तखन भुरकें – भुरके बेंग बइस गेला आर सुगा पानी भोइरके घार घुइर गेली । सातो गोतनी भोरल घइला देइखकें सुगा के खुदी- चुनिक माँड पीए दल्थिन । सुगा लोरो पोंछे आर माड़ो पीये ।
सुगा के बोन से लकड़ी आनेक
दोसर दिन सातो गोतनी बिहान्हीं सुगा के कहल्थिन एहलो सुगिया , बइसल – बइसल खइलें नदिक बालिओ नाँइ जुटतबउ आइज बोन से बिन – बांधनाक एक बोझा काठ लइ आन । तबे खुदी – चुनिक माड देवउ । ” फइर सुगा कांदल – कादल बोन बाटे सोझइली मेंतुक , बिन बाधनाक काठ लेगती तो लेगती कइसें ! एहे सोइच के बोनेक भीतर कांदे लागली
सुन गे सुन चरँइया ,
हमर बड़ी दुख ,
सातो भाय बनिजे गेला ,
सातो भोजी बडी दुख देला ।
आवा रे बोनेक साँप सुगा कांदो हो ।
करून कांदना सुइन बोनेक सभे जीउ – जंतु सुगा ठिन गोठाइ गेला । पुछल्थिन ” काहे कांदे हे सुगा ? ” आइक तखन सुगा आपन भौउजी सभेक बात कही देली । तखन एगो लंबा धामना साँप काले बेचाइ गेलई और कहलइ – आव सुगा ई बोझा उठाउ आर धिरे धिरे हेते राखिहें । सुगा बिन बांधनाक काठेक बोझा लइ घार घुरली । धिरे धिरे बोझा आगनोंड राखली तखन साँप बोझा से बाहराइ बोन घुइर आइल । भाउजी सब ननदेक लुइर देइखके मुँड हाँथ लइ लेला । तकर बाद ओकरों खुदी – चुनिक माँड देल्थिन । सुगा सुरइप – सुरइप माँड पीए लागली ।
घुइर दिन बिहान्हीं सातो गोतनी एगो जोतल बारी एक पियला सरसों छिटक सुगाक कहल्थिन ” एहलो सुगिया , सब सइरसा बीच के पइला भोर पारवे तो खुदी – चुनिक माँड देबो । ” सुगाक आँखिक आगुइँ आँधार बुझाइ लागलइ । सुगा जोतल बारी बइसक काद लागली सुन गे सुन चरइया…सुगा पइला लइके घार घुरली ।भोरल पइला देखके सातो गोवनी हाइचक ! अबरी करता तो करता की ? सब बुधी बयाध भइ गेलइन । सुगा के खुदी – चुनीक माँड दिअल बादें सातो गोतनी एक – एक माथा खटवे लागला जे अबरी कि उपाय करल जितइ । अइसने सोचइत बुझइत कुछ दिन बित गेल । सुगाक मने मेलड़ जे भउजी सब आर ओकरों नाँइ संतइबथिन । तखने एक दिन सातो गोतनी सुगा ठिन आइक दुलार से कहल्थिन ” नुनी सुगा , हामिन तोहरा जते बा दुख देलियो सब भुइल जिहा आर दादा सब के नोई सुनाइ दिहाक नुनी बड़ी दिन से डुमइर तियन घारे नाँइ भेल हई । चाला आइज डुमइर पारेले । ” परेमेक पियासल मानुस परेम पइले गइल जाइ । तइसने सुगा आपन भउजी सभेक संग खावा – पिया करल बादे पछिया लइके होंसल – खेलल डुमइर पारे चलली ।
डुमइर तोरेक
बोनेक भीतर एगो गाछे लुगदी रकम डुमइर फोरल हलइ । सातो गोतनी सुगा के ठेइल – धकइलके डुमइर गाछे चढाइ देल्थिन । जाउ ले सुगा डुमइर तोइर – तोइर गिरवे लागली , ताउ ले सातो गोतनी गाछेक चारों बाटें कोइर काँटा बाबला काँटा बोझाक – बोझा दइके घोइर देल्थिन । सुगा देइखकें हाइचक सातो गोतनी हिलल – हिलल घार घुरला आर सुगा एकाइ डुमरड़ गाछे रही गेलिक नाभेक जिगिस्ता करली मैंनेक सब बेकार । तखन सइ अरून बोने सुगा कांदे लागली
सुन गे सुन चॅरइयाँ ,
हमर बड़ी दुख ,
सातो भाइ बनिजें गेला .
सातो भाउजी बडी दुख देला ।
आवा रे परदेसी दादा .
सुगा कादो हो । ”
सुगाक कांदना सुइन बोनेक चरइँ चुनगुनी ,
पसु – पाखी कादे लागला ।
सातों भाई के घर आवेक
ताउ ले राइत भइ गेलइ । गाछेक डारी सुगा पाटाइक कांबइते रहली । सइये रातीं ओहे डहरें सातो भाइ बनिज से घुरऽ हला । सातो झन सइ डुमइर गाछेक तरे साँथाइ लागला । तखन छोट भाएक गातें एक – दू टिपका लोर गिरलइ । ई बात जखन ऊ भाइ सभेक सुनउलइन तखन ऊ सब लुआठी जलाइ गाछ उपरें ताके लागल्थिन तो ताकते रहला । ऊ सब देखल्थिन जे डुमइरेक डारी ऊ सभेक दुलरउति बहिन सुगा कादऽ ही । चाँडे़ – चाँडे काँटा – झोंटा के उसब उखराइ फेंकल्थिन आर सुगा के नाभाइ एके – एकें सब कइहनी सुनउल्थिन । सातो झन रागे काँपे लागलथ । झलफल सभीन घार अइलथ तो जनि सब बड़ी मान – खातिर करे लागल्थिन । सातो भायें सुगाक ठेकान पुछल्थिन तो जनी सब कहल्थिन जे ‘ नुनी बाहर बाटें खेले गेल हथ । एतना सुनबाई कि सातो भायेक राग नाँइ संभरलइ आर सातो जनिक दोमाठे लागल्थिन । सातो जनि माइ गो – बाप गो कइरके चिचिआइ लागल्थिन आर कहे लागल्थिन ” हामिन सोंचलो जे सुगा पर – घार जिता से ले उनखर लुइरेक परीखा कर – हलिए । ” साता भाई ऊ सभक छाइड देल्थिन मारे ले । ताव ले . सुगा आइक भोउजी सब के समरथन करलइन । तखन कुछ दिन सभीन हाँसी – खुसी से रहला । ताउ ले सुगा के जोर – नार पाहार धारी भेल । बिहाक दिने जखन सुगा बिदाइ भइके ससुर घार जाइ लागलइ तखन सातो भाय आर सातो गोतनी भोकडर – के कंदों लागला ।