‘कहावत (लोकोक्ति) (kahavat)जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, पहले बोलचाल की भाषा में बनती है, रूढ़ होती है, फिर वही अनेक बार अपनी लोकप्रियता के कारण साहित्य की भाषा में भी अपना आसन जमा लेती है। किन्तु साहित्य में आते-आते लोकोक्ति को बहुत समय लग जाता है।’’खोरठा भाषा में कहावत (लोकोक्ति) (kahavat) को लोक वाईन कहते है .लोक वाईन वैसी घटना के सादृश्य उत्पन होती है ,जब कभी कोइ घटना घटी हो ,उस घट्न के बाद वह कहावत (लोकोक्ति) (kahavat)बन जाता है . उदाहरण स्वरूप खपरी की भुंजनाठी चिन्हें? अर्थात जब खपरी में किसी चीज को भुना जाता है तो भुना के लिए भुंजनाठी (लकड़ी के छड़ी )का प्रयोग किया जाता है खपड़ी गर्म रहता है तो किसी चीज का भी भुंजनाठी (लकड़ी के छड़ी )रहे वह जलेगा ही इसीलिए कहा जाता है कि खपरी की भुंजनाठी चिन्हें? जिसका अर्थ होता है ,स्थानानुसार वस्तु का नाश होना तय है .
लोक कहावत (लोकोक्ति) (kahavat) का महत्व केवल भावों से स्पष्ट प्रकाशन और भाषा के सूक्ष्मतम रूप होने से नहीं होता। इनके प्रयोग से भाषा में प्रभावोत्पादकता और कथन में तीव्रता आ जाती है, जो किसी भी साहित्य का एक गुण माना जाता है।
खोरठा क्षेत्रों में एक ही अर्थ का बोध कराने वाली कहावत (लोकोक्ति) (kahavat)का विभिन्न रूप मिलता है। भाषा और शैली में विषमता होते हुए भी भाव में एकता होती है। खोरठा कहावतों में नीति, शिष्टाचार और स्वास्थ्य से संबंधित कहावतों के अतिरिक्त, खेती-बाड़ी, पशु-पक्षी, सामाजिक संबंधों इत्यादि के विषय के कहावत भरे पड़े हैं। खोरठा कहावत (लोकोक्ति) (kahavat) को इस प्रकार देखा जा सकता है –
अ –
अंधरा में काना राजा – अकिंचन का महत्व
अंधराक जइसन दिन, तइसन राइत – समान रूप से
अंगरी धरइते बांइह धरा – छोटे से बड़े तक की पहुँच
अजवाइर सुखे गधा मेलना – सुखानन्द
अरंडी बोने बिलाइर बाघ – अकिंचन का महत्व
अनकर धने बिरम राजा – दूसरे की वस्तु पर अधिकार
आ –
आपन गाँवे कुकुर राजा – क्षेत्र विशेष पर अधिकार
आपरूचि भोजन, पररूचि सिरिंगार – अपनी और परायी की रूची
आइझेक बनिया काइलेक सेठ – कम पूँजी से अधिक पूँजी बनाना
आपने भांड़ तो परोसियो भांड़ – अपने जैसे पड़ोसी
आरो मुंडरी बेल तर – धोखा खाना
आगु नाथ न पेछु पगहा – बिना सहारा का
इ –
इंगितेक भाखा के बुझे – इशारा की भाषा
ई –
ईंटा उटा करल्हीं बेस – व्यस्त रहना
ईंटा सेटा कहा भार – बेकार की बात न बोलना
उ –
उठ छँउड़ी तोर बीहा – जल्दीबाजी काम करना
उखर गातें तेल चप-चप – गरीबों की आवभगत
उगाल सुरूज डुइब जाइ – सब दिन बराबर नहीं
ए –
एगो के सुहो, एगो के दुहों – बराबर नजर नहीं
एका पुता चेंगा मुता – एकलौता पुत्र का अधिक लाड़ प्यार
एक आँखी काजर, एक आँखी कारी – भिना भेद करना
एक डारहा हरदी गोटे गाँव खोखी – दुर्लभ वस्तुओं की अधिक मांग
क –
कानी गायेक भिनू बथान – दोषी आदमी का पृथक विचार
काम पियारा कि चाम पियारा – कर्मवाद की श्रेष्ठता
कुकुरेक पेटे घीव पोचे – एक की मांग दूसरे के लिए निरर्थक
कखन जनमल सियार, कखन देखल बाइढ़- कम उम्र में ही अधिक की इच्छा
ख –
खेत खाइ गधा, माइर खाइ जोल्हा – करे कोई भोगे कोई
खीस खाइ कापार, राग खाइ संसार – क्रोध से हानि
खपरी की भुंजनाठी चिन्हें? – स्थानानुसार वस्तु का नाश
खैरा खावा गरू, नांइ माने चेत – लोभी
ग –
गइयो हाँ, बरदो हाँ – हाँ और ना दोनों सही
गरीबा मोरे बुलते-चलते, अमीरा मोरे खुइन बोकलते – मेहनत कश का अरोगी होना
गाछे कठर होंठे तेल – दूर की इच्छा करना
घ –
घरेक मुरगी, दाइल बराबइर – पास की वस्तु को महत्व न देना
घर फूटे तो, गंवार लूटे – फूट से हानि
घरे भात तो बाहरो भात – घर में मान तो बाहर भी मान
च –
चले सादा, निभे बाप-दादा – परम्परा में चलना
चले गेले ने चोंथाइ मोरे – अधिक परिश्रम
चोरिक धन, मंदरिक पइला – दूसरे की संपत्ति को हड़पना
छ –
छूछा के पूछा – निर्धन की पूछ नहीं
छोट मुँह, बोड़ बात – डिंग हाकना
ज –
जकर बांदर ओहे नचावे – मालिकाना
जइसन हीराक चोर, तइसन खीराक चोर – सब चोरी बराबर
जकर नून खाय, तकर गुन गाय – गुनगान करना
जनी-मरद राजी, कि करे गाँवेक पाजी – एक मत होना
झ –
झबरल गो चेारी टोना – समय के अनुसार वस्तु का महत्व
झरल पात बुढ़ा गात – जीर्ण पत्र और बुढ़ापा समान
झख माइर, गेलो हाइर – परिरम का फल नहीं मिलना
ट –
टकइत रानी कते पानी – धन का घमंडी
टटके रंधाइ, टटके खाइ – झट लाना कूट खाना
टसकलें दोरेक आस – संकल्प करना
ठ –
ठक-ठेकाइ गेलो दिन, जिनगी भेलो छिन-भिन – समय का व्यर्थ गंवाना
ठक बाजारी कते दिन – ठकदारी अधिक दिन तक नहीं
ठंडूवाइल लोकेक भीख नांइ – आलसी को भोजन नहीं
ड –
डढल उपर नून छिटका – विपत्ति पर विपत्ति
डढ़ल पेटे घाव – धोखेभाजी से सावधान
डोरा पोड़ल, पाक नांइ उधरल – रस्सी जल गई ऐंठन नहीं गई
ढ –
ढेर भेड़ी पोकाइ मोर – अति सर्वत्र वर्जयेत
ढोंड़ेक मंतर नांइ, आर खरीसें हाथ – अल्प ज्ञानी
ढकनिक पानी डुइब मोर, जदि लुइर नखो तोर – अकलमंद की महत्ता
त –
तेलगर मुंडे तेल, उखर मुंडे बेल – धनवान की पूछ
तेलेक नांइ जाने हाल, सुधे घीवे केरे सवाल – डींग हाँकना
तलियाइल लोक, जइसन हवे होंक – गरीबों को चूसना
थ –
थमल पानी गांधाइ जाइ – पुरान पंथी
थपड़ी माइर मूँहे चूमा – दोनो तरफ
थर गुने सकरकंदा – जैसा मूल वैसा फल
द –
दादाक भरोंसे कतारी रोपा – दूसरों पर भरोसा
दुरेक बाजना, सुनइतें सोहान – दूर का ढोल सुहावन
ध –
धकर-पकर चोरेक जीउ – लोभी का मन
धोेज बोर कची कनिआइ – बेमेल विवाह
धरा बांधा बीहा, मन सउदा साधा – बिना राजी की शादी
न –
नाम ऊँचा काम बुचा – ऊँची दुकान फीकी पकवान
नाइं मामाक काना मामा – सर्वाभाव में उपलब्ध वस्तु की महत्ता
नाम गहगह फेचाराजा – नाम ऊँचा काम नीचा
प –
पांडे गेलक घार, जने-तने हार – हलवाहा की मरजी
पइरकल बाभना, घुइर-घुइर आंगना – लोभी
परेक धन चेंका सोवाद – परोपजीवी
फ –
फल फूलतें घाटरा पीठा – शीघ्रता की कुँजी
फझइतें बखरी बेड़ाइ – घर की फूट
फतेह जातरा आर कि बातरा – बिना मुहूत्र्त की यात्रा
ब –
बांधेक अगुवा फेंकाइर – हानि का पूर्व संकेत
बेल पाकलें कउवाक बापेक कि? – आकाश कुसुम
बाप कहलें कि बनिये गुर देता – आलसी के लिए कुछ भी नहीं
भ –
भतरो मीठ बेटवो मीठ – दोनों की तरफदारी
म –
मोरले बइद, बिलें गहंकी – निरर्थक
मायें देखे पेटा, जनी देखी मोटा – माँ और पत्नी में अन्तर
मकरा आपन जाले, आपने बाझे – अपनी ही बुद्धि से नाश
र –
रिन कइरके काने सोना – कर्ज लेकर ऐय्याशी
रकत गुने गियान बाढ़े – वंश का गुण
ल –
लकर-पकर डाइर, बाढ़े नाइ पाइर – लत्तर पौधे
लगन धरइलें, बीहा नांइ – कार्य सफल की सुनिश्चितता नहीं
स –
सुमेक धन सइताने खाइ – कंजूस का धन का नाश
सरग गेलें, ढाकी पइला – निश्चितता नहीं
ह –
हरदिक रंग, बिदेसिक संग – बिदेशी पर विश्वास की आशंका
हम रहबो तोर आसे, तोंइ अइबे माघ मासे – इंतजारी व्यर्थ