खोरठा भाषा झारखण्ड प्रान्त के उस भाषा विशेष का बोध कराता है, जो उतरी छोटानागपुर, पलामू ओर संथाल परगना के पन्द्रह जिलों के लोगों की मातृभाषा है। साथ ही झारखण्ड में सदियों से सदान और आदिवासी साथ-साथ रहते आये हैं, उनके बीच सम्पर्क भाषा के रूप में खोरठा भाषा महत्वपूर्ण है। क्योंकि मनुष्य सामाजिक प्राणी है, अतः समाज मंे रहने के कारण उसे सर्वदा आपस में विचार विनिमय करना ही पड़ता है और भाषा मनुष्य के विचार विनिमय का सबसे उत्तम और सरल माध्यम है। वह सिर हिलाकर, हाथों से इशारा करके या आंखों को दबाकर अपने भाव प्रकट करने का प्रयास करता है। वास्तव में मनुष्य द्वारा अपनी पाँच ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त पाँच अनुभूतियों – गंध, स्वाद, स्पर्श, दृष्टि और कर्ण मे से किसी के भी माध्यम से अपने भाव प्रगट किये जा सकते हैं।
भाषा वह माध्यम है जिसके माध्यम से जीव सोचते हैं तथा अपने विचारों को व्यक्त करते हैं। भाषा शब्द संस्कृत की भाषा धातु से बना है। जिसका अर्थ है बोलना या कहना। अतः भाषा वह है, जिसे बोला जाय। यंहा हम आज झारखण्ड की महत्वपूर्ण क्षेत्रीय भषा खोरठा जो झारखण्ड राज्य के कर्क रेखा से उतरी क्षेत्रों की मातृभाषा है। इस भाषा की भौगोलिक स्थिति 23½058’10” से 25019’15” उतरी अक्षांश तथा 83020’50” से 8804’40” पूर्वी देशान्तर में रहने वाले लोगो की मातृभाषा है।
खोरठा भाषा का नामकरण (khortha Bhasha ka Namkarn) एवं बोलने वाली जातियाँ
झारखण्ड की भूमि अति प्राचीन है। इसका प्रमाण झारखण्ड के क्षेत्रो में पाए जाने वाले पुरातात्विक स्रोत को देखा जा सकता है दामोदर नदी के उत्तरी क्षेत्र के पश्वर्ती पहाड़ियों की कंदराओं में अनेक ऐसे भित्ति चित्र पाये गये हैं, जो प्रागैतिहासिक युग के हैं। इसी प्रकार पत्थरों के उत्कीर्ण चित्र लुगु जिनगा, रेवाती पहाड़, बड़कागाँव महुदी पहाड़ की गुफओं में है। साथ ही झरिया के खदानों में प्रस्तरयुगीन हथियार प्राप्त हुए हैं, जो इस बात की पुष्टी करता है कि झारखण्ड क्षेत्र मानव से कभी खाली नहीं रहा है और आगे चलता रहा। धीरे-धीरे यह मानव समुदाय आगे चल कर स्वर्णरेखा, कसाई, दामोदर, बराकर, अजय, सँकरी आदि नदियों के किनारे क्षेत्र में बसते गये और मानव सभ्यता का विकास होता गया। उनके बीच भाषा का भी विकास हुआ। इस क्षेत्र में मानव द्वारा प्रयोग में लायी जानी वाली बोली खोरठा थी।
खोरठा भाषा का विकास भी मानव सभ्यता के विकास के क्रम के साथ चलते रहा, जिस प्रकार प्रारम्भ में मानव अनपढ़, गंवार, देहाती, कडकडिया, हुरठउआ जैसे लोग थे, वैसे लोगों की बोली भी वैसा ही ठेठ, अनपढ़, गँवार, देहाती जैसे प्रकृति मूलक ध्वनी से शब्द और भीर मनुष्य आपसी सम्पर्क करने के लिए वाक्य में ध्वनी को पिरोने लगे और होगया बबोली से भाषा का विकास .अब सवाल उठता है की यह भाषा का नाम (khortha Bhasha ka Namkarn) खोरठा क्यों रखा गया इस संबंध में खोरठा विद्वान ए0के0 झा जी कहते है; कि खोरठा शब्द की व्युत्पति भारत की प्राचीन लिपि खरोष्ठी से हुई है। ध्वनि परिवर्तन के कारण खरोष्ठी से खोरठा बना।जैसे
खरोष्ठी —– खरोठी —— खरोठा —— खोरठा।’’ |
जो भी हो खोरठा शब्द की उत्पति कैसे हुई, इसपर विद्वानों में मतभेद है, लेकिन इस भाषा का नामकरण ख्रोष्ठी लिपि से ही हुई है .इसका प्रमाण वर्त्तमान की खोरठा bhasha से लगया जासकता है. जैसे वर्तमान खोरठा में 37 ध्वनी या अक्षर है ,हर्स्व की प्रधानता ,संयुक्त ध्वनी का आभाव ,मध्य्स्वरागामन की प्रवृति इत्यादि खोरठा भषा की विशेषता है उसी प्रकार ख्रोष्ठी लिपि में भी 37 ध्वनी या अक्षर,हर्स्व की प्रधानता ,संयुक्त ध्वनी का आभाव ,मध्य्स्वरागामं की प्रवृति इत्यादि पाया जाता है इस से स्पस्ट होता है की खोरठा नामकरण की उत्पति का आधार ख्रोष्ठी लिपि है |
झारखण्ड क्षेत्र प्रारंभिक काल से ही घने जंगलो से आक्षादित रहा है। मानव प्रकृति के साथ संतुलन बना कर जीवन-यापन करते थे। दुर्भाग्यवश स्थायी मनुष्य के द्वारा उत्तरी छोटानागपुर क्षेत्र के घने जंगल को वीरान किये, जिससे जंगलों के खुट कर दिये जाने के कारण लोग इन क्षेत्र को खुट प्रदेश के नाम से जानते होंगे और उनकी बोली भी ‘खुट’ होगी। यही खूट शब्द बाद में ध्वनि परिवर्तन होकर खूंट— खांट — खाटा — खोरठा शब्द बना होगा।
खोरठा शब्द की उत्पति के सम्बध में ‘तितकी’ पत्रिका के एक अंश में कहा गया है – ‘‘जहाँ तहाँ बसे वस्तियों, अपने निवास स्थान का नामकरण, अपनी बोली का नामकरण प्रकृति के कोई शब्द से करते चले गये। अतः ये गांव, नदी, पहाड़, लता, वायु, पानी, फल-फूल, पशु-पक्षी, जाति, गोत्र, ध्वनि, आकाश आदि का संकेत देते हैं। इस प्रकार प्रत्येक गाँव अपना इतिहास कहता है।’’
भाषा का नामकरण (khortha Bhasha ka Namkarn) मुख्यतः दो आधारों पर होता है। प्रथम क्षेत्र और दूसरा जाति के आधार पर। झारखण्ड की भाषाओं के नामकरण भी इन्हीं दो आधारों पर हुआ है। जाति के नाम के आधार पर जैसे- संथाली, मुण्डारी हो, खड़िया, कुड़ुख, कुरमाली आदि। जबकि खोरठा, नागपुरिया एवं पंचपरगनिया भाषाओं के नामकरण क्षेत्र के आधार पर हुआ है। स्पष्ट है कि क्षेत्र आधार पर जिन भाषाओं का नामकरण हुआ है, वे भाषाएँ किसी जाति विशेष की भाषाएँ नहीं वरन् उस क्षेत्र में पायी जाने वाली लगभग सभी जातियों की भाषाएँ हैं। खोरठा भाषा खोरठा क्षेत्र के 15 जिलों की मातृ भाषा है। डाॅ0 बी0एन0 ओहदार ने अपने शोध प्रबंध खोरठा क्रिया रूपों का विश्लेषणात्मक अध्ययन में झारखण्ड में रहने वाली सभी जातियों, यथा- दांगी, कुरमी, कोइरी, तेली, सुंडी, मुसलमान, हरिजन, आदिवासी, सोनार, ब्राह्मण, राजपुत सभी जातियों की मातृभाषा खोरठा ही है।
इस संबंध में डाॅ0 बी0एन0 ओहदार लिखते हैं – ‘‘खोरठा और खरोष्ठी लिपि का अविष्कार किसी भाषा विशेष के लिए हुआ होगा। वह या तो खोरठा या खोरठा से मिलती-जुलती भाषा रही होगी। इस तरह यह कहा जा सकता है कि खोरठा और खरोष्ठी कानाम साम्य बस यूं ही नहीं है, बल्कि इसका तार्किक आधार भी है।’’
डाॅ0 जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने भारत की भाषाओं का सर्वेक्षण करते हुए पूर्वी मगही की सीमावर्ती बोली को खोटटा कहा है। दूसरी ओर खोरठा भाषा के एक विद्वान कृष्ण चन्द्र दास आला जी ने अपनी पुस्तक ‘खरठा भाखा गर्हन’ में लिखा है – ‘‘खोरठा शब्द खरोष्ठी से उत्पन्न नहीं हुई है, वरन् यह खरठा शब्द से बना है, जिसका अर्थ प्रकृति होता है। चूंकि खोरठा प्रकृति मूलक भाषा है, अतः खरठा से इसकी व्युत्पति ज्यादा तर्कपूर्ण है।’’’
इस प्रकार कहा जा सकता है कि खोरठा भाषा का नाम खोरठा प्राचीन लिपि खरोष्ठी लिपि से ही नाम पड़ा होगा। खरोष्ठी लिपि की कुछ विशेषताएँ खोरठा से मिलती है। इस आधार पर इसकी उत्पति मान सकते हैं। दूसरी ओर खोरठांचल को पहले खूट प्रदेश कहा जाता था, उसी से खोरठा बना। मुगल काल में झारखण्ड प्रदेश को खुटरा प्रदेश केनाम से जाना जाता था। हो सकता है, खुटरा शब्द विकृत होकर खोरठा बन गया होगा।
खोरठा भाषा का उत्पति का जो भी आधार रहा हो वर्तमान में खोरठा भाषा झारखण्ड राज्य के लगभग 15 जिला में बोला जाता है।किन्तु वर्त्तमान परिदृश में इसे गवारु भाषा कह कर आम लोग बोलना नहीं चाहते है ।झारखण्ड सरकार एवं खोरठा भाषा साहित्यकार इस bhasha को काफी प्रचार प्रसार कर रहे है । झारखण्ड सरकार इसे दितीय राज्य भाषा के श्रेणी में रखा है साथ ही झारखण्ड की सभी प्रतियोगिता परीक्षा में सामिल कर भाषा को बढ़ावा दे रहे है। वाही साहित्यकार खोरठा भाषा का विकास के लिए साहित्य के सभी विधाओं में रचना कर रहे है ।