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ढेंसा- ढेंसी छोड़ (लेखक – श्री पारसनाथ महतो) – एक पथिया डोंगल महुवा खोरठा कविता | JSSC CGL Khortha Notes

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ढेंसा- ढेंसी छोड़ लेखक - श्री पारसनाथ महतो पुस्तक - एक पथिया डोंगल महुआ Khortha Notes BY Jharkhand Exam Prep
ढेंसा- ढेंसी छोड़ लेखक – श्री पारसनाथ महतो

ढेंसा- ढेंसी छोउ (लेखक – श्री पारसनाथ महतो)

एक पथिया डोंगल महुवा खोरठा कविता

 भावार्थ :

इस कविता के माध्यम से कवि पारसनाथ महतो  हमें यह संदेश देना चाहते हैं कि यदि जीवन में सफल होना चाहते हो, तो हमें एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप बंद करना होगा। किसी दूसरे के भरोसे किसी काम को छोड़ने से अच्छा है, कि उस काम को हम खुद करें।  किसी दूसरे को दोष ना दे की, तुम्हारे कारण यह काम पूरा नहीं हुआ तभी हम सफल होंगे।

कविता के प्रथम भाग का आशय यह है की तुम्हारा काम करने का मन नहीं था इसीलिए काम नहीं हुआ।  अगर काम करने का मन होता, और पूरे मन से उस काम को करते तो काम जरूर पूरा हो जाता।  अब किसी दूसरे को दोष देने से क्या होगा।  अब अपने मन को उकसाना होगा, दूसरे को टोका टोकी नहीं करना होगा, बल्कि सीधे उस काम को खुद करना होगा।  

मन में जो आलस्य  है उसको छोड़ो, मुंह छुपाना बंद करो, दांत बिचकाना भी बंद कर दो, नाक ठरकाना भी छोड़ दो।  किसी दूसरे पर आरोप लगाना भी बंद करो, खुद कुदाली लो और खुद कोड़ना शुरू करो, जो खेत का आड़ टूट गया है उसको जल्दी से खुद जोड़ो/बांधो । यानी कि अगर कोई मुसीबत या कोई जरूरी काम है तो उसका सामना खुद करो।

खेत में धान रोपना है, तो पानी को रोकना ही पड़ेगा।  खेत का आड़ फुटा हुआ है, तो उसको बांधना ही पड़ेगा।  हाथ में कोड़ी (कुदाल ) तुमको धरना ही पड़ेगा।  आड़ फोड़ने वाले चूहा को तुमको मारना ही पड़ेगा।  किसी दूसरे पर आरोप मत लगाओ खुद कोड़ी लो और खुद काम करना शुरू करो।  जो खेत का आड़ टूट गया है उसको खुद जोड़ो।  

ऊंचा या आगे बढ़ना है तो सीढ़ी  लगाना ही पड़ेगा।  नहीं आगे बढ़ना है, तो मटिया के छोड़ दो, कुछ मत करो।  बस चढ़ती जवानी में सठिया के रहो, जिंदगी कट जाएगा।  सीढ़ी का बांस को आरोप देना बंद करो, आगे बढ़ना है तो सीढ़ी में पग रखकर  तुम्हें ही चढ़ना  पड़ेगा।  जिंदगी में जो भी मुसीबत आएगा, उसका सामना करना ही पड़ेगा।  ज्यादा सोच विचार मत करो, इधर-उधर मत देखो।  एक चाल से  बस चलते जाओ।  काट लो बांस चाहे छोटा हो या बड़ा, उसको जोड़ जोड़ कर जल्दी से सीढ़ी बनाओ किसी दूसरे को दोष  देना बंद करो और आगे बढ़ते जाओ ।

अगर पेड़ के सबसे ऊपर भाग में पका हुआ फल है और आशा  लगाके किस्मत के भरोसे बैठा हुआ है फल को पाने के लिए, तो नहीं मिलेगा।   खुद कुछ उठाओ और फल को दे मारो।  दूसरा कुछ भी मत सोचो, तभी फल मिलेगा।  फल खाना है तो उसको खुद का मेहनत से गिराना पड़ेगा।  हाथ में लेबदा, डंडा या पत्थर पकड़ना ही पड़ेगा, और खुद ही मारना पड़ेगा।  किसी दूसरे को आरोप देने से वह फल नीचे नहीं गिर जाएगा, खुद लाठी लो और दे मारो, कोई दूसरा शब्द बोलो भी मत। सावधान हो जाओ, पका हुआ खेत चरने के बाद खत्म हो जायेगा।  अगर अभी कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो वह चरके खत्म हो जाएगा।  

तुम कमजोर नहीं हो, तुम कामचोर हो।   तुम डर भी नहीं रहे, बल्कि मन से हारे हुए हो। थोड़ा भी मन को मारकर मत रहो, किरीबुरू पहाड़ को कोड़ना ही पड़ेगा। अभी काम की शुरुआत करो, किसी गुरु को नहीं खोजना है।  समय बीत जाएगा, तो बाद में पछताना पड़ेगा।  बाद में किसी दूसरे पर आरोप लगाने से भी कुछ फायदा मिलेगा नहीं, तो बस काम की शुरुआत अभी और इसी वक्त कर दो।

(भाग 1) तोर करेके मनवा नायँ हलऊ 

सइले कमवा नी भेलई, 

मन जोदी रहतलऊ, 

तो कमवा हइतई, 

ढैसा – ढोंसी छोड ! 

उस्कावेक बाइन कर 

टोका टोकि छोर  

लेवदावेक काइन घर !

(भाग 2 )मनके कोकरावे (आलस्य /कामचोरी ) छोड़,

मुँह का नुकावे छोड़ 

दाँत के बिचकावे छोड़

नाक के ठरकावे छोड़ 

दोसर के ढ़ेसावे छोड़

लइले कोड़ी(कुदाली ) आर खुदे कोड़

 फूटल आइर (खेत का मेड़ ) के जल्दी जोड़।

(भाग 3  )धान रोपेक हऊ

तो पानी रोकेहे परतऊ 

फूटल हऊ आइर तो

बाँधहे परतऊ 

हाथे कोड़ी तोरा धरेहें परतऊ 

आईर कोड़वा मूसा के 

मोराहे परतऊ,

दोसर के नाइ ढैसाव परतऊ, 

लइले कोड़ी आर खुदे कोड़

फूटल आइर के जल्दो जोड़

(भाग 4   )आचंगा (ऊँचा ) चढ़ेक हऊ

तो नीसइन (लकड़ी का सीढ़ी ) लगाहे परतऊ,

नाइ चढ़ेक हऊ तो, 

मटियाल रह.

 चढ़ती जवानी में सठियाल रह । 

ढेसाव ना हो,

नीसइन आर दापइन (सीढ़ी का बांस जिसपे पैर रखते है ) के । 

आगु सरकेले हऊ तो

डेग धर परतऊ

गाढ़ा – ढोंढ़ा डेगेहें परतऊ। 

धुकर पुकुर कर नाई, 

चकर मकर (इधर उधर ) देख नाइ 

एक मुसुत चाइल चलेहे परतउ 

काइट ले बॉस छोट आर बोड़ 

टुटल नीसइन के जल्दी जोड़, 

ढैसा – ढेसी छोड़!

(भाग 5   )हिटेंगट(पेड़ का ऊँचा भाग ) हउ पाकल फोर, 

आसरा लगाले तोर 

लटकल हऊ किसमतेक जोर। 

उठाव लेबदा आर खुदे लेबद, 

बोल नाई कोन्हों दोसर सबद, 

खाईक हऊ पाकल,

तो गिराहे परतऊ! 

हाथे लेबदा धेरेहे पर परतऊ, 

ढेका पखन लिहें परतऊ, 

दोसर के नाई के नाई ढेंसावे परतऊ ।

उठाव लेबदा आर खुदे लेबद,

बोला नाई कोन्हों दोसर सबद । 

(भाग 6  ) चेत! 

चेत चेत चेत एखने चेत – 

चरलऊ जाहऊ तोर पाकल खेत, 

सोंधा, पइन, मंझीयसेक रेत, 

बचवेक हऊ तो धरले वेंत ।

(भाग 7   ) तोय कमजोर नाई, 

तोय कामचोर |

तो डरु नाँइ,

तोंय मन हरु

तोंय मारु नॉय,

तोय ही गरु । 

तइनको रह नाई मन मारु, 

कोडे हेतऊ किरी – बुरु 

एखने कर तोय काम सुरु 

खोजेक नखऊ तोके गुरु ।

बितल वाते पछतावेक छोड़ 

दोसर के ढेसावेक छोड़, ढेंसा-ढेंसी छोड़।

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