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चंपाई सोरेन: चरवाहे से मुख्यमंत्री तक का सफर

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चंपाई सोरेन का प्रारंभिक जीवन और संघर्ष

चंपाई सोरेन का जन्म 1 नवंबर 1956 को झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के जिलिंगगोड़ा गांव में हुआ। उनका नाम ‘चंपाई’ पड़ा, क्योंकि उनके पिता सिमल सोरेन ने बेटे के जन्म के बाद घर के आंगन में लगे चंपा के पेड़ के फूलों को ग्राम देवता को अर्पित किया था और बेटे का नाम चंपाई रख दिया। चंपाई सोरेन का बचपन गरीबी में बीता, और उनका पारिवारिक जीवन पूरी तरह से कृषि आधारित था। अपने पिता की मदद करने के लिए चंपाई ने खेतों में काम किया, और 12 साल की उम्र में ही वह खुद खेत जोतने लगे थे। इसके अलावा, वे अपनी गायों को चराने के लिए जंगलों में भी जाते थे। यही उनकी प्रारंभिक शिक्षा और जीवन का पहला संघर्ष था।

चंपाई सोरेन: चरवाहे से मुख्यमंत्री तक का सफर

सालपदस्थान/विभाग
1991–1995विधायक (MLA)10वीं बिहार विधानसभा, सेराईकेला (उपचुनाव)
1995–2000विधायक (MLA)11वीं बिहार विधानसभा, सेराईकेला
2000–2005विधायक (MLA)1वीं झारखंड विधानसभा, सेराईकेला
2005–2009विधायक (MLA)2वीं झारखंड विधानसभा, सेराईकेला
2009–2014विधायक (MLA)3वीं झारखंड विधानसभा, सेराईकेला
2010–2013कैबिनेट मंत्रीविज्ञान और प्रौद्योगिकी, श्रम और आवास
2013–2014कैबिनेट मंत्रीखाद्य और सार्वजनिक आपूर्ति, परिवहन
2014–2019विधायक (MLA)4वीं झारखंड विधानसभा, सेराईकेला
2019–2024विधायक (MLA)5वीं झारखंड विधानसभा, सेराईकेला
2019–2024कैबिनेट मंत्रीपरिवहन, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग कल्याण
2024 (जनवरी–अगस्त)कैबिनेट मंत्रीजल संसाधन, उच्च और तकनीकी शिक्षा
2024 (फरवरी–जुलाई)मुख्यमंत्रीझारखंड के 7वें मुख्यमंत्री

सामाजिक कार्यकर्ता और मजदूर नेता के रूप में उदय

चंपाई सोरेन का जीवन संघर्ष से भरा था, और उनका सामाजिक आंदोलन से जुड़ाव तब हुआ जब उन्होंने देखा कि अपने गांव के अधिकांश लोग टाटा स्टील में काम करते थे, लेकिन उनके साथ भेदभाव किया जाता था। 1988 में, जब उन्होंने देखा कि टाटा स्टील के मजदूरों को पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिल रही थीं, तो उन्होंने अस्थायी मजदूरों के लिए आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन में चंपाई ने विभिन्न प्रकार के धरने, नुक्कड़ नाटक और प्रदर्शन आयोजित किए। उनकी मेहनत और संघर्ष का नतीजा यह हुआ कि अंततः टाटा स्टील के प्रबंधन को 1600 मजदूरों को स्थायी बनाने के लिए झुकना पड़ा। यह चंपाई सोरेन की पहली बड़ी सफलता थी और इसके बाद वह एक प्रभावशाली मजदूर नेता के रूप में स्थापित हो गए।

चंपाई सोरेन का राजनीतिक करियर की शुरुआत

चंपाई सोरेन का राजनीतिक जीवन उस समय से शुरू हुआ जब शिबू सोरेन, जो झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेता थे, ने अपने संपर्कों के माध्यम से उन्हें राजनीति में कदम रखने के लिए प्रेरित किया। चंपाई सोरेन की मुलाकात शिबू सोरेन से एक कांग्रेस नेता वैजनाथ सोरेन के माध्यम से हुई। इस मुलाकात में दोनों के बीच जबरदस्त आपसी सम्मान और विचारों का मेल हुआ। इसके बाद चंपाई ने JMM जॉइन किया और शिबू सोरेन के साथ मिलकर झारखंड आंदोलन के लिए संघर्ष किया। इस समय में उनकी लोकप्रियता बढ़ी और वे आदिवासी समुदाय में एक प्रभावशाली नेता के रूप में उभरने लगे।

‘कोल्हान का टाइगर’

चंपाई सोरेन की राजनीति में सफलता का एक महत्वपूर्ण कारण उनकी सच्ची निष्ठा और निर्भीक नेतृत्व था। एक बार जब पुलिस ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था, तब भी चंपाई ने अपने आंदोलन को छोड़ने की बजाय अपना चेहरा ढककर धरने में शामिल होने की योजना बनाई। धरनास्थल पर उन्हें पहचान लिया गया, लेकिन चंपाई किसी तरह पुलिस से बचने में सफल रहे। इसके बाद, क्षेत्रीय लोगों ने उन्हें “टाइगर” का उपनाम दिया, और वे “कोल्हान का टाइगर” के नाम से प्रसिद्ध हो गए। यह उनका मजबूत नेतृत्व और संघर्ष का प्रतीक बन गया, और उनके समर्थक उन्हें आदिवासी समाज का नायक मानने लगे।

चुनाव की लड़ाई और JMM में महत्व

चंपाई सोरेन ने 1991 में सरायकेला विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा। उस समय यह सीट झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के पास थी, लेकिन पार्टी में दो उम्मीदवारों के होने के कारण चुनाव आयोग ने उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतारा। चंपाई ने चुनाव में जीत हासिल की और JMM के टिकट पर विधानसभा में पहुंचे। हालांकि, इस चुनाव के दौरान पार्टी के अंदर गुटबाजी ने चंपाई को जटिल स्थिति में डाल दिया था, लेकिन उनकी मजबूत इच्छा और नेतृत्व ने उन्हें चुनाव जीतने में मदद की।

झारखंड आंदोलन में चंपाई सोरेन का योगदान

चंपाई सोरेन का झारखंड आंदोलन में बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने आदिवासी समुदाय के लिए हमेशा आवाज उठाई और राज्य के गठन से लेकर उसके अधिकारों की रक्षा तक में अहम भूमिका निभाई। उनका संघर्ष टाटा स्टील जैसी बड़ी कंपनियों के खिलाफ था, और उन्होंने हमेशा मजदूरों और आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम किया। उनका आदिवासी समाज के लिए योगदान अनमोल है, और उन्होंने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि आदिवासियों की आवाज सही मंच तक पहुंचे।

चंपाई सोरेन का मुख्यमंत्री बनने का सफर

चंपाई सोरेन का मुख्यमंत्री बनने का रास्ता बहुत ही दिलचस्प था। 2024 में, जब हेमंत सोरेन को ED ने गिरफ्तार किया और इस्तीफा देने को मजबूर किया, तो हेमंत सोरेन की नजर अपनी पत्नी कल्पना सोरेन पर थी, लेकिन पार्टी के भीतर और वंशवाद के आरोपों के चलते वह नाम स्वीकार नहीं किया गया। इसके बाद, चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री पद का दायित्व सौंपा गया और 2 फरवरी 2024 को उन्होंने झारखंड के 7वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली।

हालांकि, चंपाई का मुख्यमंत्री बनने का समय ज्यादा लंबा नहीं था। 8 महीने में ही उन्होंने JMM से इस्तीफा दे दिया और BJP का दामन थाम लिया। चंपाई के भाजपा में शामिल होने से झारखंड की राजनीति में एक नया मोड़ आया। चंपाई सोरेन ने अपने इस्तीफे में लिखा, “JMM मेरे लिए परिवार जैसा था, लेकिन अब पार्टी अपनी दिशा से भटक चुकी है।”

चंपाई सोरेन का BJP में शामिल होने का फैसला

चंपाई सोरेन की राजनीति में बदलाव का एक और अहम पहलू उनका भाजपा में शामिल होना था। 2024 में जब चंपाई ने JMM छोड़ने का निर्णय लिया, तो उनकी पार्टी के कई नेताओं और कार्यकर्ताओं को यह झटका लगा। लेकिन उनके राजनीतिक गुरु बिद्युत बरन महतो, जो भाजपा के सांसद हैं, ने उनका समर्थन किया और भाजपा में शामिल होने के लिए मार्ग प्रशस्त किया। 30 अगस्त 2024 को उन्होंने भाजपा जॉइन कर लिया और उनके इस कदम ने भाजपा के लिए कोल्हान क्षेत्र में नई ताकत ला दी।

चंपाई सोरेन का समाज के प्रति योगदान

चंपाई सोरेन का आदिवासी समुदाय के लिए एक लंबा योगदान है। वे मकर संक्रांति पर अपने विधानसभा क्षेत्र के हर परिवार को उपहार देने की परंपरा निभाते हैं। इस दिन वे चावल, गुड़ और कपड़े वितरित करते हैं। यह उनकी आदिवासी समाज के प्रति निष्ठा और उनके मानवीय संबंधों को दर्शाता है।

चंपाई सोरेन का जीवन एक संघर्ष की कहानी है, जो यह दर्शाता है कि गरीबी, कठिनाइयों और विरोधों के बावजूद यदि व्यक्ति अपनी मेहनत और निष्ठा से काम करे, तो वह सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है। उनके द्वारा किए गए संघर्षों और फैसलों ने उन्हें केवल झारखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण नेता ही नहीं, बल्कि एक आदर्श भी बना दिया है।

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