बाबूलाल मरांडी का नाम झारखंड की राजनीति में एक विशेष स्थान रखता है। उनकी कहानी एक साधारण किसान के बेटे से लेकर झारखंड राज्य के पहले मुख्यमंत्री बनने तक की यात्रा की है। इस सफर में उन्होंने न केवल राजनीति के जटिल तंत्र को समझा, बल्कि उसे अपने पक्ष में भी मोड़ा। बाबूलाल मरांडी का जीवन संघर्ष और समर्पण का प्रतीक है, जहां उन्होंने न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना किया।
बाबूलाल मरांडी का प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
बाबूलाल मरांडी का जन्म 11 जनवरी 1958 को झारखंड के गिरिडीह जिले के कोदईबांक गांव में हुआ था। यह इलाका उस समय अविभाजित बिहार का हिस्सा था, जिसे बाद में झारखंड राज्य के रूप में अलग किया गया। बाबूलाल के पिता, छोटूलाल मरांडी, एक साधारण किसान थे और उनका परिवार बहुत गरीबी में जी रहा था। बाबूलाल की मां, मीना मुर्मू, ने भी अपने बच्चों को संघर्ष की संस्कृति सिखाई थी।
बचपन में ही बाबूलाल को कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। वह स्कूल जाने के लिए पांच किलोमीटर पैदल चलने के बाद चंदौली नदी को पार करते थे। कभी बाढ़ के कारण नदी पार करना और फिर अपनी किताबों को सिर पर रखकर स्कूल जाना, बाबूलाल के लिए सामान्य बात थी। इस तरह की मुश्किलों के बावजूद, उनका मन पढ़ाई में रमता था।
उनकी मां ने उन्हें हमेशा प्रेरित किया कि हालात चाहे जैसे भी हों, शिक्षा का कोई विकल्प नहीं है। यही कारण था कि बाबूलाल ने गरीबी, कठिनाइयों और संघर्ष के बावजूद अपनी पढ़ाई पूरी की और बड़े सपने देखे।
table for better clarity:
Position | Details |
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President of Bharatiya Janata Party, Jharkhand | Incumbent |
Assumed Office | 4 July 2023 |
Preceded by | Deepak Prakash |
Leader of the Opposition, Jharkhand Legislative Assembly | In office |
In Office | 24 February 2020 – 16 October 2023 |
Chief Minister | Hemant Soren |
Preceded by | Hemant Soren |
Succeeded by | Amar Kumar Bauri |
1st Chief Minister of Jharkhand | In office |
In Office | 15 November 2000 – 17 March 2003 |
Preceded by | Office Established |
Succeeded by | Arjun Munda |
President of Jharkhand Vikas Morcha (Prajatantrik) | In office |
In Office | September 2006 – February 2020 |
Preceded by | Office Established |
Succeeded by | Office Abolished |
Member of Jharkhand Legislative Assembly | Incumbent |
Assumed Office | 2019 |
Preceded by | Raj Kumar Yadav |
Constituency | Dhanwar |
In Office | 2001–2004 |
Succeeded by | Chandra Prakash Choudhary |
Constituency | Ramgarh |
Minister of State for Environment and Forests | In office |
In Office | 19 March 1998 – 7 November 2000 |
Prime Minister | Atal Bihari Vajpayee |
Minister | T. R. Baalu |
Member of Parliament, Lok Sabha | In office |
In Office | 2004–2014 |
Preceded by | Tilakdhari Singh |
Succeeded by | Ravindra Kumar Ray |
Constituency | Kodarma |
In Office | 1998–2002 |
Preceded by | Shibu Soren |
Succeeded by | Shibu Soren |
Constituency | Dumka |
Personal Details | |
Born | 11 January 1958 (Age: 66) |
Place of Birth | Giridih, Bihar (now in Jharkhand), India |
Political Party | BJP (till 2006), BJP (2020 – present) |
Other Political Affiliations | JVM(P) (2006 – 2020) |
Spouse | Shanti Murmu |
Children | 2 |
Residence | Ranchi |
Alma Mater | Ranchi University |
Website | Official Website (Link not provided) |
शिक्षा और शुरुआती करियर
बाबूलाल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल से पूरी की। इसके बाद, गिरिडीह के एक कॉलेज में प्रवेश लिया। जहां उन्हें कई बार दोस्तों से किताबें उधार लेकर पढ़नी पड़ती थीं। कई बार पेट भरने के लिए चावल के मांड का सहारा लेना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी पढ़ाई में समझौता नहीं किया।
कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के बाद बाबूलाल ने महतो ग्राम के एक प्राथमिक स्कूल में शिक्षक के रूप में नौकरी शुरू की। हालांकि, यह नौकरी उन्हें ज्यादा आकर्षक नहीं लगी। एक दिन, जब वह शिक्षा विभाग गए, तो वहां के एक क्लर्क ने उनसे रिश्वत की मांग की। बाबूलाल ने यह भ्रष्टाचार स्वीकार नहीं किया और जवाब दिया कि अगर यह उनका व्यक्तिगत काम होता, तो भी वह रिश्वत नहीं देते। इसके बाद बाबूलाल ने अपनी नौकरी छोड़ दी और तय किया कि वह किसी भी भ्रष्ट व्यवस्था का हिस्सा नहीं बनेंगे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में प्रवेश और राजनीति की शुरुआत
बाबूलाल मरांडी का जीवन उस समय एक नया मोड़ लिया, जब उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को जॉइन किया। कॉलेज के दिनों में ही वह संघ के संपर्क में आ चुके थे और धीरे-धीरे संघ की गतिविधियों में भाग लेने लगे। उनके अंदर एक नई ऊर्जा और समर्पण का संचार हुआ, जिससे उन्होंने अपने जीवन को पूरी तरह से संघ के लिए समर्पित कर दिया।
इस दौरान, बाबूलाल ने संघ के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लिया और संघ के वरिष्ठ नेताओं से मार्गदर्शन प्राप्त किया। कुछ ही समय में उन्होंने अपनी राजनीति की दिशा तय की और झारखंड की राजनीति में कदम रखा। बाबूलाल के लिए यह फैसला बहुत बड़ा था, क्योंकि संघ से जुड़ने के बाद उनकी जिंदगी में कई बदलाव आए और उनका जीवन अब राजनीति से जुड़ चुका था।
बाबूलाल मरांडी का BJP में प्रवेश और राजनीतिक सफर
1990 में बाबूलाल मरांडी को भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल किया गया। उनकी कड़ी मेहनत और संगठन के प्रति समर्पण ने उन्हें जल्द ही भाजपा के एक महत्वपूर्ण नेता बना दिया। पार्टी ने 1991 में उन्हें दुमका लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया, जहां उनका मुकाबला झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेता शिबू सोरेन से था।
बाबूलाल का यह पहला चुनाव था, और वह शिबू सोरेन से 1.33 लाख वोटों से हार गए। हालांकि, उन्होंने हार को कभी अपनी हार नहीं माना और अपनी रणनीतियों को और बेहतर किया। 1996 में फिर से चुनाव हुआ, और इस बार उनकी हार का मार्जिन घटकर 5,478 वोट रह गया। बाबूलाल ने अपनी कड़ी मेहनत और रणनीति के जरिए अपनी स्थिति मजबूत की।
1998 में जब मध्यावधि चुनाव हुए, तो बाबूलाल मरांडी ने शिबू सोरेन को 12,556 वोटों से हराकर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। यह उनकी राजनीतिक यात्रा का महत्वपूर्ण मोड़ था, क्योंकि अब वह झारखंड में भाजपा के प्रमुख नेता के रूप में स्थापित हो गए थे।
झारखंड राज्य का गठन और मुख्यमंत्री बनने का संघर्ष
2000 में जब झारखंड राज्य का गठन हुआ, तो मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा में अंदरूनी संघर्ष शुरू हो गया। भाजपा में दो प्रमुख नाम थे – बाबूलाल मरांडी और कड़िया मुंडा। दोनों नेता मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में थे, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया।
बाबूलाल मरांडी के मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य में कई प्रशासनिक और नीतिगत बदलाव किए गए। उन्होंने नक्सलवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की और झारखंड में विकास के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की। उनकी सरकार ने झारखंड को एक नया दिशा देने की कोशिश की, लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान उन्हें कई मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा।
बाबूलाल मरांडी का मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा और संघर्षों का दौर
हालांकि बाबूलाल मरांडी का मुख्यमंत्री बनने का सफर बहुत आसान नहीं था। उनके कार्यकाल के दौरान कई भ्रष्ट मंत्रियों ने उन्हें रिश्वत देने की कोशिश की, लेकिन बाबूलाल ने इसे सख्ती से नकारा। एक मंत्री ने उन्हें रजिस्ट्रेशन मंत्रालय देने के बदले हर महीने 20 लाख रुपये की रिश्वत की पेशकश की, जबकि दूसरे मंत्री ने बिजली विभाग के चेयरमैन के रूप में अपनी पसंद का व्यक्ति बैठाने का प्रस्ताव दिया।
इस भ्रष्टाचार के खिलाफ बाबूलाल ने कड़ा रुख अपनाया, लेकिन यह स्थिति उनकी सरकार के लिए संकटपूर्ण बन गई। 13 मार्च 2003 को कई मंत्रियों ने एक साथ इस्तीफा दे दिया और राज्य की सरकार अल्पमत में आ गई। विपक्षी दलों ने अविश्वास प्रस्ताव लाया, और अंततः बाबूलाल को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद, भाजपा ने अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बना दिया।
झारखंड विकास मोर्चा (JVM) और भाजपा में वापसी
मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद बाबूलाल मरांडी ने भाजपा और लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद, 2006 में उन्होंने अपनी नई पार्टी “झारखंड विकास मोर्चा (JVM)” बनाई। उनकी पार्टी ने कुछ विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन कभी भी स्थिरता प्राप्त नहीं कर सकी।
इसके बावजूद, बाबूलाल मरांडी का राजनीतिक सफर जारी रहा और 2020 में उन्होंने अपनी पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया। इस विलय के बाद, उन्हें भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, और उन्होंने राज्य में भाजपा को पुनः मजबूती दी। उनकी नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक चतुराई ने उन्हें एक बार फिर झारखंड की राजनीति में प्रभावशाली नेता बना दिया।
नक्सलवाद के खिलाफ संघर्ष और व्यक्तिगत त्रासदी
बाबूलाल मरांडी के जीवन में एक बड़ा दुखद मोड़ 2007 में आया, जब नक्सलियों ने उनके छोटे भाई नुनुलाल मरांडी और भतीजे अनूप पर हमला किया। यह हमला झारखंड-बिहार सीमा पर हुआ था, जिसमें अनूप की मौत हो गई। बाबूलाल की यह निजी त्रासदी उनके लिए कठिन समय था, लेकिन उन्होंने इसे भी अपने हौसले के साथ सहन किया और नक्सलियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए।
निष्कर्ष
बाबूलाल मरांडी की जीवन यात्रा एक प्रेरणा है। उन्होंने न केवल झारखंड की राजनीति में अपने संघर्षों से स्थान बनाया, बल्कि अपनी ईमानदारी, कड़ी मेहनत और मजबूत नेतृत्व से वह आज भी झारखंड की राजनीति के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। उनके जीवन से यह सिखने को मिलता है कि कठिनाइयों और संघर्षों का सामना करते हुए भी अगर एक व्यक्ति अपने सिद्धांतों पर खड़ा रहे तो वह किसी भी मुश्किल को पार कर सकता है।