हाम कइसे जीयब छॉइहर खोरठा कहानी संग्रह (Author – Chittaranjan Mahato Chitra)
महेसर आर पारवती दस-पन्दरह दिन खातिर हित-कुटुम्ब से मिले-जुले भेंट मुलाकाइत करे ले निकलल रहथ। दिने एगो गाँव पुरवल बादे मुँह — अंधरा पोहचला मुरपा। मुरपाञ. ओकर, महेसर कर गोतिया भइतजा सोब रहे हेलथी महेसर बीहा दाने एक दू झीक आइल गेल रहे, मुदा पारवती कधियो ई ईलंका (ईलाका) नी आइल रहीक। महेसर कर टेक्सी-गाडी जइसीहीं ठदुवालइ, मरद बेटा तो सोब हिन्दे हुन्दे भागी गेला। मेहरारूओ.कोय गाड़ीक नझीक आवेक हिमइत नी करला। लाचार हइके महेसर गाड़ी ले नाभल आर रघुनाथेकं घारक, दूरा खटखटावे लागल, हँकावे लागल रघु एहो रघु” हाम तोर काका महेसर लागीअउ, दोरजा खोल । देख! कधियो नी से तोर काकीओ आइल हउ। डेराइक कोनो बात नाही लागइ, सर सिपाही हामीन संग नेखत रे बाबा। एगो रघु बहू) बड़की, भंदरूआ माय, “एहेगो पितिआइन साइंस आइज तोहिन के खोजले आइल होन आर तोहिन छवे बजे साइंझ भाउल (भालू) बांदर, सियार कर डरे समाय लुकाय गेलाय ।’ पारवती हँकावलीक।
बड़ी देरी में आवधा चिन्ही के रघु कर बहू बाहइर बहरालथी। देखलथी-चिन्हलथी ओकर गोतिया घारेक छोट कांका-काकी लागथी। निडर हइके दुइयो. के आँगना-घार दुकावलथीनं रघु बहू आर ओकर पुतउ सोब । पुरखा आइल हथीन सेले झापा-झंइप तीनों साइस पुतउ गोड़ लागलथीन महेसर. आर. पारवती के लोटा-पानी देलथीन । गोड़-हाथ धोइके बइढला महेसर आर पारवती । रधुके बहू खातिर तो ओकर काका काकी एखन महादेव आर पार्वती जइसन भगवान खड़ा हड् गेल रहथीन । जकर कहियो छाँहईरकर आसरा नी रहइ ओकर गोड़ पोहची गेल रहइ। ऊ आदमी जकर मान-सम्मान घार ले डेग ना देलूहूँ, जग-दुनिआये रह-हय, मिल-हइ, चाहे जेकारने हेवइ, धन बल वा विध्या ऊ जदि कोनो साधारण परिचित परिवारे अचक्के पोहची जाउ (जकर पहिल से पूरा परिचय रहहइ) तो भगवान कर अचक़्के दरसनले कमनी बुझल जाहे । अइसने खुशी कर मोका रहइ रघुनाथ के परिवारे। रघु बहु खश रहीक ओकर घार आँगनाञ भगवान आर भगवती पोहचल हथी बिनहँकावले, ओतने ओकर मने चिन्ता बाढलय । भगवान-भगवती रूपे आइल काका-काकी के का लेखे सेवा करे पारबइ । जबकि सोब बेटा छऊआ गाड़ीक ईजोर देखी के भागी गेला। कइसे हाम काका-काकी कर आव-भगत (सत्कार) करे पारी? ई चिन्ताञ ऊ डुबेलागइल। तखने पारवती ओकर काकी कही उठलई-बहू’ तोरा कोनो चिन्ता फिकिर करेक दरकार नेखउ, एखने हामीन खाँखडाले तोरे ननद मोहरी हियाँले खाय-पीके आवे लागल ही। आव जे खिआवबे-पिआवबे-विहान अनगुते काहेकि हामीन के आर एगो जगह काइल्हे पुरावेक हे. आर फइर अन्ते जायेक हे। .
रघुनाथेक बहू पारवतीक बातें विसवास करीके थिराइल, मगुर सादा-माठा, खायेक तो बनबेके रहइ। बड़की पुतउ के हंकाय के (रघुक बहू फूलसरी कहलइ–’बेटी! काका ससुर तो काय झीक आइल गेल हथ मगुर काकी साइस कर ई पहिल आवना लागइन, काजन फइरो, कहियो एते धूर आवे पारता सेलं गोली कोंटरिया मार आर काका-काकी के खिआवहीन। एखिन कर गाड़ीञ आर दूलोग आहथ ओखिनो के भइजायेक चाही।
सोब आपन-आपन कामें लांगला। फुरसइत पावल महेसर। पारवती तो आपनो ले बूढी पुतउ संग घार–घार कर सर-समाचार बोले लागइल. सुने लागलइल।
महेसर खाटी ले उठल। दोरजा खोली बाहइर निकलले रहे कि ओकर भतीजा रघुनाथ भेंटाइल जनमे बोड़ रहतहूँ गोड़ धुई के गोड़ लागलइ रघुनाथ, आर पूछल कइसे-कइसे आइझ हिन्दे गोड राखलाय काका ?
‘का’ कहिअउ घुरेहेले बहराइल ही तोर काकी संगे। हित कुटुम्ब कर घार-दूरा देखेक मनः भेलक। सोचली आपन आदमियों से भेंट-मुलाकाइत करब आर ई ईलाकाञ कायगो देखेक-सुनेक जगहो हे, घुरी आवब गोटा पन्दरह-दिनकर पोरोगराम लईके चलल ही। लुगुधाम जायेक विचार हे, फइर पारसनाथ धाम जाब, आर जन्दे-जन्दे लोगें कहता तन्दे तन्दे जायेक विचार राखले ही। तनी रूकी के-‘देखी जाय, पोहचे पारही कि नीं। हिंये तोहिंन कर गाँव आइल से तो हामरा दूरे बुझाय गेलक। सोभे मरदाना टेक्सी गाड़ी देखी के भागी गेला, लुकाय गेला। हामरा तो बड़ा अचरज लागल । एते डर आखिर तोहिन के काहे ?
महेसर रघुनाथ कर ज़वाब कर आसरा करे लागल । ‘काका’ पुलिसेक डरे साब मरदाना हियें नीं, आस पासेक सोभे गाँवक लुकाय-छिपाय, लागहथ । पुलिस, एम: सी. सी. एरिया कही के कुदावत रह हथीन सेले। ‘रघु एके निनासे कहे लागल।
मुँह आँधरा रहइ, तोहिन जखन गाँव दुकलाय तखन भाँफेनी पारलथून कि टेक्सी गाड़ी कि कार गाड़ी लागइ। कार गाड़ी, मारूति गाड़ी देखले डर भय नी लागहइन, मंगुर पुलिस गाड़ी देखलहीं भवाँ चमके लागलहइन, कम रहहथ तखन बोने-झारें लुकाय जाहथ, बेसी रहले पुलिस से मुठभेड़ करे लागहथ। एखन हियाँ मरदाना कम रह-हथ सेले हिन्दे-हुन्दे लुकाय-छिपाय के हथुन जानले. कि दुसमन कर गाड़ी नी लागइ गते-गते सोब घार घुरबथुन ।’ रघु काका के सोब रिपोर्ट दिए लागल!
रघु कहे लागल-काजें कहिअउ आर काजे सुनाविअउ ई ईलकांक दुःख दरंद। ई एम. सी. ती. आर पुलिस कर झगड़ा में हाम गरीब सोब पिसाइ लागल हो। बाजार-शहर ले धूर बोन-झार झंखाड़ में शांति आर सुख खातिर बपौती घार दुरा छोड़ी के वसला, खेती बारी, कांड कोरबा करी के जिये खोजला मगुर हियाँ जे हालाकाइन हेवे लागल हइ से तो हियाँक रहवईये आव जाने लागला।
रघु तनी चुप भइ. गेल, दूराक पिंडा ऊपरे बइठी-बइठी आव दुइयो उठी . के चले लागला। एखन तइक रघु पीले नी रहे। ऊ महुआदारू पीये ले छटपटाय लागल।
रघु सोंचल ओकर महेसर काको पीअहंथ नी का सेले गुरूजी काका के चलावल-‘चला काका तनी हेठ टोला। हेठ टोलाक गरीब गुरबाक हाल -चाल लेभान, ऊ (रघु) सोजबारी ई नी कहे पारल कि चला तनी पी-पायके दिनभइर कर थकानी धूर करी लेब। .
काका महेसर के का मालूम कि ओकर रघू भतीजाक नसटाने लागल हइ आर ऊ मोद-दारू पीये खातिर जोगाड़-जुगुत में हे। चलला महेसर रघु कर संगे हेट टोला-बेदिया टोला।
बेदिया टोला जायके रघु चाल देहे-‘ के गो! बहुरिया करमी माय। दोरजा खोला । खोलागो, खोला। हाम लागिओन………… ।’
रघुक बात पूरो नी भेल रहइ कि दोरजा खुलल रघुकर आवघा चिन्ही के। रघु ढुकल संगे-संगे महेसरों दुकल आँगनाञ।
आँगनाञ खटिया बिछाई देलई करमी माय-चुनिया।
“दे एक बोतल दारू आर गिलास ।” रघु कहल ।
चुनिया तनी देरी बादे एगो बोतल भोरी के दूगो गिलास लानी के अगुआय देलइन रघुक आगूतर।
रघुनाथ दुइयो गिलासे दारू भोरल । एगो गिलास काका महेसर बाठे घसकावल, फइर हाथे उठाय के देलइन काका, लाय ।’ महेसर गिलास नी झोंकल। ऊ कहल हाम दारू-मोद नांञ पीअही भतीजा। ‘अच्छा! काका! तो हाम शुरू करहिअइ।’
‘हाँ, हो! तोंय आपन काम पूरा कर एकर में हाम कोनो बाधा विधिन (वृघ्न) नी देबउ । तोंय खा, पी, कोनो मना नेखोन । महेसर रघुकर लाज-शरम तोड़ल।
रघु दारू. पीये लागल । महेसर पास ही बइठल चुनिया के देखल, चुनियो महेसर के आँइखे-आँइख मिलावइल। चुनियाक मुँह-कान देखी के महेसर कर मने नाना रकम कर सवाल उठे लागलइ। ऊ परसफुटे (प्रस्फूट) पूछे लागलइ-‘आयगो तोर घारक मालिक कहाँ हऊ ?
चुनिया कोनो जबाब नी देइल | गते, गतें ओकर आँइख ले लोर बहराइ लागलइ । ऊ कोनो बोले खोजे हेइल मगुर आपन, आँइखेक लोर छिपावेक कोरनिस (कोशश) करइतें, महेसर फइर पूछल-‘तों तोहें हामर सवाल कर कोनो जबाब नी दइके लोर ढरकाय देलाय आर चुप रही गेलाइ।
“बाबा तोहर सवालकर काजे जबाब देबोन’ चुनिया आँइखेक लोर पोछले-पोछले बोलइल । ‘ घारक मालिक एम. सी. सी. आर पुलिसेक लड़ाइये (मुठभेड़) मराय गेला | छोटे-छोटे खेत-बारी हे दू चाइरगो करहो नी पारही। कोनो लेखे छउआ पता पोसे लागल ही।’ चुनियाक आँइखले फइर लोर ढरके लागल । तनी देरी तइक सोभे चुप रहला । महेसर कोनो बोलतला कि चुनिया आपन आरो कोनो दुख सुनावतलीक-रघुनाथ बोली उठल- ‘गुरूजी बेचरंगी बड़ी दुखे जीये लागल हीक । एकर मरद के एम. सी. सी. ओलाइन ठकी समझाय के आपन गुटे जबरजस्ती राखलथीन, मेंबर बनावलथीन। बेचारा ‘डमरू’ बेस हूंसियार तो नी रहे, मगुर आपन हिकमइत से आपन पइरवार (परिवार) वेसे चलवे हेल। एकर ओकर साझा-बुझा करी के बेसे खाय पीये हेलक। एम. सी. सी. ओलाइन के संग लागी के एकर घारेक ई दूरदसा हेल-हइ । ‘रघुनाथ बोलते-बोलते ठहइर गेलक।
मोका मिललइ महेसर के आगू बात बढावेले । ऊ पूछल-कायगो छउआ हथी एकर।’
रघुनाथ के ना कुछो जबाब देते चुनिया बोले लागइल-हामर दूगो बेटी आर एगो बेटा हेक बाबा लड़कियाइन बोड़ लागथी, बेटवा छोट लागे। एहे तीन चाइर बछर कर हे। एखन तो एहे चाइरगो. जीव पोसेक हामर परदबाय हइ गेल हे। कोनोलेखे जे मानुस करे पारिअइन सेले कहियो बोनेक दतुन-पोतइ लइके गाँव-शहर-बाजार जाहि बेची-खुची के दू दाना लानहीं, छउयाक आर आपन पेट पोसही। कहियो-कहियो जे बुधि-गियान माय-बाप ठीनं सीखल ही ससुराइरे जे देखले–करले आइल ही महुआ दारू चुआवही। दू पइसा हेवे हे, नून तेल जुटावही। चुनियाक आँइखेक लोर एखन थामाय गेल रहइ।
रघुनाथ तो उठेले अकबकाय हेल.। मगुर महेसर के कहल पर कि-‘रह सुने दे बेचारी कर दुख-सुख, घारे नी आब जायेक हे ? रघुनाथ घुरी बइठी गेल रहे खटिये ऊपर।
महेसर फइर पूछल चुनिया के-बेटिआइन के ईस्कूल भेजहीन कि नीं। ‘ईस्कूल का भेजे पारवइन, बाबा, एगो छउयाटी घार ओगरहीक, बबुआ के टेकहइ खेलावहइ, राखहइ। बड़की छगरी-पठरू दूगो हथी ओखिने के चरवे-बजवे में रही जाहइ । बपा रहतलथी तो छउयाइनों ईस्कूल जातलथी। हाम्हँ छउयाइन के पढाबतलिअइन। मगुर का करों, जखन हामर किस्मइत फटल हे, तखन ककरा दोस देबइ । नइहरोले कोनो आसा-भरोसा, मदइत पावेक नेखे, सेले जे हेतइ ऊपरओलाक जखन एहे मरजी हइ तखन आर का करे पारिअइ। चुनिया निडर हइ के बाबा महेसर के आगू आपन दुख-सुख खोलीके राखे लागइल।
‘तोहें तो कहा हाय ठीके, बाबा, मगुर सोंची देखही, सोची आवही हाम पडयाके ईस्कूल एखन भेजहे नी पारवइन ‘चुनिया बोलइल ।’से काहे ? पूछल महेसर।
बोड छउयाटी छगरी पठरू नीं देखी देइत तो छउयाके लूगा-फाटा काहाँ ले देवइन। छोटकी बाबुटाके जोदिना राखइ तो हाम पर-पेठिया, हाट- बाजार कहूँ जाय नी पारब । फइर एखिन के खिआववइन कइसे ? जकरठीन धान संपइत रहे हे, सवांग निचुत रहे हे ओखिने छउआ-पूता पढ़वे पारहत। एहो गाँवे देखहिअन जखीन के थोड़ कुछ हइन ओखिने के छउआ पढ़े-लिखे लागल हथीन। ई टोला-गाँवे. दुइये-चाइरे घारक छउआ – पढ़ल-लिखल हथीन बाकी सोब हामरे जइसन हथ। ‘चुनिया गियानी लेखे महेसर के गियान दिए लागलइन।
‘कोनो अइसन घार ई आसे-पासे टोलाञ नेखे जाहाँ हाम धंगरोनो रही के छउआ के ईस्कूले पढ़ावतलिअइन आर धंगरीनो रहले हामर सोब छउआ के · पोसी-पासी देतलों का ? चुनिया बोलते रहइल। महेसर आर रघुनाथ चुप रहथ ।
चुनिया फइर बोले लागइल आपनं सोब लाज-बीज छोइड़ के – ककरो लौड़ीनों रहले तो हामर ई छउआ-पूता के नी देखी संभराय देतक। सेले जखन तइक हाम आपन छउआ के पउध नी करे पारिअइन तखन तइक आरो हामर सोंचेक. उपाये नेखे। एम. सी. सी. आर. सरकार कर, पुलिसकर मारल । हाम उठहे जे नी पारे लागल हीं। राइत-दिन सोचही ‘हाम जीअब कइसे ।’ चुनिया एक बारगी चुप हइ गेइल। रघुनाथ आर महेसरो उठी के चल लागला।
हाम कइसे जीयब(मैं कैसे जियूं )
छॉइहर(कहानी संग्रह/गोछ )
लेखक – चितरंजन महतो “चित्रा’
प्रकाशक -खोरठा भाषा साहित्य संस्कृति अकैडमी, रामगढ़
प्रकाशन वर्ष -2007
कहानी संग्रह – 10
- इस कहानी के माध्यम से माओवादी और पुलिस के मुठभेड़ से प्रभावित गांवों की मार्मिक दुर्दशा का चित्रण किया गया है
- इस कहानी के मुख्य पात्र है
महेश्वर(महेसर ) |
नौकरी कर रहा है (मास्टर) |
पार्वती |
महेश्वर की पत्नी |
रघुनाथ |
महेश्वर का गोतीआ भतीजा |
फुलसरी |
रघुनाथ की पत्नी |
मोहरी |
रघुनाथ की पत्नी की नन्द |
चुनिया |
जिसके पति पुलिस माओवादी मुठभेड़ में मारे गए हैं पति का नाम- डमरु 3 बच्चे बड़ी बेटी का नाम – करमी (बकरी चराना) |
- मुँहअंधरा का समय है ,महेश्वर लंबी छुट्टी के बाद पत्नी पार्वती के साथ अपने रिस्तेदार के गांव जाता है जिस गांव का नाम मुरपा है.
- वहां उसका भतीजा रघुनाथ रहता है जो की उम्र में उससे बड़े हैं.
- जब महेश्वर भतीजा का गांव पहुंचता है तो उसका चार चक्का गाड़ी देखकर गांव वाले डर से इधर-उधर भागने लगते हैं वे समझते हैं कि यह पुलिस का गाड़ी है
- रघुनाथ की पत्नी लाल कोटइर मुर्गी मारने को कहती है ताकि मेहमानों को खिलाया जा सके
- रघुनाथ महेश्वर को गांव में ही नीचे टोला (बेदिया टोला ) की ओर शराब पिलाने के लिए ले जाता है
- बे चुनिया के घर जाते हैं, पहुंचने पर महेश्वर चुनिया से पूछता है कि आपके पति कहां है, तब रघुनाथ जवाब देता है कि चुनिया के पति का नाम था डमरु बहुत सीधा-साधा आदमी था एक दिन उसे एमसीसी यानी कि माओवादी अपने साथ उठाकर ले जाते हैं और बाद में माओवादी और पुलिस के मुठभेड़ में डमरु मारा जाता है
- चुनिया के तीन बच्चे हैं बड़ी बेटी का नाम करमी है जो बकरी चराती है और छोटकी बेटी छोटा बेटा का देखभाल करती है जो कि 3 वर्ष का है
- चुनिया अपना परिवार का भरण पोषण दतवन एवं पत्ता बेचकर तथा शराब बनाकर करती है
- तभी चुनिया रोने लगती है और कहती है ‘हम जीयब कैसे’ .
- यह कहानी माओवादी और पुलिस आतंक से प्रभावित गांव का मार्मिक दुर्दशा को प्रदर्शित करता है